इन्दौरी कौवे और राजस्थानी मोर
तोताराम ने अखबार हमारे सामने पटकते हुए कहा- देख, तू यहाँ दुनिया के चर्चे करता रहता है और उधर इंदौर में ५० कौवे और राजस्थान के नागौर में ५२ मोर मृत पाए गए हैं. अब इनसे पता नहीं, किस प्रकार का कोरोना फैलेगा ? अभी कोरोना कोविड-१९ से मोदी जी अपने धाकड़ व्यक्तित्त्व से किसी प्रकार निबटने वाले हैं कि यह एक और नई आफत !कैसे और कौनसा इलाज किया जाए इनका ? पता नहीं, ताली-थाली बजाने से नियंत्रित होगा या नहीं.हो सकता है गोबर का लेप और गौमूत्र का पान करना पड़े.
बोला- कैसी साम्प्रदायिकता, कट्टरता और अंधविश्वास की बात करता है ? क्या पशु-पक्षियों, दूध-पानी और रंगों के कोई जाति-धर्म होते हैं ?
हमने कहा- होते क्यों नहीं, क्या गाय मुसलमान हो सकती है ? क्या बकरी ब्राह्मण हो सकती है ? क्या कोई मुसलमान सूअर का मुसलमान होना स्वीकार कर सकता है ? क्या कोई मुसलमान भारत में आ रहे वेक्सीन को स्वीकार करेगा जब तक वह सूअर से लिए गए पदार्थ से मुक्त और हलाल सिद्ध नहीं हो जाता ? यदि किसी राष्ट्रवादी सवर्ण हिन्दू खुले आम गाय की मज्जा से बनने वाला टीका लगवा लेगा ? आखिर जब तक इनका धर्म निर्धारण नहीं हो जाता तब तक हमारी तो संवेदना ही जागृत नहीं होती.
बोला- क्या तुझे इतने भर से संतोष नहीं होता कि कौवा एक घरेलू पक्षी है. जो घरों में आता है, बच्चों से छेड़खानी, शैतानी करता है. हमारा तो भक्त कवि कितने गर्व से कहता है-
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी.
और हमारे काकभुशुण्डी तो अमर हैं, गरुड़ जी तक उनसे ज्ञान लेने जाते हैं. और राजस्थानी विरहिणी तो पति का सन्देश लाने पर कौवे की चोंच सोने से मँढ़वाने का वादा करती है. यदि इन्द्र का पुत्र जयंत कौवा बनकर सीता के पैर पर चोंच नहीं मारता तो राम के बाण का अमोघपना कैसे सिद्ध होता ?
हमने कहा- लेकिन तूने कौवों और मोरों का धर्म और जाति तो बताये ही नहीं तो हम क्या ज़वाब दें.
बोला- कौवे इंदौर के हैं जहां से हनुमान भक्त कैलाश विजयवर्गीय आते हैं, और जहां उनके सुपुत्र किसी के साथ भी 'दे दनादन' कर देते हैं. वहाँ के ये कौवे या तो देशद्रोही धर्म के हैं जो मरकर भाजपा शासित मध्यप्रदेश में कोई नई प्रकार का बर्ड फ्लू फैलाने आए हैं.
हमने पूछा- और मोर ?
बोला- मोर तो हिन्दू के अतिरिक्त किसी और धर्म का हो ही नहीं सकता. क्योंकि कहीं मोर कार्तिकेय और सरस्वती का वाहन है, तो महान हिन्दू राष्ट्र का राष्ट्रीय पक्षी है, और यदि हिन्दू नहीं होता तो क्या इतने प्रेम-भाव से मोदी जी के हाथ से दाना चुगने आता ? हो सकता है राजस्थान की किसी गैर देश भक्त पार्टी के नेता ने मोरों को कोई ज़हरीला दाना खिला दिया हो.
हमने कहा- तोताराम, कौवों में बड़ी एकता होती है. कुछ अज्ञात बीमारी से मरे हैं तो कुछ इनके शोक में काँव-काँव करके मर जाएंगे.
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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