Jun 11, 2022

बस, ५ सितम्बर तक.....

बस, ५ सितम्बर तक..... 


तोताराम आ चुका है, चाय अभी नहीं आई है. लेकिन चाय का आना उसी तरह तय है जैसे ज्ञानवापी में  निकली हर वस्तु शिवलिंग होना. 

वैसे  ज्ञानवापी हमारा विषय नहीं है क्योंकि 'ज्ञान' की 'वापी' से 'ज्ञान का जल' किसे पीना है. न किसी को शिव से मतलब है, न अल्लाह से.सबको घृणा का विष उछालना है. लोकहित के लिए विष पीने वाला कोई नहीं. शिव से तो तार तब जुड़ें जब 'महाठगिनी माया' से अवैध संबंध का सिलसिला टूटे. सबके अपने-अपने एजेंडे हैं. 

हमने कहा- तोताराम,  ५ सितम्बर तक. बस, उसके बाद नहीं. 

बोला- क्या तुझे अपने परलोक गमन का इल्हाम हो गया ? वैसे दिन तो शुभ है. अध्यापक दिवस. 

हमने कहा- हमारा अभी परलोक जाने का कोई इरादा नहीं है. अभी तो २०% बढ़ने वाली पेंशन का आनंद लेना है भले ही पेंशन की औकात 'वृद्धावस्था पेंशन' या 'प्रधानमंत्री अन्नदान योजना' जितनी ही रह गई है. फिर भी एक ठसका तो है ही. बैंक वाले अब भी घूर कर देखते हैं कि आ गए बुड्ढे मुफ्त का माल पेलने. 

बोला- तो फिर यह  'बस, ५ सितम्बर तक' वाला क्या चक्कर है. 

हमने कहा- अब इस 'बरामदा निर्देशक मंडल' की अध्यक्षता का कोई इरादा नहीं है. १ अगस्त २००२ से ३१ अगस्त  २०२२ तक २० वर्ष और पांच टर्म पूरे हो जायेंगे. बहुत हैं पांच टर्म. ५ सितम्बर २०२२ तक बढ़ी हुई पेंशन की ईमेल से सूचना आ जाएगी और तब तक पासबुक में नई पेंशन की एंट्री करवा लेंगे. उसके बाद महाभिनिष्क्रमण. 

बोला- जब आदमी की काम करने की नीयत नहीं होती तो ऐसा ही होता है. अभी तो हिन्दू राष्ट्र की प्रक्रिया बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ने लगी है. हमारी सेवाओं की बहुत ज़रूरत है. ऐसे में हिन्दू राष्ट्र और अखंड भारत का सपना अधूरा छोड़कर निकल लेना चाहता है ? मोदी जी को देख. पहले कहा करते थे- हम तो फकीर हैं, चल देंगे झोला उठाकर. कई बार तो केदारनाथ तक पहुँच भी गए थे. लेकिन अब जब बड़ा मिशन सामने आया है तो ताल ठोंककर, यह कहते हुए डट गए हैं- 'दो टर्म काफी नहीं हैं'. 

काम को 'सेच्यूरेशन' तक पहुंचाए बिना सांस लेने वाले नहीं हैं, भले ही दो क्या, दस टर्म हो जाएँ.

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमने तो बी.ए. में अर्थशास्त्र में 'उपयोगिता ह्रास नियम' पढ़ा था कि हर वस्तु की उपयोगिता एक सीमा के बाद कम होने लगती है.  

बोला- उसके अपवाद भी तो होते हैं. 

हमने कहा- सो तो हमने भी पढ़े हैं लेकिन उनमें कोई दम नहीं है. शराब, धन, दुर्लभ वस्तुएं, मधुर गीत या कविता,    सौन्दर्य आदि. लेकिन पांच-सात पैग के बाद किसे पता है कि आदमी पी रहा है या कपड़ों पर गिरा रहा है. जब संख्या में दस-बीस हो जाए तो फिर वह वस्तु दुर्लभ कहाँ रह गई ? 'भाइयो-बहनो' सुनते ही अब श्रोता खुश होने की बजाय हँसने लगते हैं. अडवानी जी मधुर होते हुए ही 'चित्रलेखा' का 'मन रे तू काहे ना धीर धरे' कब तक सुनें ?  शादी के दो महीने बाद विश्व सुंदरी 'फलां की बहू' और दो साल 'फलां की माई' हो जाती है.  

बोला- मास्टर, अब बात अर्थशास्त्र के इस पुराने नियम तक नहीं रह गई है. अब तो उपयोगिता के नए-नए नियम निकल आये हैं. आदमी चाहे कितना ही योगी और महात्मा बनने का ढोंग करे लेकिन जनता के बीच जाते समय अलग-अलग कोणों से दस बार शीशा देखता है. इस पर कोई उपयोगता ह्रास नियम लागू नहीं होता बल्कि

 'मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की'.

कल को अगर तेरे कहीं भी जाने पर 'जोशी-जोशी' की आवाजें आने लग जाएँ तो तू भी पद छोड़ना तो दूर की बात,  इस 'बरामदा निर्देशक मंडल' का खम्भा पकड़ कर बैठ जाएगा.   




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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