Mar 24, 2022

यह केजरीवाल आखिर चाहता क्या है ?


यह केजरीवाल आखिर चाहता क्या  है ?       


आज तोताराम ने आते ही बड़ा आध्यात्मिक प्रश्न उछाला- मास्टर, यह केजरीवाल आखिर चाहता क्या है ? 

हमने कहा- बहुत बार आदमी को ही खुद को पता नहीं होता कि आखिर वह चाहता क्या है ? जो चतुर होते हैं वे यह नहीं बताते कि वे वास्तव में क्या चाहते हैं. कोई पूछता है तो भी आँय बाँय साँय कुछ भी बता देते हैं लेकिन सच नहीं बताते कि आखिर वे चाहते क्या हैं ? तो फिर केजरीवाल ही क्यों बताये कि वह क्या चाहता है ? 

बोला- फिर भी बताने में क्या बुराई है ? 

हमने कहा- जब कोई किसी विशेष उद्देश्य से प्रेरित होकर कुछ करता है तो भले ही वह अपने मुंह से कुछ नहीं कहे फिर भी सब को पता चले बिना नहीं रहता कि यह बन्दा क्यों चक्कर काट रहा था.जैसे अडवानी जी रामनामी ओढ़कर अयोध्या चल पड़े लेकिन बाद में पता चला कि मन में तो राम नहीं थे. २ से २०० हो गए तो पता चला कि बोल कुछ और रहे थे और चाह कुछ और रहे थे. जैसे मोदी जी पहले अडवानी के रथ के सारथी बने 'अयोध्या-अयोध्या.. एक सवारी अयोध्या ... की आवाजें लगाते थे और अब..रथी बरामदे में बैठे हैं और सारथी सिंहासन पर. जैसे रामदेव पहले राजीव दीक्षित को सिर पर उठाये फिरता था, फिर अन्ना के आन्दोलन में घुसा और अब सरकार के स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर कोरोना का काढ़ा बेच रहा है. वैसे केजरीवाल भी अन्ना-आन्दोलन से लाभान्वित हुए ही. जीते जी निर्वाण को प्राप्त तो अन्ना और अडवानी हुए. अब कोई नोटिस ही नहीं ले रहा है. 

बोला- अब तो केजरीवाल को शांत बैठ जाना चाहिए लेकिन जाने कहाँ-कहाँ फ्री बिजली-पानी की डुगडुगी बजाता फिर रहा है. 

हमने कहा- एक बार मज़ा आ जाने पर आदमी को पता नहीं चलता कि वह क्या करने आया था ?  वास्तव में चाहता क्या था ? और कर क्या रहा है ? अंत में कबीर वाली हालत हो जाती है- 

आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास.

यह ठीक है कि कबीर जी हरिभजन के लिए आये थे लेकिन जब जुलाहे का पुश्तैनी काम कर रहे थे तो  क्या उन्हें  पता नहीं था कि कपास भी ओटना पड़ेगा. वे तो खड्डी चलाते हुए भी निर्गुण में रम सकते थे तो फिर यह कपास ओटने का रोना क्यों ? 

बोला- जब ईश्वर एक है, समस्त सृष्टि उसी का पसारा है तो फिर यह हिन्दू-मुस्लिम का चक्कर क्या है, भजन-अजान का हल्ला क्या है और दया की बात करने वालों में हलाल और झटका किसने ला पटका ? इनकी शाश्वत  बदमाशियों से निबटने की 'मेंढ़क-तुलाई' कपास ओटना नहीं तो और क्या है ? कबीर को यही कपास ओटनी पड़ीं. मज़े की बात यह है कि जीव वस्त्रहीन ही आता है और वस्त्रहीन ही जाता है. उसे हर वक़्त यह अहसास भी बना रहता है कि दिन में दस ड्रेसें बदलने का 'फेंसी ड्रेस शो' करने के बाद भी कपड़ों के भीतर सभी नंगे हैं. पर यह  केजरीवाल आखिर चाहता क्या है ?

हमने कहा- पता नहीं.

बोला- तो फिर अयोध्या क्यों गया ?

हमने कहा- यही पता चल जाए तो बात ही क्या है ? आदमी की सारी भटकन ही समाप्त ना हो जाए.लेकिन कौन किसे समझाये. योगी जी निर्गुण पंथी हैं जो मूर्तिपूजक नहीं होते फिर सगुण राम की कपास क्यों ओटने लगे ?मोदी जी तो आत्मज्ञान और विश्व कल्याण के लिए हिमालय में चले गए थे फिर यह हिन्दू-मुस्लिम, गाँधी-नेहरू और टोपी-दाढ़ी में कहाँ उलझ गए ?

बोला- यह तो लोकतंत्र की मज़बूरी है. ऐसा किये बिना चुनाव नहीं जीते जा सकते और चुनाव जीते बिना जगत का कल्याण करने का एकाधिकार मिलाना संभव नहीं. इसलिए मोदी जी और योगी जी को गृहत्यागी और सन्यासी होते हुए भी यह पकास ओट रहे हैं.

हमने कहा- तो फिर केजरीवाल के अयोध्या जाने से क्या ऐतराज़ है ? उसे भी ओटने दो राम की कपास. समझ ले  जो मोदी जी चाहते हैं, जो योगी जी चाहते हैं, वही केजरीवाल चाहता है.  

बोला- लेकिन यह क्या 'कॉपीराइट' कानून के उल्लंघन का मामला नहीं बनता ? 



 


 

अरविंद केजरीवाल
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