Oct 3, 2010

कामनवेल्थ और बूढ़े युवराज का स्वागत प्रेम पत्र

[पिछले कॉमन वेल्थ गेम्स के बाद प्रिंस चार्ल्स की भारत यात्रा पर लिखा लेख - १-४-२००६ ]


प्रिंस चार्ल्स जी,
योरप तो गोरे लोगों का था ही । अमरीका की खोज करके उस पर काबिज हो गए । आस्ट्रेलिया पर भी गोरे लोगों ने कब्ज़ा कर लिया । अब बचे अफ्रीका और एशिया सो ये गोरे लोगों के उपनिवेश रहे हैं । इस प्रकार सारे ही संसार पर गोरे लोगों का कब्जा रहा । उन देशों के राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी उनका शोषण कर रहे हैं । अब इसे उपनिवेश नहीं, व्यापार का नाम दिया गया है । आपका देश, ब्रिटेन मतलब कि ग्रेट ब्रिटेन ही गोरेपन का प्रतीक है । आपके राज में कभी सूरज नहीं डूबता था । हाल में ही संपन्न हुए राष्ट्र मंडल खेलों अर्थात कामनवेल्थ गेम्स से पाठकों को खबर हुई होगी कि इन खेलों में पूर्व में ब्रिटेन-अधिकृत इकहत्तर देशों ने भाग लिया ।

कभी-कभी इन देशों के तथाकथित देश भक्त लोग गोरे प्रभुओं के स्मृति चिन्हों, स्थानों के नाम बदलकर स्वाभिमान का नाटक करते हैं । इसी से कुछ होना होता तो अब तक कुछ हो गया होता । असली ज़रूरत तो अंग्रेजी भाषा, रहन-सहन, खान-पान को बदलने की है मगर यह सब, हो सकता है कि, कट्टरपन लगने लग जाए । यदि देखा जाए तो इस मामले में अमरीका सबसे कट्टर है । वैसे अमरीका भी ब्रिटेन के अधीन था । ब्रिटेन उसके लिए कुछ नहीं करता था, बस टेक्स वसूलता था । सो एक दिन अमरीका के ब्रिटिश मूल के अंग्रेजों ने ब्रिटेन के राजा को टेक्स देना बंद कर दिया और स्वतंत्र हो गया । बहुत सस्ते में ही स्वतंत्रता मिल गई ।

पर अमरीका ने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए जो कुछ किया इसे सुनिए । इसने अपनी भाषा को अमरीकन इंग्लिश कहा, और उसके उच्चारण, स्पेलिंग, व्याकरण अपने अनुसार बदल लिए । सारे संसार से उल्टे, वहाँ वाहन दाहिनी तरफ चलते हैं, स्विच ऊपर करने पर बंद होते हैं । अब भी वहाँ सारे संसार से अलग गैलन, पाइंट, पाउंड, औंस, यार्ड, फुट, इंच, मील चलते हैं । क्रिकेट की तरह उन्होंने अपने लिए बेस-बॉल का आविष्कार किया । फ़ुटबाल को वे फ़ुटबाल नहीं, सॉकर कहते हैं । और वे कॉमनवेल्थ गेम्स में भी शामिल नहीं होते । उन्हें इन खेलों में भाग लेने से अपनी गुलामी की याद आती है ।

और एक हम हैं कि जो अंग्रेजी बोलकर, अंग्रेजों से हाथ मिलाकर धन्य हो जाते हैं । कोई भी कॉमनवेल्थ सम्मलेन होता है तो महारानी प्रिंसिपल की तरह बीच में बैठती हैं और शेष देशों के राष्ट्राध्यक्ष मास्टरों, क्लर्कों और चपरासियों की तरह खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं । इस प्रकार कॉमनवेल्थ का मतलब हुआ कि हमारी वेल्थ तो हमारी है ही बाकी तुम्हारे वाली कॉमन है । कहीं हम अपने भूतपूर्व और वर्तमान आदरणीयों को भूल न जाएँ इसलिए कभी महारानी और नहीं तो आप अपनी भूतपूर्व या वर्तमान पत्नी के साथ यहाँ आते रहते हैं । और हम आपका राजसी अंदाज में स्वागत करके धन्य हो जाते हैं ।

सो हे अभी-अभी आकर गए, दो जवान बेटों के बाप, साठ वर्षीय, दो बच्चों की तलाकशुदा माँ के पति, प्रिंस चार्ल्स, आपकी जय हो । अब की बार आप नवसंवत्सर पर पधारे । हम तो अब तक ईस्वी सन को ही जानते थे । उसी में सारे कार्य करते, सोते-जागते, मरते-जीते थे । हालाँकि ईसा मसीह से पाँच सौ बरस पहले महावीर, बुद्ध हो चके हैं । उससे दो हजार वर्ष पहले की हडप्पा और मोहनजोदारो की सभ्यता है । उससे पहले के राम, कृष्ण, द्वारिका और सेतुबंध हैं । पर आपकी इच्छानुसार यहाँ ईस्वी सन ही चलता है ।

आपने हमें नवसंवत्सर के अवसर पर जयपुर में अपना स्वागत करने का सौभाग्य प्रदान कर जगद्गुरु भारत और नवसंवत्सर को गौरवान्वित किया । इसके लिए हम आपके आभारी हैं । भले ही हमारे सर्वाधिक पूज्य देवता राम, कृष्ण, शिव, विष्णु सभी साँवले हैं पर आज हम फेयर एंड लवली क्रीम लगाकर गोरे होने के लिए मरे जा रहे हैं । हो सके तो कोई ऐसा आविष्कार करवाइए कि हम सब काले-कलूटे लोग आपकी तरह गोरे और बन्दर जैसे मुँह वाले हो जाएँ । सच, इस काले रंग से बड़ी हीनभावना आती है । आपने गाँवों को देखा, आँगन लीपती ग्राम वधू को देखा, यहाँ कि कलाकृतियाँ स्वीकार कीं, जयपुर की गलियों में हेरिटेज वाक किया, सिंहासन पर बैठे और हाथियों से सलामी ली । हम पुनः आपके आभारी हैं ।

और अंत में एक बात और । एक बार पहले जब आप आए थे तो पद्मिनी कोल्हापुरे ने आपका चुंबन ले लिया था हालाँकि चितौड़ की पद्मिनी होती तो स्वयं पर आपकी छाया भी नहीं पड़ने देती । यह चुंबन आप पर कर्जा था सो आपने यहाँ की एक महारानी को चूम कर वह हिसाब बराबर कर दिया । पर अब आप यात्राएँ कम किया कीजिए । साठ पार कर गए हैं । अब घर बैठकर भगवान का नाम लीजिए । अब हमें अपनी गुलामी की याद दिलाने के लिए डायना के जवान पुत्रों को अपनी नवीनतम प्रेमिकाओं के साथ भेजा कीजिए । युवाओं को आँखें सेंकने और अखबार वालों को फोटो छापने में कुछ तो मजा आएगा ।

१-४-२००६
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

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