Oct 31, 2010

तोताराम का लिबरेशन फ्रंट


आज तोताराम कुछ ज्यादा ही जल्दी में था । अंदर भी नहीं आया । बाहर से आवाज़ लगाई- मास्टर, कोई वार्ता करने वाला तो नहीं आया ? आए तो मेरी तरफ भेज देना । रोजाना चक्कर लगते रहते हैं और आज जब मैं ढूँढ़ रहा हूँ तो पता नहीं सब के सब कहाँ मर गए । मैं ज़रा पिछली गली में देखता हूँ । यदि इधर आ जाएँ तो मेरी तरफ भेज देना । हमने कहा- फिरते तो रहते हैं । पिछली बार जब आए थे तो कह रहे थे- किसी से भी वार्ता करने को तैयार हैं । पर इन दो-चार दिनों में दीखे नहीं । हमें लगता है सारे के सारे कश्मीर की तरफ चले गए हैं । पर तुझे किससे और क्या वार्ता करनी है ?

तोताराम बोला- वार्ता तो नहीं करनी मगर आएँ तो कह देना 'तोतालैंड लिबरेशन फ्रंट' का अध्यक्ष तोताराम अब आजादी से कम पर बात नहीं करेगा । हमने कहा- तोताराम, अब कौन सी आजादी चाहिए ? अब तो आत्मा को इस तन के पिंजरे से आजादी चाहिए सो अपने आप ही मिल जाएगी, आज नहीं तो दो-चार साल बाद । इसके लिए किसी को आमंत्रित करने की क्या ज़रूरत है ? और फिर तेरे लिए किसी के पास कोई गोली फालतू नहीं पड़ी । हाँ, अगर महँगाई इसी तरह से बढ़ती रही तो जल्दी ही कुपोषण ज़रूर तुझे मुक्ति दिला देगा ।

तोताराम कहने लगा- मुझे इस जीवन से आजादी नहीं चाहिए मुझे तो भारत से आजादी चाहिए । तरेसठ बरस से भारत हमें गुलाम बनाए हुए है । अब मैं गुलाम नहीं रहने वाला । अब मैं शांतिपूर्ण पत्थर-फेंक आन्दोलन तब तक जारी रखूँगा जब तक आजादी नहीं मिल जाती ।

हमने कहा- तू कोई गिलानी है जो तुझे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा या तेरे खिलाफ देशद्रोह का केस नहीं चलाया जाएगा । अरे, यह अरुंधती भी थोड़ी चर्चित है इस लिए थोड़ा हिचक रहे हैं । और फिर मानवाधिकारों के मसीहा ओबामा जी भी तो आ रहे हैं वरना तो इस पर भी कुछ न कुछ लोग दिखावे का ही सही, एक्शन ले लेते । और तुझे तो किसी छोटे-मोटे स्वयंसेवक से ही मोटर साइकल से टक्कर मरवाकर सलटा देंगे और कोई मुआवाजा भी नहीं मिलेगा । देखा नहीं, पहले तो तस्लीमा को शरण दी फिर वोट बैंक के चक्कर में पता नहीं उसे कहाँ फिंकवा दिया । इनका तो यह हाल है कि कश्मीर खोकर भी यदि अल्पसंखयकों का वोट बैंक पक्का हो जाए और दिल्ली की कुर्सी इनके नाम परमानेंट लिखी जाए तो कोई घाटे वाला सौदा नहीं है । वैसे भी कश्मीर पर खर्च ज्यादा है और कमाई कम । अब तो सारे अर्थशास्त्री बैठे हैं जिन्हें लाज शर्म नहीं जी.डी.पी और विदेशी मुद्रा भंडार की ज्यादा फ़िक्र है । और अगर कश्मीर की समस्या नाक कटवा कर भी सुलझा दी तो अमरीका खुश हो जाएगा । इनकी मोक्ष अमरीका की कृपा में ही है । यह बात और है कि प्रेस की स्वतंत्रता का पोषक अमरीका विकीलीक वाले को गलत तो बता नहीं सकता पर कह रहा है कि इससे अफगानिस्तान में अमरीकी सैनिकों को खतरा हो सकता है । और अंदर खाने बात यह है कि विकिलीक वाले को अपनी जान को खतरा नजर आ रहा है ।

