Feb 5, 2016

२०१६-०२-०४ ज्यादा उड़ना ठीक नहीं

 ज्यादा उड़ना ठीक नहीं

प्रिय शाहरुख़
लो फिर तुम्हारा नंबर आ गया |कल ही समाचार पढ़ा कि तुम एक निजी प्लेन खरीदना चाहते हो लेकिन पैसे नहीं हैं |यह भी कहा- मेरी दो फ़िल्में आने वाली हैं -रईस और फैन |मैं चाहता हूँ - इन दिनों कोई मेरा ख्याल रखे  |

सबसे पहले तो प्लेन वाली बात | बड़े काम करने के लिए प्लेन नहीं बल्कि बड़ा प्लान और पक्का इरादा चाहिए |बलराज साहनी, दिलीप कुमार, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन बिना प्लेन के ही बड़े कलाकार माने जाते हैं |किस महापुरुष के पास प्लेन रहा है ? मोदी जी बिना प्लेन के ही दिल्ली पहुँच गए |अब भी उनका बैंक बेलेंस ४७ हजार रुपए है |इससे हजार-पाँच सौ ज्यादा तो हमारा बेलेंस है लेकिन दिल्ली तो खैर बहुत दूर है, जयपुर तक नहीं पहुँचे | और फिर प्लेन को खड़ा कहाँ करोगे ?घर तो इतना बड़ा है नहीं और मुम्बई में प्लेन खड़ा करने जितना बड़ा प्लाट खरीदने जैसी हैसियत है नहीं |सो प्लेन हवाई अड्डे पर ही खड़ा करोगे तो हवाई अड्डे तक तो हर हालत में जाना ही पड़ेगा | और जब हवाई अड्डे पहुँच ही गए तो किसी भी प्लेन में बैठो, क्या फर्क पड़ता है |

यदि वास्तव में ही प्लेन खरीदना चाहते हो और पैसे नहीं हैं तो यह तुम्हारा मिस मैनेजमेंट है |फिर भी यदि तुम्हारा मन है तो किसी बैंक से लोन दिलवा देते हैं |लेकिन आगे की तुम खुद सोचो |क़िस्त जमा नहीं करवा सके तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी |लेकिन याद रखो- सबै दिन जात न एक समान |हमारे यहाँ आजादी से पहले एक सेठ थे|आयात-निर्यात का काम था |खूब पैसे कमाए |एक बार पहने कपड़े को दोबारा नहीं पहनते थे |एक सौ रुपए का नोट जलाकर चिलम सुलगाया करते थे |लेकिन अंत क्या हुआ ? सब कुछ निबट गया |ससुराल में रहने की नौबत आ गई और वही राम को प्यारे हुए | तुम इस मामले में खैर, बहुत समझदार हो |फिर भी सलाह देना हमारा फ़र्ज़ बनता है |

यदि प्लेन-व्लेन कुछ खरीदना नहीं और वैसे ही बातें बना रहे हो तो अच्छी बात नहीं है |फालतू बातें करने के लिए तो नेता ही बहुत हैं |इन नाटकों के बिना भी लोग तुम्हें जानते हैं |रही बात तुम्हारा ख्याल रखने की क्योंकि तुम्हारी दो फ़िल्में आने वाली हैं- रईस और फैन |कहीं इन्हें चलवाने के लिए तो पैसे न होने का जुमला उछाला है ? दर्शकों का क्या है ?जैसे बाज़ार में कोई ढंग की चीज नहीं मिलती तो जैसी मिलती है वैसी ही मजबूरी में खरीदनी ही पड़ती है ग्राहक को |यही हाल फिल्मों का है |

वैसे फ़िल्में चलवाने की मन्नत माँगने वाले हमारे अजमेर वाले ख्वाजा साहब के यहाँ ज़रूर आते हैं लेकिन  उनके बारे में भी बता दें |हमें का मिले थे | हमने कहा- यहाँ कहाँ, हुजूर |मुम्बई से फ़िल्मी भक्त चादर लेकर आपकी दरगाह में खड़े हैं और आप यहाँ ?

बोले- हमारे यहाँ कोई भक्त नहीं आते |सब अपने-अपने स्वार्थ से आते हैं |किसी को चुनाव में जीत चाहिए, किसी को धंधे में मुनाफा, किसी फिल्म चलवाने की गरज़ | हम तो फ़क़ीर हैं, हमें इन बातों से क्या लेना ?हम तो मुहब्बत के मुरीद हैं लेकिन मुहब्बत कहाँ ? यदि मुहब्बत ही होती तो दुनिया में बिना बात का खून-खराबा क्यों होता ? दूसरे धर्म वाले तो दूसरे; एक धर्म वाले ही आपस में एक दूसरे का सिर फोड़े डाल रहे हैं | लोगों को अपना सुकून हैं, दूसरे का सत्यानाश चाहिए |इसी चक्कर में सबका सत्यानाश हो रहा है |अब हम वहाँ नहीं रहते जैसे धार्मिक स्थानों में ईश्वर और आश्रमों में सच्चे संत |दंदफंद से दूर खुली हवा में अच्छा लगता है |तुम जैसे लोगों से बतिया लेते हैं और रात को दरगाह में जाकर सो जाते हैं |
इसलिए ज्यादा उड़ना ठीक नहीं |यदि निजी प्लेन का मन करे तो अम्बानी जी के प्लेन में लिफ्ट ले लेना |सुना है, पहले भी उन्होंने लिफ्ट दी थी |पैसे भी बचेंगे और जैसा सोच रहे हो उस प्लेन से बेहतर ही होगा अम्बानी जी प्लेन |

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