Jan 13, 2021

तू किसानों का दर्द क्या समझेगा


 तू किसानों का दर्द क्या समझेगा 


बोला - रात को तो अपने सीकर में शीतमान -.५ चला गया. 

हमने कहा- हाँ, तभी रात भर पैर ठंडे पड़े रहे. अब सोच दिल्ली की सीमा पर ट्रेक्टरों के नीचे पड़े किसानों का क्या हाल हुआ होगा.

बोला- तुझे क्या फ़िक्र है. मज़े से सोता रहा बंद कमरे में रजाई पर कम्बल डालकर. बात बनाना और बात है लेकिन तू किसानों का दर्द नहीं समझ सकता . तू कोई किसान और चाय बेचने वाला, गरीब माँ के पेट से जन्म लेने वाला थोड़े ही है.  मुफ्त की खीर खाने वाला पेटू ब्राह्मण है. तुझे क्या पता कहाँ से और कैसे गेहूँ आता है और तू जितने दूध की खीर खा जाता है उतने में कितने कप चाय बन सकती है. 

हमने कहा- तो क्या ये संवेदनशीलता के मापदंड तय करने वाले दोनों तथाकथित गरीब और किसान दिल्ली के बोर्डर पर धरना दिए हुए किसानों के प्रति संवेदनशील होकर अपने बंगले के बरामदे में पड़े ठिठुर रहे थे ? 

बोला- ठिठुर नहीं रहे थे तो भी इन्हें किसानों के दुःख के कारण चिंता में रात भर नींद नहीं आई. दूसरे दिन सवेरा होते ही बेचारे फिर वार्ता के लिए निमंत्रण भिजवाने लगे. और क्या चाहता है तू सेवकों से ? यह इनका किसान-प्रेम ही है जिसके कारण महीने भर से रोज वार्ता करने की ड्यूटी पर ईमानदारी से हाज़िर हो जाते हैं. अन्यथा इन्हें देश का विकास करने से ही फुर्सत नहीं है. सत्तर साल का कचरा साफ़ करना और फिर नया भारत बनाना. कोई मज़ाक नहीं है. 
हमने कहा- तो फिर इसमें इतना समय क्यों लगा रहे हैं. किसानों की बात सुनें और फैसला करें और फिर लग जाएं विकास में. वे तो बेचारे खुद अपना घर-परिवार, खेत-खलिहान छोड़कर सर्दी में ट्रोलियों में पड़े हैं. हाँ-ना में ज़वाब चाहते हैं. कहा भी है- दाता से सूम (कंजूस) भला जो फटाफट उत्तर दे. टाइम तो खोटी न करे. अब खेती के बारे में राजनाथ सिंह ज्यादा जानते हैं या राहुल गाँधी इससे किसी को क्या मतलब है. बात किसानों की है, इसमें राहुल कहाँ से आगया ? 

बोला- लेकिन धरना स्थल फोटो देखकर तो नहीं लगता कि किसान परेशान हैं. मज़े से अलाव ताप रहे हैं, लंगर छक रहे हैं, गाने बज रहे हैं, वाशिंग मशीनें और गीज़र लगे हुए हैं.मुझे तो लगता है ये भरे पेट वाले कुछ खालिस्तानी  दिल्ली में पिकनिक मनाने आये हैं. वैसे तू सरकार की मज़बूरी क्या समझेगा. तेरा क्या है ? अभी कोई वीर, सेवक जयघोष करता हुआ हवाई फायर कर देगा तो फटाफट अपने शब्द वापिस ले लेगा लेकिन यह सरकार का मामला है. सरकार भी कैसी, जो ३०३ सीटों पर जीती है और चुनाव-दर-चुनाव जीतती चली जा रही है. थोड़ा समय तो मिले. सबके सामने थूककर चाटने में थोड़ा संकोच तो होता ही है. 

हमने कहा- ठीक है, थूककर चाटना बहुत जुगुप्सा का काम है लेकिन थूकने वाले को थूकते समय कम से कम इतना तो सोच ही लेना चाहिए कि यदि चाटना पड़ा तो ? 

खैर, कवि वृन्द का एक दोहा सुन-

निर्बल को न सताइए वाकी मोटी हाय
मरी खाल की साँस सो लोह भसम हो जाय 


 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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