Mar 7, 2011

कुड़क मुर्गियों का लोकतंत्र


(बिहार के कोसी जिले के ५० किसानों ने शिकायत की है कि कृषि तकनीक और प्रबंधन एजेंसी के माध्यम से सरकार द्वारा सब्सीडी पर दी गई मुर्गियाँ खाकर मोटी हो गईं मगर अंडे नहीं दिए । इसी तरह पहले सरकार द्वारा दिए गए मक्का और गेहूँ के बीजों से उगाए गए पौधों में बालियों में दाने नहीं बने – २३-१-२०११)

आज तोताराम आया तो बड़ा परेशान था । कई देर तक पूछने पर बोला- यार, हद हो गई । मुर्गियाँ खाकर मोटी तो हो गईं मगर अंडा एक ने भी नहीं दिया । क्या ज़माना आ गया है ?

हमने उत्सुकता से पूछा- क्या तुमने अब मुर्गियाँ भी पालनी शुरु कर दीं ?

झुंझुलाकर कहने लगा- अरे भले आदमी, मैंने नहीं । मैं तो बिहार का एक समाचार बता रहा हूँ ।

हमने कहा- तो क्या हुआ ? मुर्गियाँ भी तो कभी-कभी छुट्टी लेती हैं । क्या सारे साल ही अंडे देती रहेंगी ? कोई भी मुर्गी साल में ३६५ अंडे नहीं देतीं । एक आध महिने कुड़क रह कर फिर अंडे देना शुरु कर देंगी ।

तोताराम ने उत्तर दिया- अब क्या अंडे देंगी ? तीन-चार महिने से दाना खाकर मोटी हो गई हैं मगर अंडे देने का नाम ही नहीं ले रही हैं ।

हमने कहा- इतना भड़क क्यों रहा है ? सारी बात खोल कर बता ।

कहने लगा- बिहार के कोसी जिले में ५० किसानों को किसी एक 'कृषि तकनीक और प्रबंधन संस्थान' ने सरकारी सब्सीडी पर मुर्गियाँ दी थीं । वे कई महिनों तक दाना खाकर मोटी तो हो गईं हैं मगर अंडे नहीं दे रही हैं ।

हमने कहा- भैया, इन सरकारी और तकनीकी मुर्गियों का यही हाल होता है । इसमें यह हुआ होगा कि २५% नेता जी ने खा लिया होगा, २५% संस्थान वालों ने, २५% नई प्रकार की मुर्गियाँ बनाने वाले किसी विदेशी संस्थान ने और २५% किसान को सब्सीडी दी गई दिखा दी । हो गया १००% का हिसाब । अब मुर्गियाँ कहाँ से अंडे देती ? इससे पहले भी यह हो चुका है कि आन्ध्र प्रदेश के किसानों ने कपास का विदेशी बीज इस्तेमाल किया मगर उसमें टिंडे ही नहीं बने । विदेशी कीटनाशक उपयोग किया तो कीड़े तो मरे नहीं पर बची-खुची फसल ज़रूर मर गई । मज़बूर होकर किसानों ने आत्महत्या कर ली ।
अरे, पहले जब अपने बीज और अपने कीटनाशक और अपनी मुर्गियों के अण्डों से मुर्गियाँ तैयार करते थे तो कभी यह नौबत नहीं आती थी । अब भुगतो नई विदेशी तकनीक का परिणाम । कमीशन खाने वालों ने तो कमीशन खा लिया । अब अंडे नहीं देतीं तो मुर्गी पालक इन मुर्गियों को ज़ल्दी से ज़ल्दी काट कर खा लें वरना तो और खर्चा बढ़ता जाएगा । मुर्गियों को तो अंडा न कल देना था और न आज । तुझे पता है इस देश में तीन साल पहले बर्ड फ्लू के नाम पर ४०-५० लाख मुर्गियाँ मार दी गई थीं । अब ब्रिटेन वाले कह रहे हैं कि उन्होंने ऐसी मुर्गी विकसित कर ली है कि उसे बर्ड फ्लू नहीं होगा । अब मँगवाओ वहीं से नई तरह की मुर्गियाँ । बीज बाहर के, कीटनाशक बाहर के, चूजे बाहर के- लगता है हम अब इतना करने के काबिल भी नहीं रहे ।

