विधवा पेंशन
आते ही तोताराम ने न्यूज ब्रेक की- लगा आ, जयपुर का चक्कर. दिसंबर में राजनीतिक नियुक्तियाँ होने वाली हैं.
हमने कहा- हाँ, अब सारे राजनीतिक काम ही होंगे. कोई आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, नैतिक काम तो होने नहीं. हर शब्द, हर काम, हर फैसले में तुच्छ राजनीति ही हो रही है. किसी के लिए रोना-धोना भी राजनीतिक गणित के हिसाब से. जाने कब से जन कल्याण, रोजगार के लिए निकली गई दस-दस साल पुरानी रिक्तियों की परीक्षाओं और साक्षात्कार के नतीजे आ चुके हैं लेकिन नियुक्तियां नहीं हो रही हैं लेकिन राजनीतिक नियुक्तियां फटाफट. और फिर हम कोई राजनीतिक विधवा तो हैं नहीं जो कोई आस लगाएं.
बोला- क्या मतलब ?
हमने कहा- ये नियुक्तियां कोई सरकारी नौकरी वाली नियुक्तियां थोड़े ही हैं. ये तो वैसे ही खैराती मामला है. जिन्हें मंत्रीमंडल में अडजस्ट नहीं कर सके उन्हें एक टुकड़ा फेंकना है. क्या पता कब कम पड़ जाए. इनका क्या है, जब चाहे हटा दो. रखैल क्या बेवफाई के खिलाफ कोर्ट में जा सकती है ? पत्नी थोड़े है ? सरकारी नौकर को हटाने के लिए कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है. राजनीतिक नियुक्ति की औकात कल ट्रंप ने अपने चुनावी धाँधली वाले बयानों को खारिज करने वाले चुनाव अधिकारी क्रिस क्रेब को बर्खास्त करके दिखा दी या नहीं ?
हमने कहा- हमें तो अपनी पेंशन मिल रही है. उसमें काम चला लेंगे जैसे हमारे मित्र जो तीन बार अकादमी के अध्यक्ष रहे. जब-जब, बारी-बारी सरकार बदलती वे एक बार अध्यक्ष बनते और दूसरी बार इस्तीफा देते. लेकिन कभी इस तरह निकाले जाने की नौबत नहीं आने दी. ये राजनीतिक नियुक्तियां विधवा-पेंशन है जिसे कभी भी लात मारकर नकारा जा सकता है.
बोला- इस बहम में मत रहना. राष्ट्रहित को समर्पित सरकार है. राष्ट्रहित में कुछ भी कदम उठा सकती है. डी.ए. फ्रीज़ पड़ा है कि नहीं आठ महीने से. क्या कर लिया किसी ने ? कौन बोलकर राजद्रोह के अपराध में बिना मुकदमे के हिरासत में ही सड़ना चाहेगा !
इसलिए यदि महामहिम पान की पीक थूकना चाहें और आसपास पीकदान न हो तो निः संकोच तत्काल अपना मुँह खोल देने वाला ही सबसे अधिक फायदे में रहता है.
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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