Jul 7, 2009

तोताराम का आत्मसमर्पण


आज तोताराम कुछ जल्दी में था, बोला- जल्दी उठाकर मेरे साथ थाने चलो । मुझे पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना है ।

हमने चुटकी ली- "तू अपने आप में था ही कब? पहले माता-पिता, फिर पत्नी के सामने समर्पित रहा । इसके बाद चालीस साल सरकारी नौकरी में सरकार के प्रति समर्पित रहा । अब तो भगवान के सामने आत्मसमर्पण बाकी है । और फिर आत्मसमर्पण कोई ढिंढोरा पीट कर थोड़े किया जाता है? वह तो मन का एक भाव है ।

इस तरह आत्मसमर्पण तो आतंकवादी और बूढ़े डाकू करते हैं । वे भी पहले मुख्यमन्त्री से पुनर्स्थापन के नाम पर दस-पाँच लाख रुपये, दस बीघा ज़मीन और बाद में चुनाव में पार्टी के टिकट का वादा करवा लेते हैं । या फिर बड़े नेता आत्मसमर्पण करते हैं या गिरफ़्तारी देते हैं । इस दौरान उनके हजारों समर्थक इकट्ठे हो जाते हैं और कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं । थानेदार उनको बैठा कर चाय पिलाता है । इसके बाद वह मीडिया वालों की उपस्थिति में गिरफ़्तारी देता है और फिर 'वी' का चिह्न बनाता हुआ जेल की बस में सवार होता है ।

सारा काम एक अद्भुत अनुष्ठान की तरह होता है । तुझे कौन पूछने वाला है ? सरकार पर वैसे ही महँगाई और चुनावों का भार है । मुझे नहीं लगता की कोई थानेदार तुझे उपकृत करेगा ।"

तोताराम का चेहरा लटक गया, बोला- मैं जब भी कोई क्रांतिकारी काम करना चाहता हूँ तो तू मेरा मनोबल तोड़ देता है । तूने बताया था कि एक पुलिसवाला तेरा परिचित है । एक गोष्ठी में मिला था । उसी के पास चलते हैं ।


हमें तोताराम पर दया आगई । हम उसे लेकर थानेदार के पास पहुँचे । वे चाय पी रहे थे । हमारे लिए भी चाय मँगवाई । जब हमने उन्हें तोताराम के कार्यक्रम के बारे में बताया तो उन्हें बेसाख्ता हँसी आगई । चाय उनकी वर्दी पर गिरते-गिरते बची ।

बाद में उन्होंने बताया- 'मास्टर जी, आत्मसमर्पण या गिरफ़्तारी इस देश में जनसेवा का सर्वोच्च अलंकरण है जो सभी के भाग्य में नहीं है । आपने जिंदगी भर मास्टरी की है । अब अगर घर में बोर हो रहें हैं तो एक आध ट्यूशन कर लें । यह जनसेवा का क्षेत्र आपके बस का नहीं है । आज तो फोटोग्राफी के बहुत से कमाल चल रहे हैं । किसी नेता के आत्मसमर्पण की सीडी लेकर उस पर अपना चेहरा फिट करवा लीजिये ।'

तोताराम का चेहरा और लटक गया ।

थानेदार को दया आ गई । बोला- 'यदि आप नहीं मानते तो घुस जाइए इस आठ गुणा आठ के कमरे में । पर याद रखिये अगर मच्छर उठा कर ले गए या और कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो तो ज़िम्मेदारी इन कवि महाशय की होगी । खाना हम नहीं खिलानेवाले । खाना लायेंगें मास्टर जी ।'

एक और काम आ पड़ा । पर क्या करें, जिसे देश-सेवा की लगन लग जाती है वह किसी की सुनता थोड़े ही है ।

हमें कल के अख़बार में तोताराम के आत्मसमर्पण के कवरेज़ की प्रतीक्षा है ।

३०-३-२००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

2 comments:

  1. कैसे भी हो तोताराम जी सर्वोच्‍च अलंकरण की ओर एक सीढ़ी तो चढ़ गए। हो सकता है कुछ दिन बाद जेल से बाहर आते ही उन्‍हें जेड श्रेणी की सुरक्षा भी मिल जाए। :)

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  2. सही चुटकी ली॒

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