May 21, 2022

चुनावी कर्मकांड

चुनावी कर्मकांड 


१८ अप्रैल २०२२ के 'विश्वसनीय अखबार' का समाचार है इसलिए उसे आधार बनाकर लिखा जा सकता है. वैसे इस बात की भी पूरी संभावना है कि बयान देने और छापने वाला दोनों ही बड़ी सफाई से बदल भी सकते हैं. बलात्कारी, भड़काऊ बयान देने वालों को जमानत और सुरक्षा मिल सकती है तो एक बुजुर्ग मास्टर को झुठलाना क्या मुश्किल है ? लेखक के आलेख लिखने से पहले ही, भारत के किसी सुदूरतम भाग की पुलिस, किसी की भावनाएं आहत होने  की संभावना पर एडवांस में टिकट बुक करवाकर, प्लेन से जाकर उसे गिरफ्तार कर सकती है.

खैर, फिर भी समाचार इस प्रकार है-

अखिल भारतीय चिंतन बैठक (भास्कर १८ अप्रैल २०२२)

भोपाल. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत में जो गैर हिन्दू हैं वे हिन्दू पूर्वजों की ही संतान हैं. वे लोग मानें या न मानें. न राष्ट्र बदला और न पुरखे, सिर्फ गैर हिन्दुओं की पूजा पद्धति, तौर-तरीके और परम्पराएं बदली हैं. 

हिंदुत्व को लेकर भागवत ने कहा कि हिंदुत्व का कर्मकांड सिर्फ वोटों के लिए है. सारे राजनीतिक दल ऐसा कर रहे हैं. 


हमने तोताराम से कहा- तोताराम, भले ही हमारे विचार भागवत जी से नहीं मिलते हों लेकिन हमें उनके जैसा स्पष्ट वक्ता दुनिया में कहीं दिखाई नहीं देता.हालांकि वे शुद्ध सांस्कृतिक व्यक्ति है, राजनीति से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है फिर भी राजनीति के बारे में उन्होंने जो कहा है वह एक कटुसत्य है. क्या बात है ! हिंदुत्व का कर्मकांड सिर्फ वोटों के लिए है.

बोला- तो तुझे अब पता चला है. यह तो अंधे को भी दिखाई दे रहा है कि २०२४ में चुनाव हैं. दक्षिण भारत में हिन्दीभाषी अंधभक्तों की दाल गल नहीं रही है क्योंकि दक्षिण भारत वालों की अपनी संस्कृति, भाषा और इतिहास है. वे हमारी तरफ गोमूत्र और गोबर से नहीं बहल सकते. इसलिए उधर घुसपैठ करने के लिए कर्नाटक को चुना गया है. वहीँ हिजाब, हलाल, अज़ान सब कुछ हो रहा है.

हमने कहा- हमें भी लगता है कि इस समय हिन्दू राष्ट्र, अखंड भारत, हनुमान चालीसा, लाउड स्पीकर आदि जो कुछ हो रहा है उसका किसी के भले-बुरे से कोई संबंध नहीं है. उससे किसी का कोई लाभ-हानि नहीं होने वाला है. हिजाब, बुर्के, घूँघट या खुले मुंह, झटका या हलाल का किसी के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, सुख-दुःख से कोई संबंध नहीं है. यह सब चुनाव जीतने के लिए वोटों का ध्रुवीकरण करने का षड्यंत्र ही  नहीं बल्कि खुल्लम खुल्ला खेल है. इससे अधिक कोई व्यक्ति कितना साफ़ बोल सकता है ?

कर्मकांड धर्माचार्यों का लोगों को उलझाने का नाटक है. ईश्वर सभी जगह है तो किसी खास दिशा की तरफ मुंह करना, किसी ख़ास समय, ख़ास तरीके से पूजा करना या न करना सब कुछ बराबर है क्योंकि ईश्वर आपके कर्मों-कुकर्मों सब को जानता है. आपकी आवश्यकताओं और पात्रता को भी जानता है तो फिर लाउड स्पीकर से उसको सुनाने से क्या फायदा है ? वह तो मौन मूक जीवों की भी सुनता ही होगा.

बोला- किसी के मरने पर चाहे कितना ही लम्बा जुलूस निकालो, कितने की शोक सन्देश पढो, मरने वाले की कितनी ही ऊची मूर्तियाँ बनाओ कोई फर्क नहीं पड़ता. मरने वाला वापिस नहीं आता. सभी को एक दिन मरना ही है. यदि उसकी देह का मेडिकल कालेज को दान आकर दिया जाए तो मिट्टी कुछ तो काम आएगी. लेकिन ऐसा होने लगे तो कफ़न,काठी, श्मशान वालों के धंधे का क्या होगा, इस धंधे से श्मशान से मंदिर और चुनाव तक की राजनीति जुड़ी हुई है. किसी की हत्या करवाकर उसी की मूर्तियाँ बनवाना धर्म और राजनीति का प्रिय कर्मकांड  है.

हमने कहा- और क्या ?  जिस बुद्ध ने मूर्ति पूजा का विरोध किया, जो निरीश्वरवादी था उसीकी मूर्तियाँ बनाकर उसका कुंडा कर दिया. अब अम्बेडकर का कर्मकांड करके उसे भी प्रभावहीन करने का अभियान चल रहा है.

बोला- इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है गाँधीनगर रेलवे स्टेशन पर बना वह होटल जिसके टेरेस पर बैठकर गाँधी के साबरमती आश्रम को देखते हुए चिल्ड बीयर, बोद्का और शैम्पेन कुछ भी पी जा सकती है.भले ही इसे देखकर आश्रम में बापू की आत्मा, यदि अब तक वहाँ बने रहने का साहस जुटा पाई हो तो, चरखे से अपना सिर पीट रही होगी.

हमने कहा- तभी जब किसी धर्म में कर्मकांड की अति हो जाती है तो उसका विनाश तय है. जब किसी कृत्य के बाद 'कांड' लग जाता है तो वह 'आपराधिक' कृत्य हो जाता है जैसे हत्याकांड, गोलीकांड, शराबकांड ,जीपकांड, गोधराकांड, ओक्सीजनकांड, पेगाससकांड, बोफोर्सकांड, राफालकांड आदि.

अब पता नहीं, भागवत जी जिस कर्मकांड की ओर संकेत कर रहे हैं वह चुनाव जीतने के चक्कर में कौन-कौन से 'कांड' करवाएगा ?

कृष्ण अर्जुन को कर्मकांड का नहीं 'कर्म' का उपदेश देते हैं. संसार निस्वार्थ 'कर्म' से चलता है कर्मकांड के नाटकों से नहीं.  

कबीर कहते हैं-

जिवत पितर को अन्न न ख्वावैं

मूआं    पीछे     पिंड     भरावै  


  

 



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