May 6, 2016

अब भी गुंजाइश है

  अब भी गुंजाइश है 

आज तोताराम ने आते ही कहा-चल, आज पासपोर्ट मेला लगा है |सारे कागजात सही हुए तो तीसरे दिन पासपोर्ट घर आ जाएगा |

हमने कहा- लेकिन हमें पासपोर्ट चाहिए क्यों ? बड़ी मुश्किल से इस भारत भूमि पर जन्म मिला है जिस पर जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं तो हम इसे छोड़कर क्यों जाएँ ?

बोला- यहाँ अब कोई स्कोप नहीं है | जितनी नौकरी करनी थी कर ली |बूढ़ों के लिए एक स्कोप था कि किसी भी उम्र में राजनीति में चले जाओ सो उसे मोदी जी ने समाप्त कर दिया | लेकिन इंग्लैण्ड में अब भी स्कोप बचा हुआ है |वहाँ कई कैसे पार्ट टाइम जॉब हैं जिन्हें करके हजारों डालर कमाए जा सकते हैं |न उम्र का है बंधन .......|और न ही कोई खास योग्यता चाहिए |

हमने कहा- लेकिन वहाँ तो सारे काम अंग्रेजी में होते हैं और हमारी अंग्रेजी तो यस सर और थैंक यू तक ही है |

बोला-इतनी ही बहुत है |और डालर तो गिन ही लेगा |वैसे डालर में एक सावधानी रखनी होगी क्योंकि उसके सभी नोटों की शक्ल और साइज़ एक जैसे ही होते हैं |बस, संख्या का अंतर होता है |

हमने पूछा- लेकिन काम क्या है ?

बोला- काम क्या ? कोई काम जैसा काम हो तो बताऊँ भी | जैसे लाइन में खड़ा होना |कुछ लोग होते हैं जो लाइन में खड़ा होना पसंद नहीं करते सो वे अपने किसी विकल्प को अपनी जगह लाइन में खड़ा कर देते हैं और इस काम से  लोग लाइन में खड़े होकर हफ्ते के कोई एक हजार डालर तक कमा लेते हैं |मतलब अपनी पेंशन से कोई तीन-चार गुना |

हमने कहा- लेकिन बन्धु, यह काम हमसे नहीं होगा |हालाँकि सारी जवानी लाइनों में लगकर की काट दी लेकिन अब बीस-पच्चीस मिनट में ही घुटनों में दर्द होने लगता है |

बोला- तो एक और आसान सा काम है जो तेरे व्यक्तित्त्व के अनुरूप भी है |वहाँ लोगों को अपनों तक के अंतिम संस्कार में जाने और शोक मनाने का समय नहीं है |इस काम के लिए भी वे किराये के लोगों से काम चलाते हैं | दो घंटे के ७० डालर मिल जाते हैं |तुझे तो हो सकता है कि कुछ ज्यादा भी मिल जाएँ क्योंकि तेरी सूरत तो स्वाभाविक रूप से ही मनहूस है |और इस काम में मनहूस सूरत की ही तो ज़रूरत होती है |

हमने कहा- तूने रुदाली फिल्म तो देखी ही होगी |अपने राजस्थान में भी तो पहले ठाकुरों के मरने पर पेशेवर रुदालियाँ होती थीं |बेचारियों के पास अपनों के लिए बहाने को तो आँसू सूख चुके होते थे लेकिन दूसरों के लिए रोती थीं |

कहने लगा- आज भी बस, रूप बदला है लेकिन धंधा तो वही चल रहा है |कोई भी काम का, प्रभावशाली आदमी या नेता मरे या बीमार हो तो लोग अपने बीमार बाप को छोड़ कर उसका हाल पूछने जाते हैं |लाभ की आशा में उसके मरने पर सिर मुँडा लेते हैं या उसके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए यज्ञ और जाप करवाने लगते हैं |यह रुदालीपना नहीं तो और क्या है ?और इस रोने का लाभ पता नहीं, कब मिलेगा या मिलेगा ही नहीं लेकिन वहाँ तो रोओ, रोनी सूरत बना कर बैठो और दो घंटे में ७० डालर खरे |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, सब कुछ इतना सरल नहीं है |हमने पढ़ा है कि ब्रिटेन की सरकार हर वर्ष तीस-पैंतीस हजार पौण्ड से कम कमाने वालों को ब्रिटेन से निकालने की सोच रही है |इसका मतलब यह है कि वहाँ तीन चार हजार डालर महिने की कमाई कुछ नहीं | और फिर यदि जेतली जी को पता लग गया तो कमाई बाद में होगी और टेक्स पहले ले लेंगे |हम कोई माल्या तो हैं नहीं कि नौ हजार करोड़ डकार कर भी इनकी पकड़ में न आएँ |इसलिए यहीं ठीक हैं | 

तोताराम बिना निराश हुए बोला- लेकिन भाई साहब, वहाँ एक काम और भी चलता है- 'प्रोफेशनल कडलिंग' |

हमने पूछा- यह क्या बला है ?

बोला- इसमें किसी के अंतिम संस्कार में किसी भी अज़नबी से लिपटकर रोना होता है |इसके भी ८० डालर मिलते हैं | और सोचिए,  कुछ कम भी मिला तो कोई बात नहीं लेकिन इस बहाने किसी गोरी मेम से गले मिलाने का अवसर तो मिल जाएगा |

हम डाँटते तब तक 'सॉरी' बोलता हुआ तोताराम उठ लिया |


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