तोताराम कहने लगा- मैं भी तो इसीलिए कह रहा हूँ कि अभी मौका है । गोरे लोगों का तो इतिहास ही यही रहा है कि पहले तो किसी देश को छोड़ो मत और अगर छोड़ना ही पड़ जाए तो ऐसा सत्यानाश करके जाओ जो कि सँभल ही नहीं पाए । यह तो वियतनाम का दम था जो बीस बरस अमरीका से लड़कर भी एक हो गए । भारत में भी तो जाते समय छः सौ रियासतों को स्वतंत्रता दे गए कि तुम्हारी मर्जी हो तो भारत या पाकिस्तान में मिलो और चाहे तो आजाद हो जाओ । जिन राजाओं और नवाबों ने दारू पीने और लडकियाँ उठवाने के अलावा कुछ नहीं किया वे स्वतंत्र देश के सपने देखने लगे । यह तो भला हो पटेल का जो यह खाज मिटा गए वरना सोच इस देश में और छः सौ देश होते तो क्या हालत होती । नेहरू इंग्लैण्ड में पढ़े थे और योरप की संस्कृति से प्रभावित थे सो जबरदस्ती मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए । और वहाँ क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं । यदि रूस नहीं होता तो अमरीका कभी का वहाँ चुनाव करवा कर कश्मीर को अपना बगलबच्चा बना लेता । इसके बाद तो नेहरू जी को भी समझ आ गई और हिम्मत करके गोवा वाले मामले को निबटा दिया । उस समय भी अमरीका ने जो रूप दिखाया पता नहीं, ये सरकारें क्यों उसे भूल जाती हैं । उस समय अमरीका ने अपने जहाज गोवा में टाँग अड़ाने के लिए भेज दिए थे । वह तो नासर ने उन्हें स्वेज नहर पर ही रोक दिया नहीं तो नज़ारा ही कुछ और होता । और बंगला देश की आजादी के समय भी उसने अपना सातवाँ बेड़ा भेज ही दिया था । उस समय भी इंदिरा की हिम्मत और रूस ने लाज रख ली ।

अब तो ऐसी सरकार है जिससे चूहा भी नहीं डरता । चीन को देख, अब तक फारमोसा को अपना हिस्सा मानता है और देख लेना कभी न कभी उसे अपने में मिला भी लेगा । अरुणाचल पर दावा जता ही रहा है । कश्मीर वालों को स्टेपल वीसा देता है । और हम हैं कि अब भी उसके तलवे सहला रहे हैं । हांगकांग निन्यानमे साल की लीज पर था और समय पूरा होते ही ब्रिटेन ने उसे चीन को सौंप दिया । अगर यही मामला भारत के साथ होता तो तकते रहते मुँह । चीन को कोई नहीं कहता कि तिब्बत में चुनाव क्यों नहीं करवाता । इसलिए सोचता हूँ कि इस नपुंसक सरकार के रहते मैं भी एक अलग राष्ट्र की माँग कर ही दूँ । इस धुप्पल में अपन भी आजीवन राष्ट्रपति बन जाएँगे और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी अपने ही बच्च्चों का राज ।

हमने कहा- तोताराम, अपनी सरकार ने पहले से ही जाति, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, मंदिर-मस्जिद के आधार पर देश को बाँट रखा है अब तू भी क्यों देश के जले पर नमक छिडक रहा है ?

तोताराम कहने लगा- तू कहता है तो ठीक है । अलग राष्ट्र की माँग नहीं करूँगा मगर यह याद रखना कि अब यह देश टुकड़े-टुकड़े होकर ही रहेगा । क्या तुझे कश्मीर में पडगाँवकर के नेतृत्व में गए प्रतिनिधि मंडल की बातों से समझ में नहीं आ रहा ? ये सब घुटने टेकने की तैयारी है । वरना सरकार की मर्जी के खिलाफ ऐसे वक्तव्य कोई दे सकता है क्या ? एक मात्र महिला सदस्य राधा कुमार ने तो कह ही दिया है कि संविधान में संशोधन किया जा सकता है । कैसा संशोधन ? यही कि जो भी आजादी माँगे उसे दे दो और पीछा छुड़ाओ । जहाँ तक कमाई की बात है तो ‘मनरेगा’, खानें और सरकारी-उद्योग विक्रय और खेल आयोजनों में भी कर लेंगे ।

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी बातें सुनकर हमने तो चक्कर आने लग गए हैं । भगवान करे, ऐसा कभी न हो । और यदि इसकी ज़रा भी संभावना है तो हमें तो अभी उठा ले ।

२८-१०-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. आप तोताराम जी की और अपनी मनोकामना पूरी ही समझें. नेता इसे पूरी करने की पूरी तैयारी कर रहे हैं.

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  2. तोताराम जी की और आपकी इच्छा पूरी करने में कोई कसर नहीं बाकी छोड़ रहे हैं राजनीतिबाज..

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