Jun 14, 2022

दिव्यचक्षु तोताराम

दिव्यचक्षु  तोताराम 


दो दिन से बहुत गरमी है. वैसे पिछले हफ्ते छींटा-छांटी हुई थी लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि उमस और बढ़ गई. वैसे ही जैसे पंजाब में जीत के बाद 'आप' अपने आप को भाजपा का विकल्प समझने लगी है. चूंकि 'चाय' के साथ 'चर्चा' का अनुप्रास जुड़ता है इसलिए सभी 'सेवकों' की तरह हम भी चर्चा करने के लिए मजबूरी में चाय पीते हैं. इसके अतिरिक्त 'चाय' नाम की इस संज्ञा के साथ मोदी जी का ग्लेमर तो है ही.

आज तोताराम ने आते ही एक अप्रत्याशित बात कही, बोला- मास्टर, आज चाय नहीं पीनी है. 

हमने पूछा- तो क्या पिएगा ?

बोला- वही जो फ्रिज में रखा है ? दूध और चीनी मिला बेल का शरबत.

हमने कहा- बात तो तेरी सच है. रात को बेल का बहुत सा शरबत बनाया था. अब भी एक जग बचा हुआ है लेकिन तुझे यहाँ बैठे-बैठे कैसे दिखाई दे गया.

बोला- तुलसी बाबा ने कहा तो है- 

जाकी रही भावना जैसी 

प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

प्रह्लाद भक्त को जब उसके पिता ने पूछा, बता तेरा राम कहाँ है ? तो प्रह्लाद ने उत्तर दिया- खंभ में राम, खड्ग में राम, तुझमें राम, मुझमें राम, जहां देखूँ तहँ राम ही राम. जैसे सावन के अंधे हो हरा ही हरा, हिंदुत्व के आवेश में मस्जिदों में शिव लिंग ही शिव लिंग.

भूखे को ऊंट का मींगणा भी गुलाबजामुन दिखाई देता है. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम प्रह्लाद और राम के मामले में एक ऐतिहासिक लोचा है. प्रह्लाद सतयुग में हुए और राम त्रेता में. ऐसे में प्रह्लाद 'बिफोर टाइम' कैसे राम का उल्लेख कर रहे हैं. जैसे महाभारत में इंटरनेट, सतयुग में  प्लास्टिक सर्जरी,  १९८८ में ईमेल और १९८९ में  डिजिटल कैमरा.  साहित्य के हिसाब से यह 'काल दोष' हुआ.  

बोला- ये सब अलौकिक विषय और अलौकिक आत्माओं की बातें हैं. ऐसे विषयों में न तो प्रश्न करना चाहिए और न ही जिज्ञासा. शंका तो करनी ही नहीं चाहिए. 'काल दोष' के चक्कर में क्यों अपना 'काल' बुलाता है. कोई भी सच्चा हिन्दू तेरा सिर फोड़ डालेगा.  तुझे ही मारने की धमकी दी जायेगी. तेरी कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जायेगी बल्कि तुझे थप्पड़ मारने वाले की भावना आहत होने के कारण तेरे विरुद्ध की रिपोर्ट लिखी जाएगी. परिचर्चा में पट्टाभि सीतारामैय्या की पुस्तक की एक कहानी का उदाहरण देने वाले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रविकांत का मामला पता है ना ? 

हमने कहा- वैसे बरामदे में बैठे-बैठे फ्रिज में बेल का ज्यूस देख सकने की तेरी इस दिव्य दृष्टि के राष्ट्र हित में और भी बहुत से उपयोग हो सकते हैं. इस समय मस्जिदों में नीचे हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ और हिन्दू प्रतीक ढूँढ़ने की तत्काल आवश्यकता है जिससे देश को २०२४ से पहले हिन्दू राष्ट्र और २०३० तक अखंड भारत बनाया जा सके.तू देखकर बता देना और फटाफट फैसला.अनावश्यक खुदाई की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. उपलब्ध बुलडोज़रों का देश में न्यायव्यवस्था बनाए रखने के लिए अन्यत्र उपयोग किया जा सकेगा. 

