Jun 1, 2015

फ्री कफ़न

  फ्री कफ़न 


तोताराम आज बड़बड़ाता हुआ प्रकट हुआ- आखिर एक आदमी क्या-क्या करे ?  जो नहीं किया जा सका उसका रोना लेकिन जो हो गया या हो रहा है या होने वाला है उसका कोई श्रेय नहीं | गिनने बैठो तो याद तक नहीं कर पाएँगे कि कितना कुछ हुआ है | भूल गए वे दिन जब पहले ब्लेक में गैस का सिलेंडर लाते थे या गैस वाला महीनों टरकाता था | बारह रुपए में दो लाख का बीमा दे दिया उसका कोई अहसान नहीं, अब बारह रुपए में कफ़न भी चाहिए |

हमने कहा- तो हमें क्यों सुना रहा है ? हम कौनसा बारह रुपए में कफ़न माँग रहे हैं | बारह  रुपए के बीमा और कैबिनेट में जगह से तो वैसे ही हम कानूनन बाहर हैं  |

बोला- तुम्हें नहीं सुना रहा हूँ, मैं तो इस बारह रुपए में कफ़न वाली समस्या का कोई हल सोच रहा हूँ | विदेशों में देख, अंतिम संस्कार के बड़े-बड़े विज्ञापन आते हैं | आप तो बस, पॅकेज पसंद कर लो फिर घर से शव उठाने से लेकर कब्र खोदने, आपका मनपसंद ताबूत,पादरी, भीड़ जुटाने और साल में एक बार कब्र पर दिया जलाने तक के सारे काम कंपनी सँभालेगी |इस जन्म का भले की ढंग से इंतजाम नहीं हुआ हो लेकिन महाप्रयाण का आपके पॅकेज के अनुसार आकर्षक इंतज़ाम का आश्वासन ज़रूर है |अभी इस क्षेत्र में मैदान बिलकुल खाली है |सोचता हूँ एक कंपनी क्यों न बना लूँ |

हमने कहा- ब्राह्मण होकरअब क्या यह डोमों वाला काम करेगा ? 

बोला-क्यों क्या सत्यवादी हरिश्चंद्र ने डॉम का काम नहीं किया था ? काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता जिसमें भी नोट कूटने का अवसर हो वही श्रेष्ठ काम है | क्या दारू का धंधा कोई भले आदमियों का काम है लेकिन सरकारें तम्बाकू के लिए कानून बना देंगी लेकिन दारु के लिए चुप हैं क्योंकि इसमें उसके भी हाथ पीले होते हैं | और फिर मैं कोई मात्र कफ़न वाला काम ही थोड़े करूँगा | पूरा पॅकेज रखेंगे | कफन, लकड़ी, अर्थी, शव-यात्रा, पंडित, गरुड़-पुराण वाले, पिंड दान कराने वाले, हरिद्वार पहुँचाने वाले, ब्राह्मण भोजन, रोने वाले, बूढ़ा हुआ तो बैंड बाजे वाले, फोटोग्राफर जाने कितने लोगों को रोजी मिलेगी | पूरा पॅकेज लेने वालों को कफ़न फ्री में देंगे | विज्ञापन में सबसे पहले लिखेंगे- कफ़न फ्री | और बात तो संपर्क करने पर 'कंडीशन्स अप्लाई'की तरह बाद में बताएँगे | 

अभी से बुकिंग करवाने वालों को और विशेष रियायत की घोषणा करेंगे | मान ले पचास करोड़ ने भी अभी बुकिंग कराई तो सोच कितने बिलियन-ट्रिलियन रुपए इकट्ठे हो जाएँगे ? उन्हें स्विस बैंक में डाल देंगे |एक साथ तो सब मरने से रहे | जो दस-बीस हजार रोज मरेंगे उन्हें निबटा देंगे |और यदि कोई कमी रहा गई तो मरने वाला कौनसा शिकायत करने आ रहा है ?

हमने कहा- मान ले यदि कोई केवल कफ़न का ही पॅकेज ले तो ?

बोला- उसका भी उपाय है | कफ़न को साथ नहीं जलाते | उसे तो अर्थी पर लिटाने से पहले उतार लेते हैं | हम वहाँ एक सी.ई.ओ. श्मशान अर्थात डोम राजा का पद भी बना देंगे जो उन कफनों को इकठ्ठा करता रहेगा और फिर उन्हें किसी भी अगले मुर्दे को उपलब्ध करा देगा, वैसे ही जैसे मंदिर के पुजारी की दुकान से खरीदा नारियल भगवान को चढाने के बाद फिर दुकान में पहुँच जाता है |

हमने कहा- तोताराम, भारत कितना भी गरीब और पिछड़ा हुआ माना जाए लेकिन आज भी भले ही लोग किसी बीमार को दवा के लिए पैसे न दें, भूखे को रोटी न खिलाएँ लेकिन मुर्दे को कफ़न ज़रूर दिला देंगे | यह दुनिया ऐसे ही दानवीरों की है | प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' में कफ़न के पैसों से दारू पी जाने वाला घीसू यही तो तर्क देता है अपने बेटे माधव को |

यहाँ बिना एक भी बच्चे के किसी स्कूल में चार अध्यापकों की पोस्टिंग हो सकती है, नकली दवा का धंधा चल सकता है, नकली घी-दूध का धंधा चल सकता है, बिना गायों के गौशाला ग्रांट उठा सकती है, कागजों पर विकलांगों को व्हील चेयर बाँटी जा सकती है, एक मुर्गी एक दिन में आठ सौ रुपए का दाना खा सकती है, एक भैंस स्कूटर पर बैठकर हरियाणा से पटना जा सकती है लेकिन कफ़न का धंधा तो शायद ही चले |

कहने लगा- कोई बात नहीं लेकिन  यदि किसी अखबार वाले ने ढंग से न्यूज लगा दी तो मोदी जी के मुकाबले में आ जाऊँगा | वे बारह रुपए में कफ़न नहीं दे सकते लेकिन तोताराम दे सकता है |







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