वैसे लोकतंत्र में नेता ही नहीं मुर्गियाँ भी बदमाश हो गई हैं । नेता हराम का खूब खाते हैं मगर सेवा के नाम पर घोटालों के अलावा कुछ नहीं । इससे पहले भी तो बिहार में लालू जी के ज़माने में आठ सौ रुपए दिन का दाना खाने वाली मुर्गियाँ हुआ करती थीं । उन्होंने भी कई महिनों तक खाना खाया, मोटी हो गईं और जब अंडा देने का समय आया तो फटाक से मर गईं । अंडा देना तो दूर की बात उन्हें फिंकवाई के पैसे और लगे । अब नीतीश जी की बारी है तो भले ही मुर्गी आठ सौ रुपया रोज का न खाए मगर अंडा देने से तो मना कर ही सकती हैं । लोकतंत्र में जब आतंकवादियों तक के मानवाधिकार हैं तो क्या मुर्गियों को इतना भी अधिकार नहीं कि इस स्मार्ट युग में अंडे न देकर अपनी फिगर सलामत रख सकें ।

और जब एक पंच से लेकर प्रधान मंत्री तक अपने वेतन भत्तों और कुर्सी के लिए ही चिंतित हैं तो फिर इन बेचारी मुर्गियों के ही पीछे क्यों पड़ा है ? हो सकता है, इन्होंने भी मुक्त बाज़ार में किसी से गठबंधन कर लिया हो । और फिर गठबंधन की मज़बूरी तो तू जानता ही है । गठबंधन के सामने यह मुर्गी तो क्या, प्रधान मंत्री तक मज़बूर हैं ।

जिसको अपने जीवन, रोजगार, भले-बुरे की चिंता है उसे खुद ही सोचना और समझदार बनना होगा । न तो इन नेताओं से कुछ होने वाला है और न ही इस मुक्त बाज़ार से । इन्हें 'दुनिया मुट्ठी में' करनी है तो बस अपने लिए । और लोग हैं कि समझते हैं कि दुनिया उनकी मुट्ठी में आने वाली है । बेचारे भोले लोग ।

समझ ले मोटी मुर्गियाँ अंडे देने के लिए होती ही नहीं हैं । वे तो केवल देखने-दिखाने के लिए होती हैं । दुबली-पतली मुर्गियाँ ही अंडे देती हैं । नेताओं को देखा नहीं ? खा-खाकर मोटे हुए रहते हैं मगर किसी के ज़रा से भी काम आने के नाम पर जी निकलता है । दुबला-पतला गरीब आदमी तो फिर भी किसी के लिए कुछ करने के लिए तैयार हो जाता है । यही हाल इन मोटी मुर्गियों का है । हजारों नेताओं पर केस चले, क्या किसी का कुछ बिगड़ा ? क्या किसी से घोटाले का एक रुपया भी निकलवाया जा सका ? तो इन मुर्गियों से भी कोई अंडा निकलने वाला नहीं है । मुर्गीपालकों को चाहिए कि इन्हें काट-कूट लें ।

तोताराम कहने लगा- बंधु , मुर्गियों का और किसानों का तो पता नहीं कुछ होगा या नहीं मगर मैं तुम्हारे भाषण से ज़रूर हलाल हो जाऊँगा । हो सके तो 'लोकतंत्र का कुड़क मुर्गी पुराण' बंद कर और दो घूँट चाय पिलवा दे ।

२४-१-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. जनाब, ज़ीरो फिगर कैसे मेन्टेन करेंगी अगर अण्डे देने लगीं तो...

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