Oct 31, 2010

खेल, अनुशासन और गौरवान्वित तोताराम


जैसे ही सुरेश कलमाड़ी ने देखा कि राष्ट्र मंडल खेलों में भीड़ नहीं जुट रही है तो ग़रीबों को मुफ्त खेल देखने की सुविधा का ऐलान का दिया । बस, फिर क्या था तोताराम के पाँवों में तो घुँघरू बँध गए और हमारे मना करने पर भी दिल्ली कूच कर ही गया । वहाँ से उसने फोन करके बताया कि पहले तो उसे भिखारी समझकर गेटकीपरों ने अंदर घुसने ही नहीं दिया मगर जब उसने अपनी पेंशन बुक दिखाई तो किसी तरह एंट्री मिली ।

खेल समाप्त हुए दो-तीन दिन हो गए पर तोताराम नहीं आया तो हमने पोती को भेजकर पता करवाया तो मालूम हुआ कि आज शाम तक आने का प्रोग्राम है । शाम को हम चबूतरे पर बैठे थे कि तोताराम आता दिखाई दिया । वह तो सीधा घर जाना चाहता था पर हमने रोक लिया कि जब तक चाय बने कम से कम खेलों के बारे में कुछ तो बताए । तभी हमारा ध्यान उसके गाल की तरफ गया । हमें लगा कुछ सूजन सी आ रही है । कहने लगा- बड़ा शानदार समापन-आयोजन था । सभी ने भारत की प्रशंसा की । कलमाड़ी जी प्रारंभिक शर्म से उबर चुके थे और सबको धन्यवाद दिया और आभार माना । यहाँ तक कि जो उपस्थित नहीं भी थे उनका भी । तू भी चलता तो अच्छा रहता । उसको बीच में ही टोक कर हमने पूछा- तोताराम, यह तेरा बायाँ गाल सूजा हुआ सा कैसे दीख रहा है ?

बोला- खेलों के सफल आयोजन के मेरे गौरवान्वित होने से तुझे ऐसा लग रहा होगा ।

हालाँकि तोतारम का यह बहाना हमें जमा नहीं पर इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि ऐसा मासूम बहाना तो आजतक किसी परकीया के साथ रात गुजार कर लौटे नायक ने भी अपनी पत्नी से नहीं बनाया होगा ।

पर हमने भी पीछा नहीं छोड़ा । ठीक है, मगर यह गर्व तेरे बाएँ गाल को ही क्यों हो रहा है ? दायाँ तो सामान्य दीख रहा है । बोला- भारत एक महान और सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसलिए इसमें ऐसा संभव हो जाता है जैसे कि अटल जी के समय में भाजपा के अनुसार सारा देश 'फील-गुड' कर रहा था मगर कांग्रेस को गुड़ फील नहीं हो रहा था । आजकल बिहार में नीतीश कुमार को विकास दीख रहा है मगर राहुल गाँधी को बिहार पिछड़ा नज़र आ रहा है । सो हो सकता है कि मेरे भी बाएँ गाल ने गर्व अनुभव किया हो और दाएँ ने नहीं किया हो ।

तोताराम ने टालने की बहुत कोशिश की मगर जब संभव नहीं हुआ तो बोला- कुछ नहीं । मैं खेल समाप्त होने के बाद वैसे ही घूमता-घामता खेल गाँव की तरफ निकल गया था । तभी ऊपर से एक वाशिंग मशीन नीचे आकर गिरी और उसका हेंडिल टूट कर उछला और मेरे गाल को रगड़ता निकल गया । मगर कोई खास बात नहीं । ऐसा तो हो जाता है ।

हमने कहा- खेलों का सबसे मुख्य उद्देश्य होता है अनुशासन और तेरे आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का यह अनुशासन है कि उनकी क्रिकेट टीम हार गई तो समान तोड़ कर नीचे फेंक दिया ।


पर तोताराम माना नहीं, कहने लगा- यह तो उनके सबसे अधिक पदक जीतने की खुशी का जश्न था और खुशी में कुछ ऐसा-वैसा हो ही जाता है जैसे कि अपने यहाँ भी कभी-कभी शादी में कुछ लोगों से खुशी में बंदूक छूट जाती है और कोई घायल हो जाता है । पर तुझे आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की खुशी में भी अनुशासन कायम रखने की भावना को मानना पड़ेगा । वे चाहते तो वह वाशिंग मशीन किसी के सर पर भी पटक सकते थे मगर नहीं उन्होंने कितना ध्यान रखा कि मशीन किसी के सर पर नहीं गिरे ।

हमने खीज कर कहा और कंडोमों से जो गटर बंद हो गए वह क्या था ? ये लम्पट खेलने आए थे या हनीमून मनाने ? तोताराम बोला- इसमें क्या बात है ? काम-क्रीड़ा क्या खेल नहीं है ? और यह तो सोच खिलाड़ियों ने कंडोम का इस्तेमाल किया जो कि आज का सबसे बड़ा अनुशासन है । आजकल कंडोम का इस्तेमाल करने पर कोई भी लम्पटता, लम्पटता नहीं रह जाती वह एक उच्च श्रेणी का अनुशासन हो जाती है । तभी तो माइक फ्लेनल ने खिलाड़ियों के इस कृत्य की प्रशंसा की । और फिर यह तो अपनी-अपनी भावना है । तेरे जैसे नकारात्मक व्यक्ति को कुछ भी सकारात्मक नज़र ही नहीं आता तो कोई क्या करे ?

हमने कहा- तो सकारात्मक चिन्तक जी, यह भी बता दीजिए कि खेल में घोटाले के बारे में आपके क्या विचार हैं ? बोला- देखो, जब कोई बड़ा काम होता है तो कुछ कौए, कुत्ते, भिखारी और बिना बुलाए लोग घुस कर खाना खा ही जाते है । इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता । और मान ले ये लोग और ज्यादा भी खा जाते तो कौन इनका क्या कर लेता ? यह तो इनका आत्मानुशासन था कि इतना ही खाया ।

अब हम और कह ही क्या सकते थे ?

१९-१०-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment