Oct 9, 2018

चेम्पियंस ऑफ़ अर्थ के लिए बधाई-यात्रा



 चेम्पियंस ऑफ़ अर्थ के लिए बधाई-यात्रा

आज तोताराम ने आते ही एक नए कार्यक्रम की घोषणा की- बधाई यात्रा |

बोला- अब तो सातवें पे कमीशन के अनुसार फिक्सेशन भी हो गया |सौ रुपए रोज की पेंशन भी बढ़ गई |अब तो दिल्ली चला चल, मोदी जी को बधाई देने |

हमने कहा- बधाई किस बात की ? बहुत रुला-रुला कर किया है फिक्सेशन |अभी तो पौने तीन साल का एरियर बाकी है |और यह फिक्सेशन भी कोई दिल से थोड़े ही किया है |बधाई ही देनी है तो अपने उन साथियों को दे जिन्होंने कोर्ट में रिट लगाई थी | कोर्ट के आदेश के दबाव में किया है फिक्सेशन |

बोला- तुझे पता नहीं, सरकार के पास लटकाने और टरकाने के हजार रास्ते हैं |अब देखना जेतली जी एरियर के लिए कम से कम २०२४ तक रुलाएँगे | वैसे बधाई से मेरा मतलब पे कमीशन जैसी किसी छोटी-मोटी बात से नहीं था |मैं तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार 'चेम्पियंस ऑफ़ द अर्थ' से सम्मानित किए जाने के उपलक्ष्य में दिल्ली जाकर बधाई देने की बात कर रहा था |

हमने कहा- हम से पूछे बिना ही, तीन-तीन मंत्रालयों ने सैंकड़ों करोड़ खर्च करके, सभी अखबारों में पूरे-पूरे पेज के विज्ञापनों द्वारा  बधाई दे तो दी समस्त भारत की ओर से |ये जो गैस, पेट्रोल के पैसे बढ़ रहे हैं ये किसकी जेब से जा रहे हैं ? और कहाँ जा रहे हैं ? इन्हीं बधाइयों और विज्ञापनों में तो जा रहे हैं |अब दिल्ली जाकर बधाई देने में हजार-पाँच सौ रुपए और खर्च करें ?  वैसे एक बार पता तो कर ले कि यह सम्मान है या पुरस्कार ?

बोला- इनमें क्या फर्क होता है ?

हमने कहा- पुरस्कार थोड़ा महँगा होता है मतलब एक लाख का पुरस्कार किसी साहित्यकार को दिया जाता है तो पहले तीन चौथाई रकम नकद ले ली जाती हैऔर |किसी सामाजिक कार्यकर्त्ता को दिया जाता है तो दो-तिहाई |है |किसी व्यापारी को दिया जाता है तो एक लाख के पुरस्कार के दो लाख लिए जाते हैं |किसी देश को दिया जाता है तो उससे हजार-दो हजार करोड़ का कोई सौदा पटाया जाता है |सम्मान सस्ते होते हैं क्योंकि उसमें केवल सम्मान होता है | अभिनन्दन-पत्र, शाल, श्रीफल, स्मृति-चिह्न,  जल-पान, टेंट हाउस आदि के खर्च के अतिरिक्त सम्मानित करने वाली संस्था को भी उसकी औकात के अनुसार कुछ देना होता है |

बोला- कुछ भी मोदी जी को विश्व में एक प्रकार से स्वीकृति तो मिली |यह कोई छोटी बात है क्या ?

हमने कहा- ये सब सस्ते में खुश करने के तरीके हैं |२०१५ में बंगलुरु में मोदी जी ने  एंटोनियो गुतेरस को 'प्रवासी सम्मान' दिया था अब वे उन्हें यह 'चेम्पियंस ऑफ़ द अर्थ' का सम्मान देने आ गए | न तो कोई सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता में मदद करने वाला है और न ही एन.एस.जी. में प्रवेश होना |इन छोटे-मोटे टोटकों से झूठा गर्व  जाग्रत किया जा रहा है ?

जहाँ देश में गन्दगी और कूड़े-कचरे की बात है तो उसमें कोई फर्क नहीं आया है जैसे कि 'बेटी बचाओ' के बावजूद बलात्कार बदस्तूर चालू है | सुबह-सुबह प्रसून जोशी की  'स्वच्छता की नदी की छल-छल' सुनते रहो |पता नहीं, इसमें कितनी स्वच्छता की छल-छल है और कितना विज्ञापन का छल-छंद' |

बोला- इसका मतलब पर्यावरण को सुधारने में मोदी जी का कोई योगदान नहीं है ?

हमने कहा- यह किसने कहा ? हम तो कहते हैं कि यह उनके और उनके अनुयायियों के वैदिक मंत्रोच्चार का प्रभाव है कि इतने धुआँधार विकास के बावजूद देश में प्रदूषण कम हुआ है |मंत्रोच्चार से मार्च २०१९ तक ७०% गंगा साफ हो जाएगी |ऐसी सुरक्षित तकनीक दुनिया में और किस देश के पास है ? उन्हें तो मन्त्रों द्वारा पर्यावरण को शुद्ध करने के इस आविष्कार के लिए अलग से विज्ञान का नोबल पुरस्कार दिया जाना चाहिए |

बोल- और उनकी विनम्रता देख कि वे इसका श्रेय त्यागपूर्वक भोग करने वाले  मछुआरों, किसानों और भारतीय गृहणियों को देते हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदखल करके देश की खनिज सम्पदा का क्रूर दोहन करने वालों को खुली छूट देना कहाँ तक उचित है ?

बोला- तू क्या समझता है ?मोदी जी को इसकी फ़िक्र ही नहीं है ?  अरे, ये शौचालय धरती से निकाले गए समस्त पदार्थों को तत्काल रिचार्ज करने के लिए ही तो बनाए गए हैं |है ना, अद्भुत संतुलन ? पुरस्करणीय आयोजन |




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