Jan 5, 2021

अभी तो सूरज उगा है



 अभी तो सूरज उगा है 


सुबह हवा चल पड़ी. दो-चार बूँदें भी गिरीं. इसलिए तोताराम विलंब से आया. 

आते ही बोला- मास्टर, भाभी को बोल, जल्दी चाय बनाए, कड़क. 

हमने कहा- अर्ज़ किया है,

तू चाय भी पा जाएगा 

खाने को भी मिल जाएगा 

कुछ धैर्य धर, संतोष रख 

यूँ प्राण क्यों खाने लगा है 

अभी तो सूरज उगा है


बोला- तेरा दिमाग खराब है. ऊपर देख, सूरज दस हाथ चढ़ आया है. और लगा रखी है-अभी तो सूरज उगा है. लगता है मेरे आने से पहले तू एक-दो तिल के लड्डू भी खा चुका है और मुझे टरकाने के लिए 'अभी तो सूरज उगा है'. जाड़े के दिन वैसे ही छोटे होते हैं. काम करने वाले सूरज उगने से पहले काम में लग जाते हैं और तेरे जैसे आलसी कहते रहते हैं-  

अभी उठकर क्या करेंगे

अभी तो सूरज उगा है. 

चाय के दो चार कप पी

फिर रजाई में घुसेंगे 

एक छोटी नींद लेकर

दोपहर तक ही उठेंगे 

अभी तो सूरज उगा है. 





  हमने कहा- जब मोदी जी ने कविता सुनाई तो तुझे कोई हड़बड़ाहट नहीं हुई और हमारा एक बंद भी तुझसे झेला नहीं जा रहा है.उलटे हमें ही मन की बात सुनाने लगा. ठीक है, अपने राजस्थान के कवि वृन्द ने सच ही कहा है-

सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय 

पवन जगावत आग को दीपहिं देत बुझाय .

तोताराम ने भावुक होकर हमारे पैर छुए, बोला-  मास्टर, बुरा मान गया. मज़ाक करने और किसके पास जाऊँ ? मज़ाक करके ही तो दिल बहलाना है. सूरज तो रोज ही उगता है. भरे पेट वालों को उत्सव और नाटक का बहाना चाहिए. ऐसे बात करेंगे जैसे सूरज को इन्होंने ही उगाया है. और सूरज उग आया तो पता नहीं कौनसा चमत्कार हो गया. यह तो सृष्टि का सामान्य नियम है. सूरज और चाँद क्या कभी छुपते-उगते, घटते-बढ़ते हैं ! हर क्षण दुनिया में कहीं न कहीं सूर्योदय और सूर्यास्त होते रहते हैं. मानो तो हर क्षण नया जन्म है, हर क्षण नया सूर्योदय है, हर क्षण  नया साल है. और फिर कौन सोता है ? यः जागर्ति सः पंडितः . मोदी जी को बेरोजगारी, भय और फूट के समय में घबराए हुए देश को प्रेरित करने के लिए, धैर्य दिलाने के लिए लिखना पड़ा है कि

अभी तो सूरज उगा है.

धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा. अच्छे दिन भी आएँगे, सबके खातों में १५-१५ लाख भी आएँगे. जब सूरज उगने से पहले अँधेरे में ही कमल खिल गया. सारा दिन सामने पड़ा है. अभी तो सूरज उगा है. दोपहर तक पता नहीं कमल कितना खिल जाएगा. 

लेकिन तेरी कविता से मुझे लगा कि तू मुझे टरकाने के लिए कविता सुना रहा है.  वरना क्या मुझे पता नहीं कि तिल के लड्डू बनें और तोताराम को न मिलें.  

हमने कहा- तोताराम, बात तो सही है. हम भी कविता लिखना चाहते थे, प्रेम की कविता. लेकिन मौका ही नहीं मिला.  

बोला- कोई बात नहीं.  मेरी तरफ से एक और बंद भी सुन-

व्यर्थ की जल्दी करें क्यों

हड़बड़ाहट में मरें क्यों

चाय पी चर्चा  करेंगे 

बात करके फिर पियेंगे

पी-पी के चर्चा करेंगे 

अभी तो सूरज उगा है 


हमने कहा- तोताराम, आज तूने अपनी कविता के दो बन्द पेल दिए. अगली बार तू कुछ नहीं बोलेगा और चुपचाप हमारी कविता सुनेगा. 

बोला- लेकिन अगली साल के पहले दिन मतलब १ जनवरी २०२२ को, अभी नहीं.  












 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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