(राजस्थान के पूर्व राज्यपाल और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा नेता मदनलाल खुराना का निधन- श्रद्धांजलि | उनकी सहज और मुक्त हँसी को याद करते हुए, उनके नाम २७-१०२००४ को लिखे और अखबार में छपे एक पत्र का आनंद लें )
भूतपूर्व उर्फ़ महामहिम
( 'मेरा दिल तो दिल्ली में है'- राजस्थान के राज्यपाल मदन लाल खुराना )
मदन जी भाई साहब,
जय श्रीराम । खैर, हमें तो राम सदा ही याद रहते हैं । हाँ, आपको राम पिछले छः साल से विस्मृत हो गए थे । ठीक भी है सुख में भजे न कोय । अब दुःख आया तो राम याद आए । तो पुनः 'जय श्री राम' । हम आपको इतने दिनों तक पत्र नहीं लिख सके और न ही सीकर से जयपुर तक की एक सौ किलोमीटर की दूरी तक तय की । इसके दो कारण हैं- एक तो आप भाई साहब से महामहिम हो गए । अब कहाँ तो मदन जी भाई साहब का मुख-सुख और कहाँ श्रीमान महामहिम श्री मदन लाल जी खुराना । इतना बड़ा नाम, कहीं बोलने में चूक हो गई तो मुश्किल । दूसरा कारण यह कि आप दरबार लगाने लगे और उस दरबार में आने वालों का धक्का मुक्की और डंडों से स्वागत हुआ इसलिए हम डर गए । कहीं बुढापे में हड्डी टूट गई तो जुड़ना मुश्किल हो जाएगा । वैसे अपने जयपुर फुट और व्हील चेयर भी बाँटे थे ।
हम दिल्ली में सोलह साल रहे । आप से मिले भी थे । आपके ठहाके और जिंदादिली क्या भूलने की चीजें हैं ? हम आपके डबल फैन हैं क्योंकि आप की तरह हम भी हेमा जी के फैन हैं और आपके भी । तीन साल पहले जयपुर ट्रांसफर होने से हमारी दिल्ली छूट गई पर दिल दिल्ली में ही रह गया, आपकी तरह । अब इन तीन सालों में नहीं मिले तो क्या प्रेम कम हो जाएगा ? स्वार्थ का प्रेम मुलाकातों का मोहताज होता है । आध्यात्मिक प्रेम तो कभी भी न मिलने पर भी ख़त्म नहीं होता । सो हम जयपुर नहीं आए तो बुरा नहीं मानियेगा । अब की बार दिल्ली आयेंगे तो आपके यहीं ठहरेंगे । जब दिल्ले में थे तो सरकारी क्वार्टर में रहते थे पर ट्रांसफर के बाद छोड़ना पड़ा । हम कोई सांसद या मंत्री तो हैं नहीं कि बिजली-पानी का बिल भी न चुकाएँ और मकान भी खाली न करें । और दिल्ली में अपना मकान तो देवताओं का होता है । आप उन्हीं दिल्ली के देवी-देवताओं के पुजारी हैं । पता नहीं, आप हमें किस श्रेणी में रखेंगे ?
खैर, महामहिम की जूण से इसी जन्म में ही मुक्ति मिल गई । वैसे जब आप जयपुर आए थे तब भी आप कहते थे कि दिल तो दिल्ली में ही है । बार-बार दिल्ली के चक्कर लगते रहते थे । पर जब राजग का सितारा डूबा तो आपने त्याग पत्र नहीं दिया | ठीक भी है | म्यूजीकल चेयर में एक ट्रिक होती है कि जब तक आगे वाली कुर्सी खाली न हो जाए तब तक हाथ वाली कुर्सी मत छोड़ो । सो दिल्ली में कुर्सी खाली होते ही आपने महामहिम के चोले को राम-राम कर लिया ।
वैसे महामहिम का पद भी कोई पद है । न रैली, न जुलूस, न भाषण, न शोर-शराबा, न चहल-पहल । बस, ताज पहन कर बैठे रहो किसी गोष्ठी के अध्यक्ष की तरह । अधिक किया तो पुरस्कार वितरण कर दिया । मौका लगा तो सरकारी खर्चे पर तीर्थ यात्रा कर ली । पर यह जीना भी कोई जीना है, लल्लू । खैर, फिर वही घोड़े और वही मैदान । राम-मन्दिर और कश्मीर के शाश्वत मुद्दे की तरह दिल्ली के आवासीय क्षेत्रों से औद्योगिक इकाइयाँ हटाने का गरमागरम मुद्दा आपका इंतजार कर रहा है । शुभास्ते पन्थानं । अब दिल्ली तो दिल्ली है भाई साहब । ये बाजरे की रोटी खाने वाले, टीलों में रहने वाले, कैर-साँगरी और खेलरों पर गुजारा करने वाले क्या जानें दिल्ली के मज़े ?
