Feb 24, 2020

हाउडी मोदी' की तरह ऐतिहासिक इवेंट 'नमस्‍ते ट्रंप'



हाउडी मोदी' की तरह ऐतिहासिक इवेंट 'नमस्‍ते ट्रंप' 

 

हम तोताराम का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन उसकी बजाय उसका फोन आया, बोला- पहुँच गए?
जब सामने वाला कोई प्रसंग-सन्दर्भ न दे तो पूछने की क्या ज़रूरत? हमने भी उसी तरह उत्तर दे दिया- पहुँचे हुए हैं?
बोलाः क्या ? पहुँचे हुए हैं? कब पहुँचे?
बोला- तू मेरी बात समझ नहीं रहा है। मैं ट्रंप साहब के अहमदाबाद पहुँचने की बात कर रहा हूँ।
हमने उत्तर दिया: हमें मालूम है। आज भारत के १३५ करोड़ लोग और क्या पूछ सकते हैं? इस समय देश के दिल, दिमाग और मन में ट्रंप के सिवा और क्या हो सकता है? कोई बेरोजगारी, सीएए, एनआरसी, महंगाई, जीडीपी, शाहीन बाग आदि की बात नहीं कर रहा है। करोड़ों लोग सरदार पटेल हवाई अड्डे से मोटेरा स्टेडियम के रास्ते में दर्शन के लिए अभी से कट्टा बिछाकर बैठे हुए हैं। हो सकता है अहमदाबाद में गरमी अधिक हो इसलिए बहुत से लोग अपने हाथों में ट्रंप को झलने के लिए हाथ वाला पंखा भी लेकर आए हुए हैं। जैसे आजकल माननीय किसी मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो पुजारी उनकी कृपा पाने के लिए भगवान को मंदिर के गेट पर ही ले आते हैं वैसे ही हो सकता है ट्रंप को विष्णु का अवतार मानाने वालों ने कहीं गाँधी जी को ही साबरमती आश्रम से उठा कर लाइन में न लगा दिया हो।
बोलाः लेकिन कार्यक्रम तो २४ फरवरी को साढ़े ग्यारह-बारहा बजे दोपहर का था।
हमने कहाः लेकिन बड़े लोग सुरक्षा की दृष्टि से किसी को सही कार्यक्रम नहीं बताते। हो सकता है लोगों को २४ का बताकर २३ को ही पहुंचे गए हों।
बोलाः लेकिन मेरी सूचना के अनुसार तो मौसम खराब होने की हालत में वे जयपुर भी उतर सकते हैं। कहाँ पहुंचे, कब पहुंचे?
हमने कहाः हमारा कहने का मतलब था कि मेज़बान और मेहमान दोनों ही पहुंचे हुए हैं?
बोलाः तुझे पता है, ‘पहुंचे हुए’ का मतलब क्या होता है? कहीं मोदी जी बुरा मान गए तो? वैसे वे तो कुछ नहीं कहेंगे लेकिन भक्तों का कोई भरोसा नहीं।
हमने कहाः तुम हमारी बात नहीं समझे। मोदी जी के मन में ट्रंप और ट्रंप के मन में मोदी जी २०१६ से ही पहुंचे हुए हैं।
बोलाः तो ओबामा जी का क्या हुआ?
हमने कहाः अब ओबामा जी से क्या मतलब। यदि २०२० में ट्रंप आगए तो ठीक, नहीं तो किसी और को दिल में बसा लेंगे। राजनीति का यही मतलब है। व्यक्ति नहीं, मतलब महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे अटल जी के मन्दिर का शिलान्यास करके लोग अब उसमें मोदी जी की मूर्ति स्थापित कर चुके हैं। सब जानते हैं इसलिए कोई ऐसी बातों का बुरा नहीं मनाता।
बोलाः वैसे मास्टर, तेरा मन क्या कहता है, इतने स्वागत से तो पत्थर भी पिघल जाता है। ज़रूर ट्रंप कुछ बड़ा करके जाएंगे।
हमने कहाः ये पहाड़ इतने चिकने नहीं है। यदि होते तो कुत्ते कभी का चाट जाते |हाँ, एक संभावना ज़रूर है।
बोलाः क्या?
हमने कहाः ‘हाउ डी मोदी’ में जैसे ट्रंप ने मोदी जी को ‘भारत का बाप’ बता दिया था वैसे ही ‘नमस्ते ट्रंप’ में मोदी जी उन्हें ‘अमरीका का बाप’ बता देंगे। हिसाब-किताब बराबर। बाकी तो जनता के पैसे पर दंड पेलना है। वहाँ भी भारत मूल के लोगों का पैसा लगा और यहाँ भी तेरे-मेरे टेक्स का पैसा लगना है।


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment