लोकतंत्र में ट्रंप के पत्ते
हालाँकि लोकतंत्र को अब तक की सभी व्यवस्थाओं में सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है लेकिन दुनिया में अधिकांश देशों में लोकतंत्र के कारण कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है |जो हुई है वह विज्ञान और यंत्रों द्वारा हुई है क्योंकि ये मुनाफा बढ़ने वाले कारक हैं | मानवीय दमन और दुर्दशा में कोई कमी नहीं आई है |हाँ, लोकतंत्र के नाम पर जनमत के बल का एक भ्रम ज़रूर गढ़ा गया है |और शायद इसी के नशे में लोग क्रांति या परिवर्तन का भ्रम पाल लेते हैं |
ताश के खेल में कुछ ट्रंप के पत्ते होते हैं जिनकी दुग्गी भी इतर इक्के को पीट देती है |लोकतंत्र में भी परिवर्तन के नाम पर ऐसे ही ट्रंप के पत्ते रचे जाते हैं |दुनिया से तथाकथित सबसे अधिक गतिशील लोकतंत्र अमरीका के इन चुनावों में राजनीति के एक अज्ञात कुलशील और बड़बोले, मनचले धनवान ट्रंप का उदय 'ट्रंप' के इस श्लेष की व्याख्या के लिए बहुत उचित शब्द है |
सन २००० से अमरीका आना जाना लगा रहा जो अब भी जारी है |अध्यापक और जिज्ञासु होने के कारण वहाँ के मॉल, कारों और चौड़ी सड़कों में रुचि कम रही और वहाँ के जीवन को जानने का ललक अधिक रही |इसलिए कई स्कूलों में भी गया और जब भी मौका मिला वहाँ के समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन को नज़दीक से जानने का प्रयत्न भी किया |वहाँ के विद्यार्थियों को सायास धर्मनिरपेक्ष, मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला और वैश्विक बनाने बनाने का प्रयत्न किया जाता है |वहाँ के स्कूलों में निश्चित गणवेश (ड्रेस) नहीं हैं, स्कूल के किसी कार्यक्रम में किसी प्रकार की कोई प्रार्थना नहीं होती | बच्चे की स्वतंत्रता और निजता को बहुत सम्मान दिया जाता है |
वहाँ की सबसे पुरानी हिंदीसेवी संस्था 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति' के त्रैमासिक मुखपत्र 'विश्वा' का संपादक होने के कारण समाज और जीवन को देखने का यह शौक कुछ आवश्यकता में भी बदल गया है |इसलिए अपने भारत और अमरीका के अनुभवों और अध्ययन के आधार पर कह सकता हूँ कि अपने भारतीय (हिन्दू) जीवन शैली के इतिहास में जाति का जो स्थान है वही योरप और बाद में अमरीका के इतिहास में नस्लभेद या रंगभेद का है हालाँकि अमरीका ने स्वतंत्रता की एक बहुत गतिशील व्याख्या की और उसे अपने संविधान के द्वारा कार्यरूप में उतारने का प्रयत्न भी किया |लेकिन विभिन्न देशों और समाजों में धर्म और नस्ल की मानसकिता को शताब्दियों से, विभिन्न तरीकों से संबंधित लोगों के मन में कुछ इस तरह बिठाया गया है कि उससे मुक्त होना अभी भी असंभव सा नज़र आ रहा है |
सन २००८ में अमरीका के चुनावों में दुनिया और विशेषरूप से अमरीका ने देखा कि गोरी अमरीकी माँ और एक काले अफ्रीकी मुसलमान पिता की संतान बराक हुसैन ओबामा जो अपने नाक-नक्श से कहीं भी गोरा अमरीकी नहीं लगता, अपनी की डेमोक्रेटिक पार्टी की गोरी और एक पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी हिलेरी क्लिंटन हो हराकर पार्टी का उम्मीदवार बनता और जीतता है |इस जीत को लोकतंत्र की श्रेष्ठता और अमरीकी स्वतंत्रता व मेल्टिंग पॉट की अवधारणा की सत्यता और जीत के रूप में देखा गया और प्रचारित किया गया |लेकिन इस बात का विश्लेषण नहीं किया गया कि इसमें काले और अपने को कालों के निकट मानने वाले एशिया के लोगों के रंग और नस्ल के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का कितना हाथ था ?