बोला- तेरी बात तो ठीक है लेकिन सरकार वास्तव में सभी मस्जिदों और अन्य  मुस्लिम स्थानों का झंझट तत्काल निबटाना नहीं चाहती. वह ऐसे मामलों को अनन्त काल तक जिंदा रखना चाहती है क्योंकि लोकतंत्र में चुनाव बार- बार आते रहते हैं और चुनाव जीतने के लिए ऐसे मुद्दे बने रहने चाहियें. अगर किसी दिन भारत के सभी मुसलमान एक साथ कह दें कि हम सबके पूर्वज हिन्दू थे और हम सब अब घर वापसी करके हिन्दू बनना चाहते हैं तो सबसे पहले भागवत जी कहेंगे- 'नहीं. फिर तो हमारे लिए कोई काम ही नहीं रहेगा. यही तो चुनाव जीतने का शर्तिया नुस्खा है'. जैसे कि त्वचा रोग के मरीज का इलाज. रोगी न मरे और न ही ठीक हो. डॉक्टर को निरंतर आजीविका उपलब्ध. किसी मुसलमान नेता को भी यह सुझाव पसंद नहीं आएगा. 

हमने पूछा- तोताराम,  तू चाहे तो इस कला से कमाई भी कर सकता है. विज्ञान और तर्क के इस युग में भी भारत में ज्योतिषियों और तांत्रिकों का एक बड़ा बाज़ार है. अब तो विश्वविद्यालयों में भी भारतीय संस्कृति की आड़ में नितांत अवैज्ञानिक ज्योतिष और तंत्र-मन्त्र के विभाग खुल गए हैं. कल से तेरा भी एक वर्गीकृत विज्ञापन शुरू कर देते हैं-

गोल्ड मेडलिस्ट, तांत्रिक सम्राट, तोताराम. फीस नहीं इनाम लूंगा. किया-कराया, वशीकरण, सौतन, गड़ा धन, प्यार में धोखा.शर्तिया समाधान. 

जब नेता तक ज्योतिषियों की राय से उद्घाटन, शिलान्यास और शपथ-ग्रहण करते हैं तो साधारण लोगों का फंस जाना क्या मुश्किल है. वैज्ञानिक कहे जाने योरप में चर्च और वेटिकन तक में भूत-प्रेत भगाने का कोर्स करवाया जाता है. 

वैसे यह जिज्ञासा तो है तोताराम कि तुझे यह दिव्यदृष्टि कैसे प्राप्त हुई ? 

बोला- कोई दिव्यदृष्टि नहीं है. तुक्का है. गरमी में सभी अपने यहाँ प्रायः बेल का शरबत, ठंडाई आदि बनाते ही हैं.सबको अपने-अपने मतलब की चीज ही दिखाई देती है. जैसे बिल्ली को सपने में छीछड़े ही दिखाई देते हैं वैसे ही  नेता को हर स्थिति में कुर्सी दिखाई देती है अन्यथा भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्त्व को सबसे ज्यादा गन्दी गालियाँ देने वाले हार्दिक पटेल का भाजपा में हार्दिक स्वागत नहीं होता. हार्दिक को भी मोदी जी में देश का सर्वस्वीकार्य नेता दिखाई देने लगा है. बिना किसी जनाधार के बरसों कांग्रेस में मलाई काटने वाले कपिल सिब्बल को सपा में अचानक ऐसा क्या दिखाई दे गया ? सिब्बल को कुर्सी चाहिए और समाजवादी पार्टी को केंद्र सरकार के कानूनी पचड़ों का मुकाबला करने के लिए कोई वकील. जैसे कि गौशाला का चंदा निबटाने के लिए सभी गौसेवकों को कोई ढंग का चार्टर्ड एकाउंटेंट चाहिए भले ही वह बीफ खाता हो. नरेशचन्द्र अग्रवालों और कुलदीप सेंगरों के लिए सब पार्टियों में जगह है.

