May 18, 2022

दिल अभी भरा नहीं....


 दिल अभी भरा नहीं....


तोताराम गुनगुनाता हुआ प्रकट हुआ- दिल अभी भरा नहीं....

हमने कहा- जब मुफ्त का माल मिले तो किसका दिल भरता है. पैसे लगे तो आदमी कभी-कभी उपवास भी कर लेता है. हमारा आधी शताब्दी पुराना एक शे'र सुन-

'गर मुफ्त में मिलता हो तो खा जाएँ ज़हर भी

पैसे लगें तो चार दिन खाना नहीं खाते.

बोला- यह तू मुझे ही क्यों सुना रहा है ? यह तो सामान्य मानव स्वभाव है. और भारत में तो पक्का ही.  शादियों में नकली चीज़, मावे और पनीर खा-खाकर सबसे ज्यादा दस्त इस देवभूमि के लोगों को ही लगते हैं. प्रसाद खाकर भी मरने वाले प्रायः यहीं पाए जाते हैं. लेकिन इस गीत का तेरी इस घटिया चाय के लिए नहीं है. हाँ, यदि मोदी जी के हाथ की 'शी जिन पिंग या ओबामा वाली चाय' होती या 'वाइट हाउस वाला ब्रेकफास्ट' होता तो बात और थी. वैसे यह गीत तो मैं मोदी जी के भरूच, गुजरात में लाभार्थियों से एक वीडियो कांफ्रेंसिंग में बात करते हुए दिए गए बयान के सन्दर्भ में गुनगुना रहा हूँ जिसमें उन्होंने कहा है- 'दो बार प्रधानमंत्री बनना काफी नहीं है'. 

हमने कहा- यदि मोदी जी की बात है तो फिर और बात है. यदि उन्होंने कहा है तो यह सत्ता के लालची और किसी भी तरह जोड़तोड़ करके कुर्सी से चिपकने वाले सामान्य व्यक्ति की बात नहीं है. इसका ज़रूर कोई गहरा आध्यात्मिक अर्थ है. वे कुर्सी और सत्ता के लालची नहीं हैं. वे तो कई बार कह चुके हैं कि हम तो फकीर हैं. जब मन होगा, झोला उठाकर चल देंगे. जब चाहे बुद्ध की तरह आधी रात को गंगा के किनारे या किसी गुफा में जा बैठते हैं. जब जनता बार बार गाती है- 'अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं. अभी नहीं, नहीं नहीं'.  तब कहीं बड़ी मुश्किल से लौटते हैं.

बोला- हाँ, यह बात तो है. कोई दूसरा होता तो कह सकता था- मोदी किसी और ही सोने-चांदी का बना हुआ है लेकिन नहीं, जीवन की नश्वरता और क्षणभंगुरता से भरा हुआ क्या शाश्वत सत्य कहा है- मोदी किसी और मिट्टी का बना हुआ है. गुजरात की मिट्टी का.  

हमने कहा- वैसे सभी संतों ने जीव को मिट्टी का पुतला कहा है. वे मिट्टी का मतलब 'मिट्टी' ही मानते थे. फिर उसमें भेदभाव नहीं करते थे. सूरदास का पद है ना-

इक लोहा पूजा में रखत, इक घर बधिक परो

पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो 

और अंत में 

समदरसी प्रभु नाम तिहारो अपने पन हि करो.

लेकिन मोदी जी अपने राज्य गुजरात का मोह छोड़ नहीं सके. गुजरात की विशिष्टता पर उन्हें गर्व है. भारत के प्रधानमंत्री हैं तो भारतीय होने पर गर्व कर सकते थे. कह सकते थे मोदी भारत की उस मिट्टी का बना है जिसमें बुद्ध, कबीर, नानक, गाँधी ने जन्म लिया है. हम तो सारी ज़िन्दगी विद्यार्थियों को प्रार्थना में शपथ दिलवाते रहे कि भारत हमारा देश है. हम सब भारतयवासी आपस में भाई बहन हैं. हमें इसकी विविध संस्कृति पर गर्व है; आदि आदि. कहीं कोई राज्य और कोई धर्म नहीं. संतों में भी ऐसा कोई गर्व नहीं था. 

बोला- गर्व के बिना कोई बड़ा काम नहीं हो सकता. शताब्दियों से हीन भावना ग्रस्त हिन्दुओं में आज जो जोश उबला पड़ रहा है वह 'गर्व से हिन्दू कहने' से ही तो आया है. गर्व के बिना गौरक्षक सेना, विप्र सेना, धर्मसेना, दलित सेना, आदि तरह-तरह की सेनाओं जैसा कोई जोशीला संगठन नहीं बन सकता है. इसीलिए सभी धर्म भले ही ईश्वर को एक और सबको उसकी संतान मानें लेकिन सुपीरियर धर्म और भगवान अपने वाला ही रहेगा. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, क्या गर्व हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, यहूदी आदि कहने से आता है ?  क्या मनुष्य होना गर्व की बात नहीं है ? संत तो मनुष्य जन्म को सौभाग्य मानते थे क्योंकि इसके द्वारा हम दूसरों की सेवा कर सकते हैं. गुजरात के संत नरसी तो कहते थे- पर दुक्खे उपकार करे ते मन अभिमान न आणे रे.  दो बार प्रधानमंत्री बन जाने की गर्वोक्ति नहीं बल्कि सेवा करने का अवसर देने के लिए भगवान को धन्यवाद देना चाहिए. वैसे मोदी जी जितने लोकप्रिय हैं उसे देखते हुए तो जनता आजीवन उन्हें छोड़ने वाली भी नहीं है. 

बोला- पहली बार 'सेवक-सेव्य-भाव' का ऐसा अद्वितीय मेल मिला है. मोदी जी कहते हैं- दो बार प्रधानमंत्री बनना काफी नहीं है. और जनता कह रही है- नहीं, नहीं; अभी नहीं. अभी तो दिल भरा नहीं. 

या फिर जनता रूपी चित्रलेखा का भी तो यही आग्रह है- 

ए री जाने न दूँगी, ए री जाने न दूँगी

मैं तो अपने रसिक को नैनों में रख लूँगी ' 

हमने कहा- तभी उन्होंने कहा है, मेरा सपना 'सेच्यूरेशन' है. 

अब सेवा का 'सेच्यूरेशन' कब आता है ? और इसके 'सेच्यूरेशन' के निहितार्थ क्या हैं ? सेच्यूरेशन के बाद ?  यह तो केवल मोदी जी ही बता सकते हैं. 

खैर, अपन तो एक-दो साल के और हैं. जो जियेगा सो भुगतेगा. 

 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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