Mar 16, 2022

अनाज, नाज और हरनाज


अनाज, नाज और हरनाज 


आते ही तोताराम ने हमारे सामने अखबार पटकते हुए कहा- नाज है कि नहीं ?

हमने ध्यान से अखबार को देखा कि कहीं भारत को सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता तो नहीं मिल गई, कहीं माल्या, नीरव और चौकसे तो भारत नहीं ले आये गए, कहीं भारत की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डोलर की तो नहीं हो गई, कहीं मोदी जी ने नैतिकता के आधार पर टेनी से इस्तीफा तो नहीं ले लिया, वैसे उसके संरक्षण में  काम तो अनैतिक ही हुआ है, कहीं भागवत जी ने मुसलमानों को भारत का स्वाभाविक नागरिक तो नहीं मान लिया, कहीं गोडसे को उसकी देशभक्ति के फलस्वरूप भारतरत्न तो नहीं दे दिया गया, कहीं आडवानी जी को राष्ट्रपति तो नहीं बना दिया गया, कहीं अनुराग ठाकुर ने गोली मारने का सांप्रदायिक सद्भाव वाला आदेश वापिस तो नहीं ले लिया, कहीं मोदी जी ने भारत के विनाश के लिए नेहरू-गाँधी और उनके वंशजों को क्षमा तो नहीं कर दिया ? लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था.

हमने कहा- हमें तो इसमें नाज करने जैसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया .

बोला- गंगा में डुबकी लगाने के बाद तीसरी विशिष्ट सुनहरी पोशाक धारण किये काशी विश्वनाथ कोरिडोर के मेहराबदार द्वार से प्रवेश करते मोदी जी को देखकर तुझे नाज नहीं होता ?

हमने कहा- अब तो इस प्रकार के नाज रोजाना ही देखते-देखते आदत सी हो गई है. संसद की सीढियों पर माथा टेकते, १५ लाख का सूट पहने, पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा का उदघाटन करते, हाउ डी मोदी में स्वागतित होते, केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाते, ओबामा को चाय पिलाते, जिनपिंग के साथ झूला झूलते, सैंकड़ों करोड़ के निजी प्लेन से डिज़ाईनर छाता ताने उतरते हुए, आधी रात को सेन्ट्रल विष्ठा का निरीक्षण करते, गंगा में डुबकी लगाते हुए, अंगुली पर कमल का निशान बनाए हुए सेल्फी लेते जैसे सैंकड़ों अवसरों पर नाज करते-करते थक गए हैं. आदमी हंसते-मुस्कराते भी थक जाता है. जब सारे दिन हजारों फोटो खिंचते हों तब कब तक फोटोग्रफरीय 'स्माइल'का नाटक किया जा सकता है. अब नाज करने जैसा कुछ नहीं लगता. 

बोला- तो कोई बात नहीं, इसी अखबार के दाहिनी तरफ देख, एक सुंदरी, २१ साल बाद फिर बनी भारत की कोई युवती ब्रह्माण्ड सुंदरी. शीर्षक बनाया गया है- हर को नाज. तो चल इसी पर नाज कर ले. 

हमने कहा- जब भरपूर नाज हो तो नाज हो. अकेले यूपी में ही पंद्रह करोड़ लोगों की यह हालत है कि मोदी जी  और योगी जी के फोटो छपे घटिया अनाज के थैलों के लिए लोग लाइन लगा रहे हैं . विकास के सारे विज्ञापनों के बावजूद यह सिद्ध होता है कि यूपी में १५ करोड़ महागरीब हैं. ऐसे में इस देश का सामान्य आदमी किस पर और क्या 'नाज' करे. वह तो 'अ' नाज है. जहां सबके पास नाज हो मतलब 'धान्य लक्ष्मी' हो तो इस पंजाबी लड़की हरनाज पर ही क्या, पूरे देश पर, अपने देश और जीवन पर नाज होने लगे. 

कुछ लोगों को रात को गहने पहने १६ वर्ष की एक लड़की सुरक्षित घूमती दिखाई देती हो लेकिन वास्तव में बेटियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं है. 'बेटी बचाओ' का नारा कुछ और ही अर्थ देने लगा है. लगता है बेटियाँ बहुत असुरक्षित हैं. चारों तरफ दरिन्दे घूम रहे हैं. ऐसे में किसी भी तरह अपनी अपनी बेटियों को बचाओ. और किसी तरह बच जाएँ तो जैसे हो सके पढाओ. उनकी रक्ताल्पता और कुपोषण की तो बात ही बहुत दूर है.

हम तो चाहते हैं कि हर बेटी सुरक्षित हो, उसे खाने के लिए पर्याप्त नाज मिले. हर बेटी हरनाज बने. २१ वर्ष में कोई  एक भारतीय लड़की विश्व सुंदरी चुनी गई तो इसमें नाज करने की क्या बात है.करोड़ों कुपोषित और डरी हुई लड़कियों को देखो. हर साल कोई न कोई लड़की विश्व सुंदरी बनती ही है. यह किसी देश की महिलाओं के विकास का मापदंड नहीं है. 

बोला-  ला, मेरा अखबार वापिस दे. तेरे जैसे लोगों को ही अटल जी ने एक बार मनहूस कहा था. 

हमने कहा- तोताराम, हम मनहूस नहीं हैं. हमें भी उत्सव, त्यौहार, दीपोत्सव बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन महलों के दीयों से झोंपड़ियों का अँधेरा तो दूर नहीं होता. जब 'हर' 'नाज' करेगा तब हमें अपने आप ही 'नाज' होने लगेगा. जब करोड़ों 'अ' नाज हैं तो क्या 'नाज' करें. 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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