Apr 28, 2015

पत्नी और प्रेरणा

   
27-02-2015  पत्नी और प्रेरणा  उर्फ़ शादी की पचासवीं वर्षगाँठ


आज पत्नी ने कुछ जल्दी चाय बनाली,  वैसे तोताराम भी आज कुछ विलंब से ही आया | आते ही पत्नी ने हमारे साथ ही उसे भी प्याला थमाना चाहा तो बोला- नहीं भाभी, अब मैं आपके यहाँ चाय नहीं पिऊँगा | हमें और पत्नी दोनों को आश्चर्य हुआ | तोताराम और हमारे यहाँ चाय नहीं ? 

कारण पूछा तो कहने लगा- बड़ा खराब ज़माना आ गया है | हर काम में राजनीति, हर काम में स्कूप, हर काम में घोटाला खोजना एक मनोरंजन हो गया है- जनता का भी और मीडिया का भी | होना-हवाना तो क्या है लेकिन बिना बात का तमाशा तो बन ही जाता है | चाय का क्या है ? दो घूँट यहाँ पी या वहाँ- क्या फ़र्क पड़ता है |

हम दोनों की उत्सुकता और बढ़ी | किसने, क्या ऐसी-वैसी बात तोताराम को कह दी जिस पर चालीस वर्ष से बिना नागा चाय पीता आ रहा तोताराम आज मना कर रहा है |
खोद-खोद का पूछा तो बोला- बेचारे गडकरी जी ने किसी के क्रूज़ में ज़रा सी लिफ्ट क्या ले ली, लोग हैं कि राई का पहाड़ बना रहे हैं |जब कि उस समय बेचारे भाजपा अध्यक्ष तो दूर सांसद भी नहीं थे | अगर किसी जान-पहचान वाले ने कुछ मुलाहिजा निभा दिया तो कौन सा पाप हो गया | क्या आदमी से आदमी का इतना भी रिश्ता नहीं होना चाहिए ?

हमने कहा- तेरी चाय और गड़करी जी का क्या संबंध है ? 

कहने लगा- है नहीं तो क्या, कल को हो भी तो सकता है |

हम और भी आश्चर्यचकित | बड़ी मिन्नत से पूछा तो बोला- मान ले, कल को मैं मंत्री बन गया तो लोग मेरी भी खाल खींचेंगे | कहेंगे कि तोताराम मास्टर के यहाँ चाय पिया करता था |पता नहीं अब उसको क्या फायदा पहुँचा रहा होगा | तू भी बिना बात लपेटे में आ जाएगा |

हमें हँसी आ गई, कहा- चाय पी या नहीं लेकिन मंत्री तो बन |वैसे याद रख तू भी बहत्तर का हो गया है | नई ऊर्जा के प्रतीक मोदी जी ने जब अडवाणी जी और मुरली मनोहर जी तक को चबूतरे पर बैठा दिया तो तुझे भी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए |अब हमारे लिए भी अडवाणी जी की तरह ही शादी की पचासवीं वर्षगाँठ के नाम पर ही चर्चा में आने या कुछ बड़े लोगों के साथ फोटो खिंचवाने का मौका बचा है |

हम दोनों भी तो शादी की पचासवीं वर्षगाँठ पाँच साल पहले मना चुके हैं तो क्यों न पचासवीं वर्षगाँठ मना चुके लोगों का एक क्लब बना लें और उसका उद्घाटन करने के लिए अडवाणी जी  को निमंत्रित कर लें |

बोला- यही सही | वैसे प्रधान मंत्री भले ही न बन पाए हों लेकिन इतना तो मानना ही पड़ेगा कि अडवाणी जी ने देशसेवा और गृहस्थ दोनों निभा दिए वरना तो आजकल पंच बनते ही लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | और पत्नी के साथ-साथ 'प्रेरणा' की ज़रूरत पड़ने लग जाती है |

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