Feb 18, 2020

राजनीति में हीनोपमा अलंकार

 राजनीति में हीनोपमा अलंकार


गिरिराज सिंह जी

गिरिराज सिंह (फाइल फोटो)हम नेता नहीं हैं जो किसी को भी, कभी भी आधा-अधूरा जैसे मन चाहें उद्धृत कर दें |हम तो मास्टर हैं और वह भी हिंदी के |छंद-अलंकार से अधिक हमारे पास क्या है ?  सही पूछें तो नेताओं जैसे ढंग के दो जोड़ी कुरते पायजामे भी नहीं हैं |दोनों हाथों में चार-चार अंगूठियों की तो बात ही क्या करना ? अकेले छंद से बात नहीं बनती जब तक उसके साथ 'छल' न हो |जैसे साहित्य में छंद-अलंकार होते हैं वैसे ही राजनीति में छल-छंद होते हैं |

वैसे हम आपको पात्र लिखने से पहले अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं और उसका कारण शुरूमें ही आपके नाम के अक्षरों की संख्या और उसमें अवस्थित कई बड़ी-बड़ी संज्ञाएँ | हम तो साढ़े पाँच फुट के दुबले-पतले व्यक्ति हैं और कहाँ आप शुरू ही 'गिरि' (पहाड़ ) से होते हैं |बात यहाँ तक ही नहीं ठहरती |गिरि ही नहीं गिरि के भी राज |हिमालय |भारत की रक्षा करने वाला पर्वतराज | और भाई साहब ऊपर से 'सिंह' (जंगल का राजा ) हो सकता इसी कारण आपको मोदी जी ने पशुपालन विभाग दिया है |उसमें पता नहीं आप पशुओं की रक्षा करते हैं या मनुष्यों को पशु बनाते हैं |लेकिन जहां तक दुर्दशा की बात है तो गाय से लेकर गधे तक सबका एक जैसा हाल है |हाँ, नर-पशु मज़े में हैं फिर चाहे वे राजनीति में हों या व्यापार में या संसद से सड़क और सड़क से संसद तक छुट्टे घूमने वाले सांड |

हम ही क्या सारा देश आपके बयानों से भलीभाँति परिचित है |यह तो गनीमत है कि लोगों में थोड़ी बहुत अकल बची है अन्यथा या तो अपना सिर फोड़ लें या सामने वाले का |आप तो जनता की पहुँच से दूर हैं |शायद नेताओं को इसीलिए विशेष सुरक्षा प्रदान की जाती है |

आपका ताज़ा बयान है कि देवबंद आतंकवाद की गंगोत्री है |अब कहाँ तो आतंकवाद और कहाँ गंगा ? आप तो गंगाजल में शराब मिला रहे हैं |ठीक है उपमाओं-रूपकों और प्रतीकों से भाषा और बात प्रभावशाली  हो जाती है लेकिन सही प्रयोग के बिना बात का सत्यानाश हो जाता है |तभी कहा गया है कि शूद्र अर्थात अज्ञानी या अधकचरे ज्ञान वाले को वेद नहीं सुनाने चाहियें नहीं तो अर्थ का अनर्थ कर डालेगा |आपने भी वैसा ही किया है |आजकल सारे देश में अपनी राष्ट्रवादी पार्टी की देव वाणी तुल्य अनुप्रासात्मक शब्दावली राजनीति में इस कदर प्रवेश कर गई है कि लोग गंगा, गाय, गीता, गाँधी के साथ गोडसे और गू तक जोड़ देते हैं |आप ने भी वही कर दिया |

तो बात अपन ने छंद-अलंकर से शुरू की थी |अलंकार दो प्रकार के होते हैं- अर्थालंकार और शब्दालंकार |अभी हम जिस गोडसे, गू अदि की चर्चा कर रहे थे वह है शब्दालंकार |मतलब की बिना अर्थ जाने भी उसका मज़ा लिया जा सकता है जैसे कि मोदी जी के नारों का |लगता है अनुप्रास से सजी कोई कविता-धारा बह रही है- स्वच्छ भारत : स्वच्छ भारत;  सबका साथ : सबका विकास, हर हर महादेव की तरह घर-घर मोदी, अबकी बार : मोदी सरकार |

जहां तक अलंकार दोष की बात है तो वह सभी में मिल जाता है |जोश में ऐसा ही होता है |नायिका भी नायक के आने का समाचार सुनकर उत्वाली में चेहरे पर महावार और पैरों में काजल लगा लेती है |मोदी जी का १५ मार्च २०१९ का वह मंत्र-वाक्य देखिए-

चुनाव यज्ञ होता है |
क्या कहें ? कहाँ यज्ञ और कहाँ चुनाव जिसमें सभी नैतिक मूल्यों की बलि दे दी जाती है |एक से एक गर्हित कर्म चुनाव जीतने के लिए किए जाते हैं |किसी अच्छी चीज की साथ तुलना या समानता में कोई घटिया चीज (उपमान .उपमेय ) लगा देने से जो विकार पैदा होता है उसे 'हीनोपमा' कहते हैं |इसी तरह केशवदास ने एक जगह समानधर्मिता के कारण राम के साथ उल्लू का उपमान लगा दिया- वे कहते हैं राम दूसरों की संपत्ति को उसी प्रकार देखना तक पसंद नहीं करते जैसे उल्लू दिन की सम्पदा (रोशनी) को |आपने भी यही गलती कर दी है जब आप कहते हैं कि देवबंद आतंकवाद की गंगोत्री है |

अरे भाई, कोई और उपमा दे सकते थे |कह सकते थे- देवबंद आतंकवाद का शराबखाना है |क्या गंगाजल का पान किसी को कट्टर या उन्मादी बनाता है ? वह तो मन-प्राण को शीतल करता है |यदि इस उपमा में इस समय गन्दा नाला बन चुकी गंगा आपके दिमाग में हो तो बात ठीक है |लेकिन गंगोत्री में तो अब भी गंगाजल अमृत समान है |

इतने पर भी गलती रह ही जाती है क्योंकि देवबंद से पहले 'देव' शब्द आता है |देवों में तो आतंकवाद जैसी बात नहीं होनी चाहिए |इन्द्र लम्पट था और सदैव अपने सिंहासन के लिए खतरा बन सकने वाले के साथ छल-छद्म करता था पर आतंकवाद नहीं फैलाता था |योगी जी को चाहिए कि कम से कम देवबंद का नाम तो ठीक कर दें क्योंकि जब आपके न चाहने और  'देवबंद' नाम होते हुए भी जब वहाँ आतंकवाद की गंगोत्री स्थित है तो क्यों न उसका नाम तो कम से कम 'दानव बंद' रखा ही जा सकता है |कम से कम लोग नाम से भ्रमित तो नहों होंगे |










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