Mar 9, 2011

तोताराम की इच्छा-मृत्यु


आज सुबह-सुबह जब हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरुणा शानबाग के लिए इच्छा-मृत्यु की प्रार्थना अस्वीकार कर दिए जाने की खबर पढ़ रहे थे कि तोताराम भी आ बैठा । कुछ गंभीर लग रहा था । बहुत पूछने पर कहने लगा- मुझे भी इच्छा मृत्यु चाहिए ।

हमने कहा- बंधु, यह कोई साधारण बात नहीं है । इच्छा-मृत्यु तो केवल पितामह भीष्म हुए हैं । और उन्हें भी शुभ लग्न की प्रतीक्षा में कई दिनों तक शर-शैया पर पड़ा रहना पड़ा था । तू भी महँगाई रूपी शर-शैया पर तो पड़ा ही है, जब शुभ मुहूर्त में ऊपर वाले का कॉल लेटर आ जाए तो चले जाना । हो गई इच्छा मृत्यु । वैसे यहाँ तो सब की ही इच्छा मृत्यु होती है । जब किसी आतंकवादी की इच्छा हुई तो निकाल दी गोली और हो गई इच्छा मृत्यु । जब किसी वीर वाहन चालक की मर्जी हुई तो चढ़ा दी गाड़ी और हो गई किसी राह चलते की इच्छा मृत्यु । जब किसी फिदायीन की फ़िदा होने की इच्छा हुई तो कर दिया कहीं भी आत्मघाती हमला और हो गई दस-बीस की इच्छा मृत्यु । सब मृत्युएँ किसी न किसी की इच्छानुसार ही होती हैं ।

कहने लगा- मेरा मतलब वह नहीं था । मेरा मतलब था कि यदि मेरे जीवन की कोई संभावना नहीं है तो सरकार मुझे इच्छा-मृत्यु प्रदान करे । मतलब कि सरकार मेरे लिए मरने का कोई गरिमापूर्ण तरीका तय करे ।

हमने कहा- सरकार को खुद अपने लिए तो डूब मरने का समय मिल नहीं रहा है । खुद तो अपनी गरिमा बचा नहीं पा रही है और अब तेरे लिए मरने की गरिमापूर्ण व्यवस्था करे । सरकार के पास और कोई काम नहीं है क्या ? वैसे क्या ओफिसियली घोषणा या फैसला देकर ही कुछ होगा क्या ? सारे इंतज़ाम कर तो रखे हैं सरकार ने, तेरे ही क्या सभी गरीब लोगों के मरने के लिए । प्रदूषित पानी पीकर मर जा, सरस डेयरी में मिल रहा यूरिया और सर्फ़ से बना दूध पीकर मर जा, ट्रेन की छत पर यात्रा करके मर जा, अवैध शराब पीकर मर जा । खुद भी तो कुछ प्रयत्न कर । यह क्या कि तेरे मरने के लिए भी सरकार ही इंतज़ाम करे । सरकार ऐसे कीटनाशकों का तो इंतजाम कर नहीं पा रही है कि कीट मर सकें और तू अपने मरने का काम और सरकार को सौंप रहा है । कहते है कि कोकाकोला में भी कई मारक तत्त्व होते हैं सो थोड़ा खर्च कर और कोकाकोला पीकर मर जा । यदि बहुत ही शान से मरना है तो व्हिस्की पीकर मर जा । और मरना भी चाहता है और धार्मिक भी कहलाना चाहता है तो संथारा कर ले ।

हमारी बात का उत्तर न देकर तोताराम ने एक बहुत ही मौलिक प्रश्न उठाया- यार, एक तरफ सरकार जनसंख्या कम करने की बात कहती है, महँगाई के बारे में हाथ खड़े कर रही है तो थोड़ा सा प्रेक्टिकल हो जाए और थोड़ा सा खर्चा करके विदेशों से कोई फटाफट और कम कष्ट से मृत्यु देने वाली तकनीक मँगवा कर लोगों को इच्छा-मृत्यु प्रदान कर दे । सरकार की भी समस्याएँ दूर हो जाएगी और लोगों को भी भव-सागर के इन कष्टों से छुटकारा मिलेगा ।

हमने कहा- भैया, इसमें भी कई लोचे हैं । मारने की दवा मँगवाएँगे तो उसमें भी कोई मंत्री गठबंधन करके घोटाला कर देगा, पैसे भी लग जाएँगे और लोग मरेंगे भी नहीं । प्रदूषण और गंदगी में जीने वाले भारतीयों पर कोई साधारण ज़हर असर भी तो नहीं करेगा । तब फिर तुम गठबंधन सरकार को बदनाम करोगे । और फिर तू चाहे कितनी भी अपनी सरकार की अलोचना कर मगर अपनी यह सरकार इतनी दयालु है कि जनता को किसी भी हालत में मरने नहीं देना चाहती ।

तोताराम बोला- मरने नहीं देना चाहती तो जीने लायक स्थितियाँ प्रदान करे । यह क्या - न दवा, न खाना, न सुरक्षा और मरने पर भी पाबन्दी ।

हमने कहा- सरकार दोनों ही बातें चाहती है ।

तोताराम ने आश्चर्यचकित होकर कहा- यह क्या विरोधाभाषी बात हुई ?

हमने कहा- यह इस प्रकार कि यदि गरीब जनता मर गई तो किसके नाम से नरेगा, बी.पी.एल., सब्सीडी, वृद्धावस्था पेंशन आदि योजनाएँ और बजट बना कर पैसे खा पाएँगे ? और जीने लायक स्थितियाँ बन जाएँगी तो बजट किस बहाने से बनाएँगे ? पैसे वालों को सस्ते नौकर, उद्योगपतियों को सस्ते मज़दूर और सरकार को सस्ते वोट कैसे मिलेंगे ?

तोताराम कहने लगा- तो अब समझले कि सरकार की इस दयालुता से रोमांचित होकर मैं मर गया हूँ ।

हमने कहा- तो फिर बोल कैसे रहा है ?

तो कहने लगा- अभी ताज़ा-ताज़ा ही मरा हूँ ना । थोड़ी देर में बोलती भी बन्द हो जाएगी ।

८-३-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. हर बार की तरह आपकी लेखनी से निकला, देश की हकीकत और देशवासियों की दुर्दशा को दर्शाता, एक बहुत करारा व्यंग्य.

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