Jun 8, 2022

ईश्वरीय न्याय बनाम रूल इज रूल

ईश्वरीय न्याय बनाम रूल इज रूल 


हम तो अब तक यही सोचते थे कि ठेकेदारों के बड़े मज़े हैं. करना-धरना कुछ नहीं बस, मज़े से जनता का पैसा विकास के नाम से फूँकने वाले नेताओं से मिलकर पराये माल पर दंड पेलो. वैसे ठेकेदार चाहे धर्मस्थानों में बैठे  भगवान के हों या नेताओं के लिए भले आदमियों से हफ्ता वसूली करने वाले स्वयंसेवक. न कोई ड्यूटी करते, न कोई धंधा-व्यापार. सुहब उठकर, बाल रंगकर, सफ़ेद जूते, पायजामा, कुरता और जैकेट पहनकर, मोबाइल पर बतियाते हुए कभी जिला मुख्यालय, तो कभी राज्य की राजधानी और यदि राष्ट्रीय स्तर के हुए तो देश-विदेश में उड़ते फिरो. अगर हथियारों के ठेकेदार हुए तो भले ही अनुभव साइकल के पंचर निकालने का न हो लेकिन युद्धक विमानों का ठेका दिलवाने बड़े साहब अपने साथ प्लेन में बैठाकर ले जायेंगे. रोज शाम को दारू पीओ,गाली-गलौज करो.

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, इन ठेकेदारों के बड़े मजे हैं. काम कैसा भी करो, पूरा करो या आधा-अधूरा करो, घटिया, करो या महाघटिया करो, सड़क बनाते ही टूट जाए या पुल उदघाटन से पहले ही गिर पड़े लेकिन इनको कोई फर्क नहीं पड़ता. 

बोला- ऐसा नहीं है मास्टर, जब इनका भी किसी पक्के सेवक से पाला पड़ जाता है तो आगे-पीछे तक का खाया-पीया सब निकल जाता है. अभी सुना नहीं, १२ अप्रैल २०२२ को कर्नाटक के हल्दिंगा गाँव में २०२१ में सड़क निर्माण के चार करोड़ रुपए का भुगतान रुका हुआ था. चेक पास करवाने के लिए मंत्री के सहायकों ने ४०% कमीशन माँगा. इतना मार्जिन नहीं बना होगा सो बेलगावी के ठेकेदार संतोष पाटिल ने एक निजी लॉज में आत्महत्या कर ली. नोट में लिख गया- मेरी आत्महत्या के लिए संबंधित मंत्री जिम्मेदार है.

हमने कहा- तोताराम, रूल इज रूल. ईश्वर के न्याय से कौन बच सकता है ?अपने पड़ोस में हरियाणा में चौधरी  बंसीलाल के सुशासन काल का एक किस्सा है. उनकी पार्टी के किसी बुज़ुर्ग कार्यकर्त्ता से काम करवाने के बदले में किसी अधिकारी ने पैसे मांगे. वह आदमी शिकायत लेकर जब चौधरी साहब के पास गया तो वे बोले- देख भाई, नियम तो नियम सै. इस नै कोई ना तोड़ सकै. तू पैसे ना दे तो कोई बात नहीं,मेरे पास तें लेज्या और अपना काम करवा ले. 

बोला- फिर यह कैसा सुशासन हुआ ? 

हमने कहा- जब किसी शासन में सबसे नियमानुसार रिश्वत लेकर काम किया जाता हो तो वह भ्रष्टाचार नहीं होता.

बोला- जब कुछ अनियमित आमदनी होती है उसका अपना एक रोमांच होता है. जब कोई भ्रष्टाचार नियमित हो जाता है तो उससे सेवक और अधिकारी को संतुष्टि नहीं होती. वह तो तनख्वाह की तरह हो जाता है. 

हमने कहा- मंत्री ईश्वरप्पा जी तो साक्षात् ईश्वर हैं तो उन पर कोई आरोप लगाना उचित नहीं है. उन्होंने तो एक मठ की ग्रांट रिलीज़ करने के लिए भी ३०% कमीशन माँगा था. जो भगवान को भी न बक्शे वह कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति तो वन्दनीय है. 

सतयुग में सत्यवादी हरिश्चंद्र ने बिना आधा कफ़न लिए अपने बेटे तक का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया. ऐसे में यदि ईश्वराप्पा ईश्वरीय नियमों का पालन करते हैं तो आलोचना क्यों ? ठेकेदारों को चाहिए कि सड़क बनाए बिना ही  वेरिफिकेशन करवाकर पेमेंट उठा लें और ४०% क्या ५०% ईश्वर की सेवा में अर्पित कर दें. 

भ्रष्टाचार की परंपरा का पान करना चाहिए. परंपरा 'परम' (ईश्वर) से भी परे होती है. ईश्वर भी उसका उल्लंघन नहीं कर सकता. किसी हनुमान जी के मंदिर में जाओ तो पुजारी एक ही झटके में आधा प्रसाद (४०% की जगह ५०%) निकाल कर शेष तुम्हें लौटा देता है. निकाली हुई मिठाई दुबारा बिकने के लिए मंदिर के पास की पुजारी जी की दुकान में चली जाती है. राम मंदिर तक के चंदे में ३५% की समृद्ध परंपरा निभाई जाती है.

तभी तोताराम ने अखबार पलटते हुए कहा- ले कर्नाटक का एक और समाचार ! उद्घाटन के तीसरे दिन ही पुल गिरा. 

हमने कहा- हो सकता है, अब तक 'सबके साथ : सबके विकास' का रेट ४०% से बढ़कर ५०% हो गया हो. उद्घाटन तक टिक गया यह क्या कम है ? यदि उद्घाटन से समय भी गिर जाता और दस-बीस दबकर मर जाते तब भी जर्मनी में भारत मूल के लोगों के बीच बिना नाम लिए राजीव और  कांग्रेस के पंजे को दोषी ठहराया जा सकता था. 

तोताराम बोला- मेरे ख़याल से अब तो सब कुछ 'आत्मनिर्भर भारत' की वेब साईट पर डिजिटल हो जाना चाहिए. जिसे भी हवाई अड्डा, सड़क, पुल, शौचालय, बुलेट ट्रेन, तरह तरह के कोरीडोर जो भी देखना हो मोबाइल पर देखे और अपने देशी-विदेशी मित्रों को फॉरवर्ड करे



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