आज अमरीकी लोकतंत्र में डोनाल्ड ट्रंप के उदय और अपने पक्ष में उनके अपने तर्क क्या संकीर्ण नस्लीय और धार्मिक अवधारणा के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण कर सकने की लोकतंत्र की एक बड़ी खामी की तरफ संकेत नहीं करते ?क्या इस परिप्रेक्ष्य में हम अपने देश भारत में लोकतंत्र की ऐसी बड़ी खामियों की तरफ नज़र नहीं डाल सकते |क्या यहाँ भी वोटों के ध्रुवीकरण और जीत के लिए जाति-धर्म और घृणा के विभिन्न मुद्दों को नहीं उठाया जाता ?
अभी अमरीका के कुछ अर्थशास्त्रियों, विद्वानों और नोबल पुरस्कार विजेताओं ने ट्रंप की अर्थशास्त्र की अज्ञानता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन्हें वोट न देने की अपील की है |जहाँ तक अर्थशास्त्र की बात है तो अभी तक कोई भी अर्थव्यवस्था इस दुनिया और समाज की समस्याओं का हल नहीं खोज सकी है |आज की अर्थव्यवस्था में साधनों की कमी नहीं है लेकिन संवेदना, करुणा और उत्तरदायित्त्व की भावना का नितांत अभाव है जो कि प्रत्येक मनुष्य को अर्थाभाव से भी अधिक सालता है | इसलिए बात अंततः एक श्रेष्ठ और संवेदनशील मनुष्य के निर्माण पर आकर ठहरती है |और लोकतंत्र में जीत का आधार वोटों की संख्या होती है जिसे प्रभावित करने वाले कारक मानवीय गुण नहीं बल्कि मीडिया, भ्रम-उत्पादन, विभेद और धर्म-जाति-नस्ल के आधार पर अपने ट्रंप के पत्ते खोजना और उन्हें सही समय पर किसी भी सद्गुण वाले इक्के पर चला देना है |
हालाँकि लोकतंत्र को अब तक की सभी व्यवस्थाओं में सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है लेकिन दुनिया में अधिकांश देशों में लोकतंत्र के कारण कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है |जो हुई है वह विज्ञान और यंत्रों द्वारा हुई है क्योंकि ये मुनाफा बढ़ने वाले कारक हैं | मानवीय दमन और दुर्दशा में कोई कमी नहीं आई है |हाँ, लोकतंत्र के नाम पर जनमत के बल का एक भ्रम ज़रूर गढ़ा गया है |और शायद इसी के नशे में लोग क्रांति या परिवर्तन का भ्रम पाल लेते हैं |
ताश के खेल में कुछ ट्रंप के पत्ते होते हैं जिनकी दुग्गी भी इतर इक्के को पीट देती है |लोकतंत्र में भी परिवर्तन के नाम पर ऐसे ही ट्रंप के पत्ते रचे जाते हैं |दुनिया से तथाकथित सबसे अधिक गतिशील लोकतंत्र अमरीका के इन चुनावों में राजनीति के एक अज्ञात कुलशील और बड़बोले, मनचले धनवान ट्रंप का उदय 'ट्रंप' के इस श्लेष की व्याख्या के लिए बहुत उचित शब्द है |
सन २००० से अमरीका आना जाना लगा रहा जो अब भी जारी है |अध्यापक और जिज्ञासु होने के कारण वहाँ के मॉल, कारों और चौड़ी सड़कों में रुचि कम रही और वहाँ के जीवन को जानने का ललक अधिक रही |इसलिए कई स्कूलों में भी गया और जब भी मौका मिला वहाँ के समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन को नज़दीक से जानने का प्रयत्न भी किया |वहाँ के विद्यार्थियों को सायास धर्मनिरपेक्ष, मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला और वैश्विक बनाने बनाने का प्रयत्न किया जाता है |वहाँ के स्कूलों में निश्चित गणवेश (ड्रेस) नहीं हैं, स्कूल के किसी कार्यक्रम में किसी प्रकार की कोई प्रार्थना नहीं होती | बच्चे की स्वतंत्रता और निजता को बहुत सम्मान दिया जाता है |