हर उठाईगीरे और पुलिसमैन को, हर सेठ और पुजारी को एक दूसरे में सदैव खुशबू आती है. 

हमने कहा- लेकिन शिवराज सिंह जी की दृष्टि तो तुझसे भी तेज है.उन्हें तो कल भोपाल में गरीब कल्याण सम्मलेन को संबोधित करते हुए अचानक मोदी जी में एक साथ ही गाँधी, पटेल और सुभाष दिखाई दे गए.

बोला- ठीक है, यह सब उनकी अपनी परिस्थिति के कारण है. पहले अटल अडवानी में लोगों को त्रिदेव दिखे थे, फिर मोदी, जेटली और नायडू में त्रिदेव दिखे और अब शिवराज जी ने तो तीनों को एक ही जगह मोदी जी में  देखकर मामला स्पष्ट ही कर दिया. 'प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका'.

हमने कहा- लेकिन तोताराम क्या इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की दरिद्रता सिद्ध नहीं होती ?

बोला- कैसे ? 

हमने कहा- ये तीनों ही किसी न किसी रूप में कांग्रेस मूल के हैं. क्या शिवराज सिंह जी को मोदी जी में कहीं भी हेडगेवार जी, गोलवलकर जी, उपाध्याय जी या अटल जी आदि की थोड़ी सी भी झलक दिखाई नहीं दी ? हमें तो इसमें भाजपा और संघ का अपमान लगता है. 

बोला- क्या किया जाए, मजबूरी है. सफल स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के कारण देश का जनमानस इन्हीं तीन महान पुरुषों से परिचित है. संघ परिवार के लोग तो उस समय सांस्कृतिक विकास करने में लगे हुए थे ना. 

हमने कहा- खैर, यह भक्त और भगवान के बीच का मामला है. भक्ति में बहुत शक्ति होती है. भक्त भगवान् को अपनी भक्ति की शक्ति से विवश कर देता है और फिर भगवान उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. लोक में प्रचलित भगवान द्वारा अपने भक्त का खेत जोतने की कथा तो तुमने सुनी ही होगी. 

बोला- वैसे मास्टर, और सब तो ठीक है लेकिन शिवराज सिंह जी जिन तीन महापुरुषों को एक साथ मोदी जी में देख रहे हैं उनके सम्मिलित विग्रह के रूप में मोदी जी दिखना भी चाहें तो दाढ़ी, मूंछ और लम्बे केश कहाँ एडजस्ट होंगे ?  गाँधी, पटेल के सिर पर  एक भी केश दिखाई नहीं देता. सुभाष के भी बहुत कम केश हैंऔर दाढ़ी तो एक के भी नहीं है.  

हमने कहा- समझदार लोगों को ज्यादा नहीं सोचना चाहिए. बस,अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए ऐसी ही दिव्य और सकारात्मक दृष्टि बनाकर रखनी चाहिए. इसी को प्रकारांतर से नजीर अकबराबादी ने ऐसे कहा है-

कपड़े किसी के लाल हैं रोटी के वास्ते

लम्बे किसी के बाल है रोटी के वास्ते 

बांधे कोई रुमाल हैं रोटी के वास्ते 

सब कश्फ़ * और कमाल हैं रोटी के वास्ते 

*ईश्वरीय प्रेरणा 

क्या बंसीलाल को इमरजेंसी में और सज्जन कुमार को ८४ के दंगों में कभी कोई गलती दीखी ? 

वैसे यह भी एक शाश्वत सत्य है कि जब किसी के चक्षुओं में इस प्रकार की दिव्यता की मात्रा अधिक हो जाती है तो उसे 'प्रज्ञाचक्षु' कहते हैं. 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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