Jul 23, 2009

माया ही माया

भैन जी,
जय हो । भले ही कुछ लोग 'जय हो' के गाने गाकर, कुछ देर जय की खुशी मना लें पर सच्ची जय तो साहस करनेवालों की होती है । आपने निरंतर साहस दिखाया तो आज इस पद पर हैं तथा और भी आगे बढ़ती जायेंगी । डर-डरकर राजनीति नहीं होती । जनता का स्वभाव तो स्त्री जैसा होता है । वह साहसी को ही जयमाला पहनाती है ।भले ही विरोधी जानबूझकर सहमत न होने का नाटक करें पर अन्दर से वे भी इंदिरा गाँधी को उनके साहस के कारण ही मानते हैं । हेनरी किसिंगर और निक्सन भले ही कुढ़कर अकेले में इंदिरा गाँधी को गाली निकालते थे पर अन्दर से उनके साहस के कायल थे । इसी गुण के कारण अटल जी ने उन्हें दुर्गा कहा था । आज लोग भले ही आपकी नुक्ता-चीनी करें पर अन्दर से आपसे खौफ खाते हैं । किसलिए- आपके साहस के कारण । पिछले चुनावों में कई लोगों के मन में प्रधानमंत्री बनने की हूक उठी हो पर अपनी इच्छा साफ़-साफ़ ज़ाहिर करने का साहस केवल आपने ही दिखाया । वोट बैंक बनाया तो डंके की चोट पर, लोगों को चार-चार जूते मारकर । यह नहीं कि रिरियाते रहे ।

आज लोग अपनी मूर्तियाँ लगवाने के लिए अपनी आलोचना करते हैं पर अन्दर-अन्दर अपनी ख़ुद की मूर्तियाँ लगवाने के लिए तरसते हैं । अरे. अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, धर्मेन्द्र, वसुंधरा के मन्दिर बन गए ।लालू, राबड़ी के चालीसा लिखे गए तो आप क्या इनसे कम हैं । लालू ने अपना चालीसा लिखनेवाले को साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बना दिया तो क्या यह अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना नहीं है ? लोग बिना बात का नाटक करते हैं । मन-मन भावे, मूण्ड हिलावे ।

कबीर जी ने कहा है - काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । सो जो मूर्ति कल लगनी है, वह आज क्यों न लग जाए । शुभस्य शीघ्रम् । बाद में पता नहीं पीछे वाले मूर्ति लगवाएँ या नहीं और लगवाए भी तो पता नहीं कैसी । और किसे पता मूर्ति लगवाए बिना ही सारा पैसा खा जाएँ । बिहार में न भैंसें आयीं, न चारा चरा पर बिल सारे पूरे बन गए । अपने यहाँ तो यदि वृद्ध माता-पिता को यह शंका हो कि सुपुत्र मरने के बाद उनका खर्च-द्वादशा ढंग से करेगा या नहीं तो वे अपना जीवित खर्च कर जाते हैं । हमारे गाँव में एक पंडित जी के साथ यही स्थिति थी सो जब उनका सुपुत्र जब किसी गाँव गया तो पीछे से उन्होंने अपना खर्च करने का प्लान बनाया । पर पता नही, सुपुत्र को कैसे ख़बर लग गई सो उसने जीमने आए ब्राह्मणों को गाली निकाल कर भगा दिया । इस प्रकार पिता का अपने सामने ही खर्च बिगड़ गया । बाद में ख़ुद ही सबके घर-घर जाकर परोसा दे-देकर आए । सो अपना हाथ जगन्नाथ ।

भई, निर्गुण, निराकार, निष्काम, सच्चा तटस्थ तो ब्रह्म ही है । बाकी जो नज़र आता है वह तो माया ही माया है । जिसके भी मन में झाँकोगे उस में न राम होगा न रहीम, न माँ होगी न बाप, न भाई न बहन, न यार न दोस्त, सबके मन मन्दिर में माया की ही मूर्ति विराजमान मिलेगी । इसलिए यदि संसार में आगए हैं तो ब्रह्म का झूठा नाटक नहीं करना चाहिए । ठीक है गाँधी जी महान थे, देश को आजाद करने में उनका बड़ा योगदान है पर क्या वे पूरी तरह से माया-मोह से परे थे ? जब उनके उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया हार गए तो गाँधीजी बर्दाश्त नहीं कर पाये । रही बात गाँधी जी की सादगी की । सो क्या उनके लिए ही देश में कपड़े की कमी थी । तभी तो अंग्रेजों को उनको डंडे मारने का साहस हो गया । सादगी के कारण कलाम साहब का क्या हाल कर दीया कोंटीनेंटल एयर लाइन वालों ने । अगर दस-बीस बंदूक वाले साथ होते तो किसकी मजाल थी कि आँख भी उठा लेता । और अगर आप होतीं और साथ में मुकुट और सिंहासन होता तो एक बार तो ऊपरवाला भी हट कर खड़ा हो जाता । अरे, अगर भगवान ने पद और रुतबा दिया है तो उसके अनुसार तो रहो । यह क्या कि भिखारियों जैसा भेस बना रखा है । न अपनी इज्ज़त का ख्याल है और न एक सौ बीस करोड़ की जनसंख्या वाले महान लोकतंत्र का ।

ब्रह्म के अलावा जब सब कुछ नाटक ही है तो फिर नाटक को ढंग से करने में क्या बुराई है । एक कवि ने कहा है- जिंदगी एक नाटक है, हम नाटक में काम करते हैं । हमारे हिसाब से इस दुनिया में सब नाटकबाज़ हैं । तो फिर नाटक न करने का नाटक करने से क्या फायदा । नाटक करें, जम कर करें । भले ही औरत को आदमी का और आदमी को औरत का पार्ट करना पड़े या फिर जियो-जियो रे लला वाला ।

२२-७-२००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

1 comment:

  1. वाह वाह. आपकी लेखनी वाकई कमाल है.

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