Feb 21, 2020

पश्चाताप की भाषा



पश्चाताप की भाषा 


आज दोपहर में अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली |कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी पार्टी का नहीं रह जाता बल्कि पूरे प्रदेश या देश का हो जाता है | यह बात और है कि कुछ लोग राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनने के बाद भी अपनी परिवारी-पार्टी से मुक्त नहीं हो पाते |हो भी कैसे सकते हैं क्योंकि उन्हें यह पद अब्दुल कलाम की तरह अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा के बल पर नहीं बल्कि पार्टी के शक्तिशाली शीर्ष नेतृत्त्व की कृपा से मिला हुआ होता है |भाजपा का कोई भी विधायक समारोह में नहीं पहुंचा |यह घृणा और ईर्ष्या का कैसा भद्दा प्रदर्शन है ? सामान्य शिष्टाचार का भी उल्लंघन है |ऐसे विधायकों से जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका की कोई आशा नहीं की जा सकती |

तोताराम भी हमारे साथ कार्यक्रम देख रहा था |बोला- कैसा लग रहा है ?

हमने कहा- बहुत अच्छा लग रहा है |घृणा, बड़बोलापन और अहंकार पराजित हुआ तथा सादगी, विनम्रता और सकारात्मकता की जीत हुई |

बोला- लेकिन तुम भाजपा को को दोष नहीं  दे सकते |चुनाव में तो कुछ ऐसा-वैसा हो ही जाता है |और फिर अमित जी ने कह तो दिया- हो सकता है पार्टी नेताओं द्वारा दिए गए नफरत भरे बयानों के कारण भाजपा को चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा हो |

हमने कहा- क्यों हो जाता है चुनाव में ऐसा-वैसा कुछ ? चुनाव क्या कोई युद्ध है या नशे में किया गया कुकृत्य है ? होली में भी यौन कुंठाओं की परोक्ष अभिव्यक्ति हो जाती है लेकिन तब भी क्या आदमी माँ-बहिन को भूल जाता है ? और यह माफ़ी ?  यह तो उसी प्रकार माफ़ी मांगना हुआ जैसे नमकहराम फिल्म में अमिताभ बच्चन राजेश खन्ना से माफ़ी मांगता है |यदि दिल्ली चुनावों में दिए गए बयान अनुचित थे तो तत्काल अमित जी उन्हें रोकते, अपने बदजुबान साथियों की ओर से माफ़ी माँगते | तब किसी प्रकार का कोई घटिया बयान चुनाव में सुनाई नहीं देता |लेकिन ऐसा नहीं हुआ |यहाँ भी उनका आशय यह नहीं है कि ऐसे विघटनकारी, विकृत और वैमनस्य से भरपूर शब्दों का प्रयोग गलत था |यहाँ वे केवल चुनावी नुकसान की बात कर रहे हैं और कटु शब्दों के लिए नहीं, चुनाव हार जाने से दुखी लग रहे हैं | अपशब्दों के लिए किसी प्रकार की लज्जा या पछतावे वाली बात नज़र नहीं आती |

बोला- चलो कोई बात नहीं, उनके सहयोगी दल के रामविलास पासवान ने तो कहा है कि इस वर्ष के अंत में होने वाले बिहार चुनावों में जुबान पर नियंत्रण रखना चाहिए |

हमने कहा- वे भी मन से घृणा समाप्त करने की बात नहीं सोचते-करते |यहाँ भी जीत हार का गणित ही मुख्य है, शालीनता नहीं |कल्पना कर .......

बोला- अब अगले पांच साल तक कल्पना करने और अरविन्द केजरीवाल को काम नहीं करने देने पर ही ध्यान केन्द्रित करना है |फिर भी बता क्या कल्पना करूं ?

हमने कहा- कल्पना कर, भाजपा को सभी सत्तर सीटें मिल जातीं तो अमित शाह क्या कहते-समझते ? अनुराग ठाकुर को उनकी दो महाकाव्यात्मक पंक्तियों के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार घोषित कर दिया गया होता | और राष्ट्रहित में उन पंक्तियों के आयाम को विस्तृत करते हुए, तुक सुधारकर कुछ इस प्रकार संशोधित कर दिया गया होता-

सभी विपक्ष वालों को
असहमत होने वालों को 
गोली मारो सालों को   

अब तक तो शाहीन बाग़ से लोगों को डंडे मारकर भगा दिया गया होता और आज से ही चाहे जिस को सी ए ए के नाम पर कंसंट्रेशन कैम्प में डाल दिया गया होता |और जहां तक भाषा का सवाल है तो वह माँ-बहन पर आ गई होती |

पश्चाताप और प्रायश्चित की भाषा मन से निकलती है मस्तिष्क से नहीं |  














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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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