Feb 10, 2020

ठाकुर का अनुराग और तिवारी जी की शरीयत



ठाकुर का अनुराग और तिवारी जी की शरीयत


एक ठाकुर थे |उनका लट्ठ पुजता था |लट्ठ पुजता था इसलिए ठाकुर थे या ठाकुर थे इसलिए लट्ठ पुजता था |बात एक ही है |जिसका लट्ठ पुजे वह ठाकुर हो ही जाता है |फिर तो तिनका भी शहतीर का काम करने लग जाता है |

सो ठाकुर जी का लट्ठ पुजता था लेकिन वे सभी के प्रति अनुराग रखते थे इसलिए लोग उन्हें अनुराग ठाकुर भी कहते थे |वे लोकतांत्रिक भी थे |अपने 'तंत्र' से 'लोक' को साधे रहते थे |वे 'लोक' और 'तंत्र' दोनों के खिलाड़ी थे |खेल के नियमों को सूक्ष्मता से जानने वाले क्योंकि एक ऐसे ही सूक्ष्म और वैज्ञानिक खेल के बड़े अधिकारी भी रह चुके थे |लोक और तंत्र में विश्वास होने के कारण वे सभी निर्णय 'लोक' की सहमति से लेते थे |वैसे वित्त विभाग भी उनके पास ही रहता था क्योंकि वित्त के बिना न तो 'लोक' कल्याण किया जा सकता और न ही लट्ठ पुजने लायक भक्त रखे जा सकते हैं |

वे किसी को भी दंड देने के लिए भी लोक को शामिल करते थे और अपने विचार बताकर फैसला लोक पर छोड़ देते थे |




एक बार उन्होंने खेल भावना अपनाते हुए अपनी न्यायप्रिय प्रजा के सामने एक स्थिति रखी-

देश के गद्दारों को ....

जनता भी ठाकुर जी की तरह न्यायप्रिय और न्यायविद; सो बहुत सोच-विचार के बाद फैसला दे ही दिया

गोली मारो सालों को

अब इसमें ठाकुर जी क्या करें ? लोकतांत्रिक व्यक्ति |जनता की सर्वसम्मत राय का अपमान कैसे करें ?
और जब जनता से सर्वसम्मति से फैसला दे ही दिया तो यह सोचने का भी प्रश्न कहाँ उठता है कि देश के प्रति गद्दारी क्या होती है ? और वास्तव में गद्दारी हुई या नहीं ? क्योंकि इसमें उन्होंने अपने ही नहीं, दूसरे धर्म का भी पालन किया था | कहा भी गया है-आवाज़े खल्क को नक्कारा-ए-ख़ुदा समझो |
ख़ुदा के हुक्म के आगे किसकी क्या बिसात ?

उनके कुलगुरु थे तिवारी जी |तिवारी जी भी पक्के लोकतांत्रिक, जिज्ञासु, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले |सब कुछ शास्त्र सम्मत करने वाले |वे सब कुछ शास्त्र सम्मत करने वाले एक मुल्ला जी के पास भी बैठा करते थे |एक दिन मुल्ला जी के पास एक व्यक्ति आया और बोला- मुल्ला जी, मुझे रास्ते में एक सुई पड़ी मिली है |मुझे क्या करना चाहिए ?
मुल्ला जी बोले-  तीन बार आवाज़ लगाओ |यदि कोई दावेदार आ जाए तो उसे दे देना नहीं तो अपने पास रख लेना |मुल्ला जी पास आया व्यक्ति तीन बार बोला- जिसकी हो, यह सूई ले जाए |एक आदमी आया और उसने कहा- यह सूई मेरी है |
वह सूई उसे दे दी गई |धर्म की रक्षा हो गई |

तिवारी जी को सत्य और न्याय की एक नई दृष्टि मिली |

जब लोग ठाकुर जी के गोली मारने के न्याय की बात लेकर तिवारी जी के पास गए तो तिवारी जी ने कहा- इसमें ठाकुर साहब की कोई गलती नहीं है |उन्होंने तो लोगों से केवल पूछा था - देश के गद्दारों को .....|अब जनता ने फैसला दिया तो इसमें ठाकुर साहब की क्या गलती ? मतलब कि अब कोई भी किसी को गद्दार कहकर गोली मार भी दे तो ठाकुर साहब क्या करें ? यह निर्णय तो जनता का था |भुगतें- गोली खाने और मारने वाले |ठाकुर साहब ने तो अपनी लोकतांत्रिक भूमिका निभा दी |


अब तो ठाकुर साहब का न्याय और तिवारी जी की शरीयत चल निकली |एक दिन ठाकुर साहब और तिवारी जी दोनों सब्जी की एक बाड़ी के पास से गुज़र रहे थे |बाड़ी का मालिक बाड़ी में कहीं अपने काम में लगा हुआ था |ठाकुर साहब न्यायप्रिय और लोकतांत्रिक तथा तिवारी जी भी पक्के धार्मिक और न्याय के लिए मनुस्मृति ही नहीं,   शरीयत तक को मानने वाले |

बाड़ी में लगे कच्चे-कच्चे बैंगनों को देखकर दोनों का मन डोल गया |खर्च दोनों में से कोई नहीं करना चाहता |दोनों एक से बढ़कर एक मुफ्तखोर |तिवारी जी ने तरकीब निकाली |

बोले- ठाकुर साहब, बाड़ी वाला तो दिखाई नहीं दे रहा है |क्या करें ? बिना किसी से पूछे कुछ लेना भी तो उचित नहीं |क्यों न इस बाड़ी से पूछ लेते हैं |

तिवारी जी ने धीरे से कहा- बाड़ी रे बाड़ी !

ठाकुर साहब ने उत्तर दिया - हाँ, मन्नू तिवाड़ी !

तिवारी जी ने कहा- रींगणा (बैंगन) ले लूँ दो-चार ?

ठाकुर साहब ने बाड़ी का प्रतिनिधित्त्व करते हुए उत्तर दिया- ले, ले ना दस-बार (बारह)

दोनों सज्जनों ने बैंगनों से थैला भर लिया और घर आ गए |

अब तो रास्ता खुल गया |न्याय और धर्म की ध्वजा लहराने लगी |रोज़ 'जन संपर्क' के बहाने सब्जी की बाड़ी की तरफ जाने लगे |बाड़ी वाला परेशान |छुप कर बैठ गया |

जैसे ही दोनों बैंगनों के थैले भरकर चलने लगे, बाड़ी वाले और उसके घर वालों ने धर्म और लोक के दोनों सेवकों को पकड़ लिया |ये दोनों हराम का खाने वाले, कामचोर और ऊपर से रँगे हाथों पकड़े गए  | फिर भी दोनों पक्के बेशर्म, ढीठ और कुतर्की |तिवारी जी ने कहा- हमने तो बाड़ी से पूछ लिया था |हमारी कोई गलती नहीं है |


बाड़ी के मालिक का नाम था-  बिसराम भूवा | वह भी तिवारी जी और ठाकुर जी के प्रभाव के कारण  लोकतांत्रिक और न्यायप्रिय बन गया था | इसलिए उसने तिवारी जी की तरह ही बाड़ी में स्थित अपने कूए से पूछा- कूआ रे कूआ  !

कूए ने उत्तर दिया-  हाँ, बिसराम भूवा |

बिसराम ने फिर पूछा- दोनों को खिलाऊँ डुबकी दो-चार |

कूए ने उत्तर दिया- खिलाओ ना, दस-बार (बारह)

दोनों सज्जनों को जनमत और शरीयत के समर्थन और सम्मति से दस-बीस डुबकियां खिलाई गईं |फ़िलहाल दोनों अस्पताल में हैं निमोनिया से ग्रसित |

अब पता नहीं, प्रचंड बहुमत और सर्वोच्च न्यायालय क्या फैसला लेगा ?

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment