ज्ञान मुक्त हो जहाँ
हमारी कॉलोनी के दक्षिण में कोई एक सौ गज दूर व्यस्त जयपुर रोड़ है इसलिए इसके उत्तर में स्थित सभी कालोनियों में आने जाने वाले सभी लोग और वाहन हमारे घर के सामने से ही गुजरते हैं | सुबह चार बजे से जो सिलसिला चालू होता है वह रात दस-ग्यारह बजे तक तो चलता ही है |सबसे पहले मंडी में सब्ज़ी ले जाने वाले विभिन्न वाहन; फिर दूधवाले और इसी तरह क्रमशः बच्चों को स्कूल ले जाने वाली बसें,टेक्सी के रूप में चलने वाली निजी कारें,ऑटो और अभिभावकों की मोटर साइकिलें, सब्ज़ी वालों की रेहड़ियाँ, कुकर-गैस के चूल्हे ठीक करने वाले, दरी-चादरें बेचने वाले, अचार-मसाले बेचने वाले और अंत में 'लो.. प्लास्टिक' का घोष करते कबाड़ी | नया आदमी तो समझ ही नहीं पाता कि यह प्लास्टिक बेच रहा है या पुराना लोहा और प्लास्टिक खरीद रहा है लेकिन हम अभ्यास के कारण समझ जाते हैं |
भारत की विविध संस्कृति नित्य हमारे घर के आगे से गुजरती है |हमें 'अतुल्य भारत' के दर्शन करने के लिए किसी पर्यटन स्थल पर नहीं जाना पड़ता |
आज कुछ ठण्ड थी और बारिश के आसार भी, सो कमरे में ही बैठे थे |तभी इन्हीं आवाजों के बीच एक नई आवाज़ सुनाई दी- सेकेंडरी, सीनियर सेकेंडरी, बी.ए.,एम.ए.,पी.एच.डी.........|
हमने तोताराम से पूछा- तोताराम, आज यह नया रेहड़ी वाला कौन आ गया ? और बोल क्या रहा है, सुना ? सर्टिफिकेटों और डिग्रियों के नाम |क्या अब डिग्रियाँ भी सब्जियों की तरह बिकने लगी ?
बोला- मुझे लगता है कोई जोधपुर वाला है | सुना नहीं, पहले एक सज्जन वाजिब दामों पर हजारों डिग्रियों की होम डिलीवरी दिया करते थे |लगता है,फ्लिपकार्ट की तरह यह उसी की कोई नई सर्विस है |
और दो मिनट में ही वह उस फेरी वाले को पकड़ लाया |
हमने पूछा- बन्धु, हमने अभी आपका राष्ट्र के नाम जो सन्देश सुना वह क्या है ?
बोला- सन्देश क्या है मास्टर जी, माल बेच रहे हैं |दाम दो और माल लो |वह आप वाला ज़माना गया कि दस-बीस साल घुटने रगड़ो और तब कहीं जाकर कोई डिग्री मिलती थी |आपके ज़माने में बी.ए. इतनी बड़ी चीज होती थी कि कहावतों में आता था- कौन सा बी.ए. हो गया |श्यामसुंदर दास और गुलाब राय बी.ए. होते हुए ही एम.ए. वालों के लिए किताबें लिख गए |अब ससुर सबसे सस्ती यही डिग्री हो गई |कोई दस हज़ार में भी नहीं पूछता |कहता है इतने में तो प्राइवेट कालेज वाले बी.ए. और बी.एड. दोनों एक साथ करवा देते हैं |
तभी तोताराम बीच में ही बोल पड़ा- और पी.एच.डी. का क्या रेट है ?
फेरी वाले ने कहा- मास्टर जी, पी.एच.डी. दो तरह की हैं |एक तो वह जिसमें आपके नाम से थीसिस कोई और लिखेगा और डिग्री हम देंगे, दूसरी जिसमें केवल एक कागज होगा जिसमें विषय,आपका नाम, हमारे विश्वविद्यालय का नाम आदि होंगे |पहली के बीस हजार और दूसरी के दस हजार, नकद |
तोताराम ने कहा- मास्टर ले ले, कम से कम नाम के आगे 'डाक्टर' तो लगा सकेगा |
हमने कहा- हमें नाम के आगे डाक्टर लगा कर कौन सी प्रेक्टिस करनी है |और फिर पेंशन पर इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है |दस हजार का च्यवनप्राश खाएँगे तो क्या पता, पाँच साल और पेंशन पेलने का मौका मिल जाए |
बोला-कोई बात नहीं, लेकिन यह तो तुझे मानना ही पड़ेगा कि इन साठ-सत्तर वर्षों में हमारे लोकतंत्र ने कम से कम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का वह सपना तो साकार कर ही दिया-
ज्ञान मुक्त हो जहाँ....निर्भय हो चित्त जहाँ...