वहाँ की सबसे पुरानी हिंदीसेवी संस्था 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति' के त्रैमासिक मुखपत्र 'विश्वा' का संपादक होने के कारण समाज और जीवन को देखने का यह शौक कुछ आवश्यकता में भी बदल गया है |इसलिए अपने भारत और अमरीका के अनुभवों और अध्ययन के आधार पर कह सकता हूँ कि अपने भारतीय (हिन्दू) जीवन शैली के इतिहास में जाति का जो स्थान है वही योरप और बाद में अमरीका के इतिहास में नस्लभेद या रंगभेद का है हालाँकि अमरीका ने स्वतंत्रता की एक बहुत गतिशील व्याख्या की और उसे अपने संविधान के द्वारा कार्यरूप में उतारने का प्रयत्न भी किया |लेकिन विभिन्न देशों और समाजों में धर्म और नस्ल की मानसकिता को शताब्दियों से, विभिन्न तरीकों से संबंधित लोगों के मन में कुछ इस तरह बिठाया गया है कि उससे मुक्त होना अभी भी असंभव सा नज़र आ रहा है |
सन २००८ में अमरीका के चुनावों में दुनिया और विशेषरूप से अमरीका ने देखा कि गोरी अमरीकी माँ और एक काले अफ्रीकी मुसलमान पिता की संतान बराक हुसैन ओबामा जो अपने नाक-नक्श से कहीं भी गोरा अमरीकी नहीं लगता, अपनी की डेमोक्रेटिक पार्टी की गोरी और एक पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी हिलेरी क्लिंटन हो हराकर पार्टी का उम्मीदवार बनता और जीतता है |इस जीत को लोकतंत्र की श्रेष्ठता और अमरीकी स्वतंत्रता व मेल्टिंग पॉट की अवधारणा की सत्यता और जीत के रूप में देखा गया और प्रचारित किया गया |लेकिन इस बात का विश्लेषण नहीं किया गया कि इसमें काले और अपने को कालों के निकट मानने वाले एशिया के लोगों के रंग और नस्ल के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का कितना हाथ था ?
आज अमरीकी लोकतंत्र में डोनाल्ड ट्रंप के उदय और अपने पक्ष में उनके अपने तर्क क्या संकीर्ण नस्लीय और धार्मिक अवधारणा के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण कर सकने की लोकतंत्र की एक बड़ी खामी की तरफ संकेत नहीं करते ?क्या इस परिप्रेक्ष्य में हम अपने देश भारत में लोकतंत्र की ऐसी बड़ी खामियों की तरफ नज़र नहीं डाल सकते |क्या यहाँ भी वोटों के ध्रुवीकरण और जीत के लिए जाति-धर्म और घृणा के विभिन्न मुद्दों को नहीं उठाया जाता ?
अभी अमरीका के कुछ अर्थशास्त्रियों, विद्वानों और नोबल पुरस्कार विजेताओं ने ट्रंप की अर्थशास्त्र की अज्ञानता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन्हें वोट न देने की अपील की है |जहाँ तक अर्थशास्त्र की बात है तो अभी तक कोई भी अर्थव्यवस्था इस दुनिया और समाज की समस्याओं का हल नहीं खोज सकी है |आज की अर्थव्यवस्था में साधनों की कमी नहीं है लेकिन संवेदना, करुणा और उत्तरदायित्त्व की भावना का नितांत अभाव है जो कि प्रत्येक मनुष्य को अर्थाभाव से भी अधिक सालता है | इसलिए बात अंततः एक श्रेष्ठ और संवेदनशील मनुष्य के निर्माण पर आकर ठहरती है |और लोकतंत्र में जीत का आधार वोटों की संख्या होती है जिसे प्रभावित करने वाले कारक मानवीय गुण नहीं बल्कि मीडिया, भ्रम-उत्पादन, विभेद और धर्म-जाति-नस्ल के आधार पर अपने ट्रंप के पत्ते खोजना और उन्हें सही समय पर किसी भी सद्गुण वाले इक्के पर चला देना है |
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