Mar 14, 2022

आतंक के उद्गम


आतंक के उद्गम 


ठीक है, बसंत पंचमी भी बीत गई. ऋतु की बात अलग है, उसका फिर भी एक नियम होता है लेकिन मौसम ! नेता, चोर, स्वयंसेवक, चंदा-संग्राहक और आतंक की तरह पता नहीं, कब किधर से प्रकट होकर वार कर दे. 'नारायण की तरह कब, किस रूप में' 'मिल जाए. सो ऋतु तो बसंत की है लेकिन मौसम खराब है. जाते-जाते झपट्टा मार रहा है. बादल घिरे हुए हैं और हवा भी तेज हो रही है.

तोताराम कमरे में बैठा ही चाय पर व्यर्थ की 'चाय-चर्चा' कर रहा है. चर्चाओं से होता क्या है ? साल भर नरेन्द्र तोमर चर्चा ही करते रहे लेकिन अंत में मोदी जी ने अति नाटकीयता अपनाते हुए माफ़ी मांगकर मौसम की तरह सबको चौंका दिया. अब यह बात और है कि किसान आशंकित है कि पता नहीं, कब रूप बदलकर फिर तीन कृषि कानून आ जाएँ. गैस, पेट्रोल उपभोक्ताओं की तरह पांच राज्यों के मतदान के बाद मूल्य-वृद्धि की बिजली गिरने की आशंका से टेंशनित हैं.

तभी गेट पर कुछ हलचल सी हुई. हमने बाहर जाकर देखा तो एक पुरानी-सी साईकिल दीवार के साथ लगाकर खड़ी की हुई थी. हम उन्हीं पाँव लौट आये और तोताराम से पूछा- तोताराम, हमारा तो दिमाग काम कर नहीं रहा है. तुझे यदि याद हो तो पुलिस का नंबर बता. 

बोला- तू क्या कोई माननीय है जो पुलिस तेरी मक्खियाँ उड़ाएगी. अभी तो कंगना, राम-रहीम और कुमार विश्वास की सुरक्षा में व्यस्त होगी. ज़्यादा हाय-तौबा करेगा तो कल तक आ जायेगी लेकिन पहले कोई दुर्घटना या खतरा सिद्ध तो होने दे.

हमने कहा- जब फट जाएगा तो शिकायत करने के लिए जीवित कौन बचेगा. 

बोला- क्या फट जाएगा, कलेजा या कुछ और ?

हमने कहा- बम. 

बोला- तू इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है कि तेरे लिए बम का खर्चा किया जाए. 

हमने कहा- प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या ? हाथ कंगन को आरसी क्या ? गेट के पास एक पुरानी सी साइकल खड़ी है.

बोला- होगी किसी मजदूर की. पास ही कहीं दीवार ले लगा पेशाब कर रहा होगा. यहाँ कौन सार्वजनिक शौचालय या पेशाबघर बने हुए हैं. दीवार की ही ओट है.

हमने कहा- हमें तो याद नहीं था लेकिन जब मोदी जी ने हरदोई की चुनावी जनसभा में साइकिल को आतंकवादियों से जोड़ते हुए कहा है- ‘यहां समाजवादी पार्टी का जो चुनाव सिंबल है, शुरू के जो बम धमाके हुए वो सारे के सारे बम धमाके उन्होंने साइकिल पर रखे हुए थे. मैं हैरान हूं कि साइकिल को उन्होंने क्यों पसंद किया.’ अब साइकिल और आतंकवाद तो ऐसे जुड़ गए जैसे कीचड़ और कमल. 

बोला- पहले जब इनामी आतंकवादियों के फोटो छपते थे तो सभी दाढ़ी वाले होते थे तो क्या हर दाढी वाले को आतंकवादी मान लें ?

हमने कहा- हालांकि यह ठीक नहीं है फिर भी सच पूछे तो तोतारम, हमें दाढ़ी वाले गैर सिख अधिक विश्वसनीय नहीं लगते, विशेषरूप से काली दाढ़ी वाले.

बोला- कुछ वर्षों पहले ट्रेन में मित्रता के बहाने नशीली चाय पिलाकर लूट लेने की घटनाएँ बहुत होने लगी थीं. इसमें कई बार स्टेशन पर चाय बेचने वाले भी मिले हुए रहते थे. अपराधी चाय वाले को सीचित कर देता था कि मैं अमुक डिब्बे में हूँ. चाय वाला वहीँ आकर चाय की आवाज़ लगता. ऐसे में चाय में कोई नशीला पदार्थ मिला होने की संभावना कैसे हो सकती है. हमारे एक मित्र विदेश में जैन धर्म पर व्याख्यान देकर दिल्ली से ट्रेन से जयपुर लौट रहे थे.  जयपुर पहुँच कर ट्रेन की सफाई करने वाले ने जब पुलिस को सूचना दी तो लुट चुके बेहोश मास्टर जी को अस्पताल पहुँचाया गया. 

अब क्या स्टेशन पर चाय बेचने वाले हर आदमी को संदेहास्पद मान लिया जाए. 

हमने कहा- वैसे जब से रावण ने साधु के वेश में सीता का हरण किया तब से हमें तो हर भगवाधारी संदेहास्पद लगने लगा है. मोदी जी को इस पद पर बैठकर इतना साधारणीकरण नहीं करना चाहिए था. 

बोला- जब वोट के लायक गिनाने को कोई काम नहीं हो तो चुनाव जीतने के लिए इसे ही चुटकुलों का सहारा लेना पड़ता है.  



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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