Oct 30, 2010
तोताराम की सीटी
कल तोताराम आया तो पता नहीं क्यों ओठों को गोल करके सीटी बजाता रहा । चाय भी सीटी बजा-बजा कर ही ठंडी की । हमें तो वैसे ही लग रहा था जैसे कि कई लोग बैठे-बैठे टाँग हिलाते रहते है मानों लकवे का दौरा पड़ने वाला हो । मगर जब ऐसे व्यक्तियों के साथ रोज बैठना हो तो फिर इतना अजीब नहीं लगता । सो हमें भी तोताराम की अजीब हरकतें इतनी अजीब नहीं लगती जितना कि किसी और को लग सकती हैं ।
आज तो उसकी सीटी बजाने की अदा कुछ ज्यादा ही अजीब थी । सीटी बजाने के साथ-साथ वह कमर भी मटका रहा था और दाएँ हाथ की तर्जनी में चाबी का एक छल्ला भी घुमाता जा रहा था । और कोई दिन होता तो शायद हमें इतना बुरा नहीं लगता मगर हुआ यूँ कि कल रात सपने आते रहे । कभी हाजी मस्तान, कभी हर्षद मेहता, कभी तेलगी, कभी लालू, कभी सुखराम, कभी शिबू सोरेन, कभी ललित मोदी, कभी जय ललिता और भी जाने कौन-कौन दिखते रहे । सब कुछ होच-पोच । मगर यह तय है कि नींद ठीक से नहीं आ पाई । इसलिए सर भारी था । सो हमने चिढ़कर तोताराम की कमर में अंगुली से घोंचा मारा- यह क्या जनखों की तरह कमर हिला रहा है ? सीटी बंद कर और ठीक से खड़ा रह ।
तोताराम भी चिढ़ गया, बोला- 'यह सरकारी आज्ञा है । १ नवंबर तक तो यह सीटी ऐसे ही बजेगी । उसके बाद देखी जाएगी' । सीटी बजाने की सरकारी आज्ञा ! हमारी कुछ समझ में नहीं आया । और पूछा तो कहने लगा- सरकार ने २५ अक्टूबर से १ नवंबर तक 'सीटी बजाओ सप्ताह' घोषित किया है । और एक टोल फ्री नंबर भी दिया है । यदि मुझे ज्यादा परेशान करेगा तो उसी नंबर पर फोन कर दूँगा ।
हम अपनी हँसी नहीं रोक सके, कहा- क्या उस विज्ञापन को ध्यान से पढ़ा ? वह यह सीटी बजाने के लिए नहीं है । उस सीटी का मतलब है- 'व्हिसल ब्लोइंग' कि यदि आपको कहीं भ्रष्टाचार की जानकारी मिले तो इस नंबर पर फोन कीजिए । जिससे सरकार को भ्रष्टाचार से लड़ने में मदद मिले । क्योंकि सरकार तो अब भ्रष्टाचार से लड़ नहीं सकती क्योंकि सरकार में तो खुद सारे के सारे कीचड़ में धँसे लोग बैठे हैं । कोई एक आध है भी तो बेचारा लंका में विभीषण की तरह अपनी जान बचाए नौकरी कर रहा है । कहाँ का भ्रष्टाचार-निरोध और कैसी व्हिसल ब्लोइंग ।
तुझे याद नहीं, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में एक इंजीनीयर था सत्येन्द्र दुबे । उसने बहुत चुपके से भ्रष्टाचार के खिलाफ व्हिसल बजाते हुए तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी जी को एक पत्र लिखा था । जिसे उन्होंने उन्हीं सरकारी अधिकारियों को जाँच के लिए भेज दिया जिनकी मिली भगत और छत्रछाया में यह सब चल रहा था । बस फिर क्या था, जाँच तो हुई नहीं बल्कि वह खबर ठेकेदारों तक पँहुच गई और उन्होंने दो छोटे-मोटे अपराधियों को सुपारी दे दी और फिर व्हिसल बजाने वाले इंजीनीयर का बाजा बज गया । वरना सीधी सी बात है कि इन छोटे-मोटे अपराधियों को स्वर्णिम चतुर्भुज से क्या लेना-देना । मगर उन दोनों को फाँसी की सजा देकर कानून ने अपना चेहरा उजला कर लिया । इसलिए याद रख, कोई भी भ्रष्टाचार पूरे तंत्र की मिलीभगत के बिना नहीं चल सकता । इसलिए क्यों व्हिसल बजा कर मरने के काम कर रहा है । बड़े भ्रष्टाचार को तो छोड़ । तू खम्भे पर कुण्डी डालकर किसी बिजली चोरी करने वाले की खबर बिजली विभाग को करके देख । चेकिंग करने वाले पहले उस चोरी करने वाले को फोन करेंगे कि 'भैया, तोताराम ने तेरी शिकायत की है सो अपनी कुण्डी हटा ले । हम आ रहे हैं' । चोर तो नहीं पकड़ा जाएगा पर शाम तक वह चोर तेरी टाँगें ज़रूर तोड़ देगा ।
तोताराम फिर भी सीटी बजाता रहा । हमने पूछा तोताराम, तुझे डर नहीं लगता ? कोई भ्रष्ट तेरा सर फोड़ दे तो ?तोताराम बोला- नहीं, मैं किसी से नहीं डरता ।
तभी दरवाजे पर एक जोर की ठोकर लगी और दहाड़ती आवाज़ आई- 'अरे, यो कोण सिटी बजा रिया है ? के गड़बड़ हो री है' ? बाहर निकल कर देखा तो एक नेतानुमा ठेकेदार खड़ा था ।
उसे देखकर तोताराम कहने लगा- अजी ठेकेदार जी, यहाँ कौन सीटी बजाएगा । मैं तो इस मास्टर को 'थ्री इडियट्स' वाला गाना सुना रहा था- ऑल इज वेल भैया, ऑल इज वेल । भला आपके होते क्या गड़बड़ हो सकती है ? सब कुछ वेल ही होगा ।
अब तोताराम की सीटी ही नहीं फूँक भी बंद हो चुकी थी ।
२७-१०-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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सीटी बजाने का हुक्म देने वालों के खिलाफ पहले ही लोग सीटी बजा चुके हैं....
ReplyDeleteभैया इस देश में "आल इज वेल" की फिलोसोफी चल पड़ी है......
ReplyDeleteमुँह में सिटी बजा कर जोर से बोलो
"आल...... इज............ वेल"
“दीपक बाबा की बक बक”
क्रांति.......... हर क्षेत्र में.....
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