Feb 15, 2020

भक्तों से भयभीत भगवान



 भक्तों से भयभीत भगवान 


आदरणीय कैलाश जी 


आज नेट पर केजरीवाल के बारे में आपकी नेक सलाह और सद्वचनों के साथ आपका फोटो भी देखा |सच में आनंद आगया |बिलकुल पेशेवर कथावाचक लग रहे हैं |वैसे यदि पेशेवर कथावाचक होते तो शायद जिस पद पर हैं उससे भी बड़ा कोई पद मिल सकता था |योगी जी को ही देख लीजिए, महंताई का कितना बड़ा पुरस्कार ! कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा |अब यह बात और है कि पिछले साढ़े आठ महीनों में जहां-जहां भी आप जैसे संतों और महंतों के चरण पड़े लगातार पार्टी का बंटाढार ही होता आ रहा है |

अब आपका प्रेम केजरीवाल पर प्रकट हो रहा है |इस प्रेम का पता नहीं क्या कारण है ?वैसे जब केजरीवाल नामांकन भरने गया था तो हनुमान भक्ति का नाटक नहीं किया था और न ही वाराणसी की तरह सारे शहर की सांस रोक दी थी |हमें नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव, मनमोहन सिंह, सोनिया आदि का नामांकन याद है और राजीव, संजय, प्रियंका की शादियाँ सब याद हैं |किसी ने आजकल के नामांकनों की तरह नाटक नहीं किया |सब कुछ शांति और शालीनता से हुआ |




अब भी जब तरह-तरह के भूत पिशाच कभी आतंकवादी, तो कभी पाकिस्तान का समर्थक कहते हुए बालक केजरीवाल के पीछे पड़ गए तब उसके पास इनसे निबटने के लिए हनुमान चालीसा के अतिरिक्त और उपाय ही क्या था ? और देखिए,  हनुमान जी की कृपा से भूत पिशाचों से उसे ही नहीं दिल्ली की जनता को भी मुक्ति मिल गई | 

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आप इस फोटो में शायद रामचरितमानस बांच रहे हैं |अच्छा है, कभी मानस को गुन भी लिया कीजिए |राम ने कभी रावण के प्रति भी अपशब्द नहीं कहे लेकिन दिल्ली के चुनावों में तथाकथित 'राष्ट्रीय' सेवकों ने जिस प्रकार की असंसदीय, अलोकतांत्रिक और अभद्र भाषा का प्रयोग किया उससे लगता है कि आपकी यह सलाह भी कोई 'नेकसलाह' नहीं है |

जिस प्रकार अपने यहाँ तेतीस करोड़ देवी देवता हैं उनमें कोई किसी को भी पूजता है तो क्या फर्क पड़ता है ? हरि को भजे सो हरि का होई |हमें तो राम और हनुमान में कोई फर्क नज़र नहीं आता |वैसे यदि आप कुछ पढ़ें तो पता चलेगा कि उस काल में यज्ञों में सभी देवताओं को भाग नहीं मिलता था |जब उमा अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में गई तो वहाँ उसने शिव का 'यज्ञ-भाग' वहाँ नहीं देखा तो उन्हें बहुत दुःख हुआ |और यह दुःख आगे चलकर किस रूप में परिणत हुआ, यदि अपने मानस को ध्यान से पढ़ा होगा तो पता होगा अन्यथा आजकल  राम का नाटक करने वाले बहुत से लोग बाजा-पेटी लेकर गाते घूमते रहते हैं |राम तो खुद कहते हैं-

शिवद्रोही मम दास कहावा |
यह मत मोहि सपनेहुँ नहिं भावा |

और आप देवताओं में भी बड़-छोट करते हैं |अब आपके अनुसार या तो केजरीवाल हनुमान को अपना आराध्य न माने या फिर दिल्ली के सभी स्कूलों, मदरसों में हनुमान चालीस पढ़वाए |और आपकी तरह धर्म के आधार पर प्रपंच खड़ा करे |आस्था, धर्म और विज्ञान मनुष्य के चिंतन के अलग-अलग स्वरूप हैं |उन्हें लेकर भ्रम और विवाद न फैलाएं |याद रखिए जब धर्म धंधा बन जाता है तो वह ईश्वर के विभिन्न नामों और रूपों को लेकर भ्रम, घृणा और विद्वेष फैलाता है |और यह दुनिया के सभी धर्मों पर लागू होता है |अन्यथा जब ईश्वर एक ही है, सभी उसकी संतानें हैं तो दुनिया में सबसे अधिक झगड़े और खून-खराबा धर्म के नाम पर ही क्यों हुआ और हो रहा है ?हमारे देश में भी शिव और विष्णु के भक्तों में संघर्ष हुआ है |उसके अवशेष आज भी दक्षिण भारत में मौजूद हैं |और इसीलिए तुलसी से राम के मुंह से उक्त चौपाई कहलवाई है |

और जहां तक हनुमान जी की बात है तो याद रखिए कि वे कहीं अशिष्ट और बड़बोले नहीं होते |सर्वत्र शांत, तार्किक और न्याय की बात कहने वाले |खुद को उनका अनुयायी और भक्त कहने वाले हम अपने बेटों तक को किसी अधिकारी से शिष्टता से बात करने की बजाय बल्ला चला देने पर, शर्मिंदा होना तो दूर, मुस्कराते हैं |यह तो हनुमान जी की भक्ति नहीं है |

जहां तक मदरसों में हनुमान चालीसा गवाने की बात है तो यही कह सकते हैं कि शिक्षा एक विज्ञान है जिसका किसी की व्यक्तिगत आस्था और धर्म से कोई लेना-देना नहीं है |वह प्रयोग और प्रमाण से पुष्ट सत्य के आधार पर होनी चाहिए |यदि आपने रामचरित मानस ध्यान से पढ़ा होगा तो उसके उत्तरकांड में तुलसी काकभुशुण्डी से कहलवाते हैं-

तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी॥
तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी॥3॥
भावार्थ
उन मनुष्यों में द्विज, द्विजों में भी वेदों को (कंठ में) धारण करने वाले, उनमें भी वेदोक्त धर्म पर चलने वाले, उनमें भी विरक्त (वैराग्यवान) मुझे प्रिय हैं। वैराग्यवानों में फिर ज्ञानी और ज्ञानियों से भी अत्यंत प्रिय विज्ञानी हैं॥

केजरीवाल को शिक्षा को धर्माडम्बरों से जोड़ने की सलाह देने की बजाय मोदी जी और शाह जी को सलाह दीजिए कि देश की शिक्षा व्यवस्था को निजी क्षेत्र और सभी धार्मिक संस्थानों यथा मंदिर, मस्ज़िद, चर्च, गुरुद्वारा आदि से निकाल कर समस्त देश में समान, निःशुल्क और विज्ञान आधारित बनाएं जिससे देश में स्वार्थो के लिए फैलाई जा रही फूट, अज्ञान और कट्टरता अपने आप दूर हो जाएंगे |हमारे लोकतंत्र का बड़ा होना जनसंख्या के आधार पर नहीं; जीवंत, न्याय और समानता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए |
यदि हनुमान भक्ति से ही दुनिया का कल्याण छुपा है तो कोई बात नहीं |यहाँ के हनुमान मंदिर आप और हम संभाल लेते हैं |हम तो तैयार हैं यदि आप सत्ता का सुख छोड़ने को तैयार हों तो ? और मोदी जी से भी कहें कि वे ट्रंप. पुतिन, शी जिन पिंग को हनुमान भक्ति सिखाएं जिनसे वे प्रायः मिलते और गले मिलते रहते हैं | और उससे पहले योगी जी से पूछ कर हनुमान जी की जाति तो तय कर लीजिए |क्योंकि हमारे यहाँ तो किसी की समस्त स्वीकार्यता जाति और धर्म पर ही आधारित है |
जहां तक भगवान की बात है तो वह बेचारा खुद ही नेताओं से परेशान है | पता नहीं, ये उसे कब, कहाँ फंसा दें |









 


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