भारत को उसी स्वर्ग में तुम जागृत करो..जागृत करो |
हमारी कॉलोनी के दक्षिण में कोई एक सौ गज दूर व्यस्त जयपुर रोड़ है इसलिए इसके उत्तर में स्थित सभी कालोनियों में आने जाने वाले सभी लोग और वाहन हमारे घर के सामने से ही गुजरते हैं | सुबह चार बजे से जो सिलसिला चालू होता है वह रात दस-ग्यारह बजे तक तो चलता ही है |सबसे पहले मंडी में सब्ज़ी ले जाने वाले विभिन्न वाहन; फिर दूधवाले और इसी तरह क्रमशः बच्चों को स्कूल ले जाने वाली बसें,टेक्सी के रूप में चलने वाली निजी कारें,ऑटो और अभिभावकों की मोटर साइकिलें, सब्ज़ी वालों की रेहड़ियाँ, कुकर-गैस के चूल्हे ठीक करने वाले, दरी-चादरें बेचने वाले, अचार-मसाले बेचने वाले और अंत में 'लो.. प्लास्टिक' का घोष करते कबाड़ी | नया आदमी तो समझ ही नहीं पाता कि यह प्लास्टिक बेच रहा है या पुराना लोहा और प्लास्टिक खरीद रहा है लेकिन हम अभ्यास के कारण समझ जाते हैं |
भारत की विविध संस्कृति नित्य हमारे घर के आगे से गुजरती है |हमें 'अतुल्य भारत' के दर्शन करने के लिए किसी पर्यटन स्थल पर नहीं जाना पड़ता |
आज कुछ ठण्ड थी और बारिश के आसार भी, सो कमरे में ही बैठे थे |तभी इन्हीं आवाजों के बीच एक नई आवाज़ सुनाई दी- सेकेंडरी, सीनियर सेकेंडरी, बी.ए.,एम.ए.,पी.एच.डी.........|
हमने तोताराम से पूछा- तोताराम, आज यह नया रेहड़ी वाला कौन आ गया ? और बोल क्या रहा है, सुना ? सर्टिफिकेटों और डिग्रियों के नाम |क्या अब डिग्रियाँ भी सब्जियों की तरह बिकने लगी ?
बोला- मुझे लगता है कोई जोधपुर वाला है | सुना नहीं, पहले एक सज्जन वाजिब दामों पर हजारों डिग्रियों की होम डिलीवरी दिया करते थे |लगता है,फ्लिपकार्ट की तरह यह उसी की कोई नई सर्विस है |
और दो मिनट में ही वह उस फेरी वाले को पकड़ लाया |
हमने पूछा- बन्धु, हमने अभी आपका राष्ट्र के नाम जो सन्देश सुना वह क्या है ?
बोला- सन्देश क्या है मास्टर जी, माल बेच रहे हैं |दाम दो और माल लो |वह आप वाला ज़माना गया कि दस-बीस साल घुटने रगड़ो और तब कहीं जाकर कोई डिग्री मिलती थी |आपके ज़माने में बी.ए. इतनी बड़ी चीज होती थी कि कहावतों में आता था- कौन सा बी.ए. हो गया |श्यामसुंदर दास और गुलाब राय बी.ए. होते हुए ही एम.ए. वालों के लिए किताबें लिख गए |अब ससुर सबसे सस्ती यही डिग्री हो गई |कोई दस हज़ार में भी नहीं पूछता |कहता है इतने में तो प्राइवेट कालेज वाले बी.ए. और बी.एड. दोनों एक साथ करवा देते हैं |
तभी तोताराम बीच में ही बोल पड़ा- और पी.एच.डी. का क्या रेट है ?
फेरी वाले ने कहा- मास्टर जी, पी.एच.डी. दो तरह की हैं |एक तो वह जिसमें आपके नाम से थीसिस कोई और लिखेगा और डिग्री हम देंगे, दूसरी जिसमें केवल एक कागज होगा जिसमें विषय,आपका नाम, हमारे विश्वविद्यालय का नाम आदि होंगे |पहली के बीस हजार और दूसरी के दस हजार, नकद |
तोताराम ने कहा- मास्टर ले ले, कम से कम नाम के आगे 'डाक्टर' तो लगा सकेगा |
हमने कहा- हमें नाम के आगे डाक्टर लगा कर कौन सी प्रेक्टिस करनी है |और फिर पेंशन पर इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है |दस हजार का च्यवनप्राश खाएँगे तो क्या पता, पाँच साल और पेंशन पेलने का मौका मिल जाए |
बोला-कोई बात नहीं, लेकिन यह तो तुझे मानना ही पड़ेगा कि इन साठ-सत्तर वर्षों में हमारे लोकतंत्र ने कम से कम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का वह सपना तो साकार कर ही दिया-
ज्ञान मुक्त हो जहाँ....निर्भय हो चित्त जहाँ...
भारत को उसी स्वर्ग में तुम जागृत करो..जागृत करो |
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