Sep 30, 2010

सहिष्णु तोताराम की पौरुष-ग्रंथि


आज तोताराम ने आते ही चाय पीने से मना कर दिया, कहने लगा- डाक्टर ने कहा कि ऑपरेशन से पहले कुछ नहीं खाना है और पानी भी नहीं पीना है । अब तू जल्दी से चाय पी ले और मेरे साथ चल । ज्यादा देर का काम नहीं है । तीन-चार घंटे में आना-जाना और ऑपरेशन सब निबट आएगा ।

इससे पहले किसी प्रकार अस्वस्थता की कोई बात तोताराम ने हमें नहीं बताई थी । हमें अजीब लगा । हमने तोताराम को बैठाया और कहा- भैया, ज़रा तसल्ली से बता । क्या बात हुई, अचानक यह ऑपरेशन की नौबत कैसे आ गई ? तोताराम ने कहा- चिंता की कोई बात नहीं है ? न किसी डाक्टर ने कोई समस्या बताई है और न ही मुझे कोई तकलीफ है । मैं तो बस, अपनी पौरुष-ग्रंथि का ऑपरेशन करवाना चाहता हूँ । इसे निकलवाना है ।

हमने कहा- तोताराम, इससे पहले भी एक बार तू रक्त-दान करने गया था मगर डाक्टर ने कह दिया था कि देने की बजाय यदि कोई तुम्हें खून देने वाला मिल जाए तो ले आओ । तुम्हें तो खुद खून की ज़रूरत है । और तुम्हें सधन्यवाद वापिस भेज दिया था । इसके बाद तू ज्योति दा के दिमाग-दान से प्रेरित होकर दिमाग-दान करने के लिए गया था तो डाक्टरों ने तेरी खोपड़ी खोल कर यह कहते हुए फिर वापिस बंद कर दी थी कि मास्टर जी, इसमें तो दिमाग है ही नहीं । क्या निकालें और किसे क्या दान दें ? यह ठीक है कि अब न तो कोई पौरुष तेरे बस का है और फिर नसबंदी तो हम दोनों ने बहुत पहले ही करवा ही ली थी । अब जब तक कोई तकलीफ न हो तब तक क्यों बेकार चक्कर में पड़ता है ? कभी तकलीफ हुई तो देखा जाएगा ।

वैसे यदि पौरुष ग्रंथि का साहस से या प्रोटेस्ट करने से कोई सम्बन्ध है तो वह इसके होते हुए भी तुमसे-हमसे कभी नहीं हुआ । हमेशा अन्याय होते हुए देखते रहे । और तो और किसी लम्पट और चोर को भी यह नहीं कह सके कि हम तुम्हें वोट नहीं देंगे । उसके सामने भी यही कहते रहे- हाँ जी, आपको ही देंगे वोट । सो इस ग्रंथि की चिंता छोड़ । यह तो कल भी और आज भी, हुई न हुई के बराबर थी । अपन, जैसे सूरमा जवानी में थे, वैसे ही सूरमा आज भी हैं ।

तोताराम चिढ़ गया, कहने लगा- जब देखो तब ऐसी ही बातें करता रहता है । कहने को जागरूक पाठक और लेखक बना फिरता है पर ढंग के समाचारों के बारे में ज़रा भी जानकारी नहीं है । अभी कुछ दिनों पहले अपने मनमोहन सिंह जी को एक पुरस्कार की घोषणा हुई थी । अखबारों में पढ़ने को मिला २४ सितम्बर २०१० को कि इन्हें न्यूयार्क की किसी 'अपील ऑफ कोंशियस फाउन्डेशन' नामक संस्था ने उन्हें 'वर्ष २०१० के लिए वर्ल्ड स्टेट्समैन' घोषित किया है । मनमोहन जी खुद तो नहीं जा सके । उनकी तरफ से अमरीका में भारत की राजदूत ने यह सम्मान ग्रहण किया है । यह पुरस्कार ‘समझ और सहिष्णुता’ के लिए दिया जाता है ।

हमने कहा- तो तुझे यह भी पता होगा कि इस संस्था से हेनरी किसिंगर जुड़े हुए हैं । ये वे ही सज्जन हैं जो कभी निक्सन के समय में अमरीका के विदेश मंत्री हुआ करते थे और जिनके साथ बातचीत में निक्सन ने इंदिरा गाँधी को 'बूढ़ी-चुड़ैल' कहा था । यह तो उनकी खुद की सहिष्णुता और सज्जनता का नमूना है । और वियतनाम, मिस्र, ईरान, ईराक, अफगानिस्तान के बारे में तो खुद अमरीका ने सहिष्णुता नहीं दिखाई । और मनमोहन जी को सहिष्णुता के लिए सम्मानित कर रहे हैं । इस सहिष्णुता का मतलब है कि जब अमरीका चाहे तब सहिष्णु बनो । अब अमरीका खुद अफगानिस्तान, ईराक और पाकिस्तान में उलझा हुआ है तो भारत से चाहता है वह अपमानित होकर भी सहिष्णु बना रहे । सबसे बातचीत करता रहे । कश्मीर के अलगाववादी मनमोहन जी की बेइज्जती करके लौटाते रहें और फिर भी वे उनसे वार्ता करते रहें ।

तोताराम कहने लगा- मास्टर, कहा भी गया है कि ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है । सत्य-अहिंसा अपने पुराने सिद्धांत हैं । हमें इन्हें नहीं छोड़ना चाहिए ।

हमने कहा- सत्य और अहिंसा वाला बौद्ध धर्म तो चीन में भी है मगर कल जब चीन को अपने जापान द्वारा पकड़े नौका के कप्तान को छुड़ाना था तो जापान को धमकी दी तो कप्तान एक ही दिन में छूट गया । और अब मज़े की बात यह कि वह जापान से हर्जाने और माफ़ी की माँग और कर रहा है । मनमोहन जी की तरह वार्ता करता रहता तो छूट लिया था कप्तान । न मिले किसिंगर जी का पुरस्कार, देश की इज्जत तो बनी रही, बल्कि और बढ़ गई ।

हमें लगा कि हम कुछ ज्यादा ही बोल गए हैं । सो हमने फिर तोताराम की तरफ ध्यान केंद्रित करते हुए कहा- छोड़ यार,इन बातों को । यह बता, तू क्यों करवाने जा रहा था अपनी पौरुष-ग्रंथि का ऑपरेशन ?

तोताराम ने कहा- मैंने सोचा, मनमोहन जी को यह सम्मान पौरुष-ग्रंथि का ऑपरेशन करवाने के बाद मिला है तो क्या पता, मेरा भी नंबर आ जाए । देश की चिंता करने से क्या फायदा ? उसका तो वही होगा जो अमरीका और मुक्त-बाजार चाहेगा ।

हमने ठहाका लगाते हुए कहा- अब तो चाय पिएगा ना, मेरे सहिष्णु ?

तोताराम शरमा गया ।

२६-९-२०१०

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

2 comments:

  1. दर-असल,हमारे ऊपर तो सहिष्णुता ज़बरन थोपी गयी है,और हम ऐसे बुद्धू बने हैं कि उसका प्रतिवाद भी नहीं कर सकते.अब तो यह हमारे खून में सन चुकी है,इसीलिए चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो या अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर, हम 'विष-पायी' बन चुके हैं.

    ReplyDelete