Oct 17, 2018

नेचुरल कॉल



 नेचुरल कॉल 

हम नेता नहीं बन सके |बात १९५८ में कॉलेज के ज़माने की है |जब हम अपनी कालेज की छात्र संघ के महासचिव बने थे |हम निर्विरोध बन गए क्योंकि एक ग्रुप ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था | किसी खर्चे-पानी के नेता बन गए |वैसे उस ज़माने में दिल्ली के छात्रसंघों के चुनाव में करोड़ों खर्च होने की बात तो दूर, एक पैसा भी खर्च नहीं होता था |होता भी कहाँ से ? किसी के पास होता ही कहाँ था पैसा ? आज लोकसभा तो बहुत बड़ी बात है, पंचायत का चुनाव लड़ना भी सामान्य आदमी के बस का नहीं है |और फिर क्या-क्या कर्म-दुष्कर्म नहीं करने पड़ते नेता बनने से पहले और बाद में ? इसलिए हमें उनसे सहानुभूति नहीं है लेकिन ईर्ष्या भी नहीं |

आज एक खबर के साथ फोटो भी छपा |हमारे राजस्थान के एक विधायक मुख्यमंत्री के एक होर्डिंग के पास पेशाब कर रहे हैं |लोगों को तो मौका चाहिए |लगे आदर्श और भाषण झाड़ने |कांग्रेस वालों को तो इसमें अतिरिक्त रुचि लेनी ही थी |और नहीं तो यही मुद्दा सही |हमने भी तोताराम से ठरक लेने के लिए अखबार उसके सामने रख दिया और कहा- देख |

बोला- क्या देखूँ ? क्या दर्शनीय है इसमें |एक मनुष्य एक होर्डिंग के पास ज़मीन पर बैठकर पेशाब कर रहा है |

हमने कहा- मनुष्य नहीं, विधायक है तुम्हारी पार्टी का और होर्डिंग है मुख्यमंत्री का |

बोला- तुझे पता है मल-मूत्र त्याग को नेचुरल कॉल क्यों कहा गया है ? इसलिए कि यह स्वाभाविक है |इससे कोई भी नहीं बच सकता |भगवानों का तो पता नहीं क्योंकि उनके स्थानों में कहीं अटेच शौचालय नहीं होता |लेकिन मनुष्य को तो हाजत होने पर यह सुविधा चाहिए |इसीलिए सभी बड़े आदमियों के ऑफिस में अटेच शौचालय होता है |पता नहीं कब हाई कमांड से ऐसा-वैसा फोन आ जाए |और सुविधा न हो तो कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पेंट-पायजामा ख़राब हो जाए |

हमने कहा- फिर भी जब सारा देश शौचालय में घुसा हुआ है तो एक नेता को तो ध्यान रखना ही चाहिए |

बोला- नेता कोई अतिमानव नहीं होता |डर और ज़बरदस्त हाजत में कपड़ों में निकल जाता है |ये तो बेचारे दीवार की तरफ मुंह करके सभ्यता से बैठे हैं |वैसे तो नेता ताकत और पद के नशे में देश के सिर पर पेशाब कर रहे हैं |बिना सोचे समझे देश के करोड़ों नागरिकों को पाकिस्तान जाने की धमकी देना क्या किसी गन्दगी फ़ैलाने से कम है ? पेशाब तो फिर भी दो मिनट में सूख जाएगा लेकिन अपशब्दों का असर तो शताब्दियों तक रहता है | 

हमने कहा- क्या दो मिनट रुक नहीं सकते थे ?

बोला- रुकने की तो बात मत कर |दुनिया में कोई ऐसा आदमी नहीं होगा जिसका  कभी पतले दस्त होने पर पायजामा ख़राब नहीं हुआ हो या सपने में बिस्तरों में ही पेशाब नहीं निकल गया हो |हमारे ज़माने तो गुरूजी के दो थप्पड़ खाकर ही बच्चों का क्लास में पेशाब निकल जाता था |यदि इसके बारे में भी 'मी टू' कैम्पेन चले और लोग सच बोलें तो लाइन लग जाएगी ऐसे मामलों की |

यदि विश्वास न हो तो किसी तीस मार खां नेताजी को पी.एम.ओ.ऑफिस से कोई ऐसा-वैसा फोन करवा दे और फिर उसका पायजामा चेक कर |

हमने कहा- कोई बात नहीं |चाय आगई |अब मूत्रालय से बाहर आ जा |








 


 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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