तोताराम के साथ हमारा कम से कम साठ साल पुराना रिश्ता तो है ही । हँसी मजाक भी चलते रहते हैं । आज जाने उसे क्या हो गया कि इतनी घटिया बात कह गया । इसकी तो रसोई तक पहुँच है, ख़ुद जाकर भी तो चाय ला सकता था । न हम प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह हैं और न यह प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग लाल कृष्ण अडवानी है । कौन सी हमारी जायदाद बँट रही थी । रात भर मन बैचैन रहा । ठीक से नींद भी नहीं आई ।

और फिर क्षमा माँगने का यह कौन सा कूटनीतिक स्टाइल चुना है ? 'अगर कष्ट हुआ हो तो..... । क्षमा माँगने वाला अपनी भूल समझकर जब दुखी होता है तो स्वयं अपनी आत्मा की शान्ति के लिए प्रायश्चित स्वरुप क्षमा माँगता है । इसलिए क्षमा कभी अगर-मगर के साथ नहीं होती । क्षमा याचना आत्मविश्लेषण के बाद पश्चाताप-विगलित मन का गंगा-स्नान है तो धन्यवाद कृतज्ञ मन की पुण्य-प्रणति । वैसे यदि कोई व्यक्ति अभिमानी है तो उसकी क्षमा तभी पूर्ण होती है जब वह अपने अभिमान को व्यक्त और अव्यक्त रूप से मार नहीं देता ।
इसके लिए अंगद द्वारा रावण को सुझाये गए क्षमा के तरीके से समझा जा सकता है । अंगद कहता है-
दसन गहहु तृण कंठ कुठारी । परिजन सहित संग निज नारी ॥
सादर जनक सुता करि आगे । एहि विधि चलहु सकल भय त्यागे ॥
प्रणतपाल रघुवंस-मणि त्राहि-त्राहि अब मोहि ।
आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि ॥
अब आज के प्रसंग में रावण कौन है और राम कौन ? तू जाने ।
राजनीति के 'बांकों" की बातें अलग है । ये न तो लड़ते हैं, न मरते हैं, न मारते हैं । केवल नाटकबाजी करते हैं । आज स्वार्थ के लिए टुच्ची बातें करके कल क्षमा माँग कर फिर दूध के धुले बन जाते हैं । तुझे कुछ बोलना ही नहीं चाहिए था । अपनों को स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं होती और दूसरे स्पष्टीकरण पर विश्वास नहीं करते । सो चुप ही रह । साइलेंस इज गोल्ड ।
तोताराम चाय लेने अपनी भाभी के पास चला गया । लौटा तो हाथों में चाय के दो गिलास और आँखों में वही सहज चमक । हम दोनों का कल्मष धुल चुका था ।
१९-६-२००९
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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