दिल्ली में तो नलों में पानी की जगह बीयर आती है, पिज्जा की होम डिलीवरी है, रोज शाम को नाटक, प्रदर्शनी, गोष्ठी, फैशन परेड होते रहते हैं । किसी भी कार्यक्रम में जाकर चार प्लेटें नाश्ते की फाड़ दो और अगले दिन शाम तक खाने की छुट्टी । दिल्ली में साढ़े सात सौ एम.पी.हैं किसी से भी मिलने की सुविधा । यहाँ पर तो सरपंच तक टाइम नहीं देता । बीसों पत्रिकाएँ और अखबार निकलते हैं । चार लाइनें लिख कर चक्कर काटना शुरू करो तो कहीं न कहीं पार पड़ ही जाती है । रावळे का तेल है साहब, पल्ले में भी भला ।
तो आप उसी दिल्ली में पहुँच गए । दिल्ली भारत का दिल, आप दिल्ली के दिल, आपके दिल में हम और हमारे दिल में हेमा मालिनी । बस, आप तो हमारे लिए हेमा जी से टाइम लेकर रखियेगा । और हम दिल्ली के रिहायशी इलाकों से औद्योगिक इकाइयाँ न हटाने के लिए आप द्वारा निकाले जाने वाले जुलूसों, रैलियों में बिना टी.ए.,डी.ए.के शामिल होंगें । और यह क्या, आपने 'धूम' पिक्चर देखी । दूसरों की मचाई धूम देखने की क्या ज़रूरत थी अभी तो माशा-अल्ला आपके ही धूम मचाने के दिन हैं ।
२७-१०-२००४
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
भूतपूर्व उर्फ़ महामहिम
( 'मेरा दिल तो दिल्ली में है'- राजस्थान के राज्यपाल मदन लाल खुराना )
मदन जी भाई साहब,
जय श्रीराम । खैर, हमें तो राम सदा ही याद रहते हैं । हाँ, आपको राम पिछले छः साल से विस्मृत हो गए थे । ठीक भी है सुख में भजे न कोय । अब दुःख आया तो राम याद आए । तो पुनः 'जय श्री राम' । हम आपको इतने दिनों तक पत्र नहीं लिख सके और न ही सीकर से जयपुर तक की एक सौ किलोमीटर की दूरी तक तय की । इसके दो कारण हैं- एक तो आप भाई साहब से महामहिम हो गए । अब कहाँ तो मदन जी भाई साहब का मुख-सुख और कहाँ श्रीमान महामहिम श्री मदन लाल जी खुराना । इतना बड़ा नाम, कहीं बोलने में चूक हो गई तो मुश्किल । दूसरा कारण यह कि आप दरबार लगाने लगे और उस दरबार में आने वालों का धक्का मुक्की और डंडों से स्वागत हुआ इसलिए हम डर गए । कहीं बुढापे में हड्डी टूट गई तो जुड़ना मुश्किल हो जाएगा । वैसे अपने जयपुर फुट और व्हील चेयर भी बाँटे थे ।
हम दिल्ली में सोलह साल रहे । आप से मिले भी थे । आपके ठहाके और जिंदादिली क्या भूलने की चीजें हैं ? हम आपके डबल फैन हैं क्योंकि आप की तरह हम भी हेमा जी के फैन हैं और आपके भी । तीन साल पहले जयपुर ट्रांसफर होने से हमारी दिल्ली छूट गई पर दिल दिल्ली में ही रह गया, आपकी तरह । अब इन तीन सालों में नहीं मिले तो क्या प्रेम कम हो जाएगा ? स्वार्थ का प्रेम मुलाकातों का मोहताज होता है । आध्यात्मिक प्रेम तो कभी भी न मिलने पर भी ख़त्म नहीं होता । सो हम जयपुर नहीं आए तो बुरा नहीं मानियेगा । अब की बार दिल्ली आयेंगे तो आपके यहीं ठहरेंगे । जब दिल्ले में थे तो सरकारी क्वार्टर में रहते थे पर ट्रांसफर के बाद छोड़ना पड़ा । हम कोई सांसद या मंत्री तो हैं नहीं कि बिजली-पानी का बिल भी न चुकाएँ और मकान भी खाली न करें । और दिल्ली में अपना मकान तो देवताओं का होता है । आप उन्हीं दिल्ली के देवी-देवताओं के पुजारी हैं । पता नहीं, आप हमें किस श्रेणी में रखेंगे ?
खैर, महामहिम की जूण से इसी जन्म में ही मुक्ति मिल गई । वैसे जब आप जयपुर आए थे तब भी आप कहते थे कि दिल तो दिल्ली में ही है । बार-बार दिल्ली के चक्कर लगते रहते थे । पर जब राजग का सितारा डूबा तो आपने त्याग पत्र नहीं दिया | ठीक भी है | म्यूजीकल चेयर में एक ट्रिक होती है कि जब तक आगे वाली कुर्सी खाली न हो जाए तब तक हाथ वाली कुर्सी मत छोड़ो । सो दिल्ली में कुर्सी खाली होते ही आपने महामहिम के चोले को राम-राम कर लिया ।
वैसे महामहिम का पद भी कोई पद है । न रैली, न जुलूस, न भाषण, न शोर-शराबा, न चहल-पहल । बस, ताज पहन कर बैठे रहो किसी गोष्ठी के अध्यक्ष की तरह । अधिक किया तो पुरस्कार वितरण कर दिया । मौका लगा तो सरकारी खर्चे पर तीर्थ यात्रा कर ली । पर यह जीना भी कोई जीना है, लल्लू । खैर, फिर वही घोड़े और वही मैदान । राम-मन्दिर और कश्मीर के शाश्वत मुद्दे की तरह दिल्ली के आवासीय क्षेत्रों से औद्योगिक इकाइयाँ हटाने का गरमागरम मुद्दा आपका इंतजार कर रहा है । शुभास्ते पन्थानं । अब दिल्ली तो दिल्ली है भाई साहब । ये बाजरे की रोटी खाने वाले, टीलों में रहने वाले, कैर-साँगरी और खेलरों पर गुजारा करने वाले क्या जानें दिल्ली के मज़े ?
दिल्ली में तो नलों में पानी की जगह बीयर आती है, पिज्जा की होम डिलीवरी है, रोज शाम को नाटक, प्रदर्शनी, गोष्ठी, फैशन परेड होते रहते हैं । किसी भी कार्यक्रम में जाकर चार प्लेटें नाश्ते की फाड़ दो और अगले दिन शाम तक खाने की छुट्टी । दिल्ली में साढ़े सात सौ एम.पी.हैं किसी से भी मिलने की सुविधा । यहाँ पर तो सरपंच तक टाइम नहीं देता । बीसों पत्रिकाएँ और अखबार निकलते हैं । चार लाइनें लिख कर चक्कर काटना शुरू करो तो कहीं न कहीं पार पड़ ही जाती है । रावळे का तेल है साहब, पल्ले में भी भला ।
तो आप उसी दिल्ली में पहुँच गए । दिल्ली भारत का दिल, आप दिल्ली के दिल, आपके दिल में हम और हमारे दिल में हेमा मालिनी । बस, आप तो हमारे लिए हेमा जी से टाइम लेकर रखियेगा । और हम दिल्ली के रिहायशी इलाकों से औद्योगिक इकाइयाँ न हटाने के लिए आप द्वारा निकाले जाने वाले जुलूसों, रैलियों में बिना टी.ए.,डी.ए.के शामिल होंगें । और यह क्या, आपने 'धूम' पिक्चर देखी । दूसरों की मचाई धूम देखने की क्या ज़रूरत थी अभी तो माशा-अल्ला आपके ही धूम मचाने के दिन हैं ।
२७-१०-२००४
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