Nov 12, 2011

'अग्नि'पुराण - मिट जाते सब भेद



मिट जाते सब भेद
( स्वामी बिग बॉस से बाहर- ११-११-२०११ )

निभता बोलो किस तरह स्वामी-सुन्दरि संग ।
इनका चोला लूज़ है उनकी चोली तंग ।
उनकी चोली तंग, भंग दोनों ने खाई ।
उधर रूप का नशा, इधर ऊँची संताई ।
कह जोशी कविराय त्याग देते सब कपड़े ।
मिट जाते सब भेद, खतम हो जाते झगड़े ।







 कपिल-कील 
( अग्निवेश अन्ना से पैर पकड़ कर क्षमा माँगने को तैयार मगर पहले बताना होगा कि -'वह कपिल कौन है' -११-११-२०११ )

सुंदरियों में गए थे बन कर बहुत दबंग ।
दो दिन में ढीले पड़े, स्वामी जी के रंग ।
स्वामी जी के रंग, काफ़िये तंग हो गए ।
हीरो बनने के सब सपने भंग हो गए ।
जोशी, स्वामी भले पैर पड़ माफ़ी माँगें ।
माफ करें अन्ना पर 'कपिल-कील' पर टाँगें ।


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

2 comments:

  1. वाह वाह वाह...बेजोड़ छंद हैं...काश आज काका हाथरसी जिंदा होते तो इन छंदों पर आपकी पीठ जरूर थपथपाते...उन्हीं की इस प्रचलित विधा को आपने नए आयाम दिए हैं...

    नीरज

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  2. बहुत ही मारक व्यंग्य... नश्तर की तरह चुभता है मगर गुद्गुदी गुलाब जैसी।

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