Jan 30, 2012

तोताराम और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


तोताराम और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

आज तोताराम ने आने के लिए सूरज के उगने का इंतज़ार नहीं किया । पाँच बजे ही दरवाजा खड़खड़ा दिया । हमें बड़ा अजीब लगा फिर सोचा कोई अत्यावश्यक कार्य आ पड़ा होगा । पूछ तो बोला- जल्दी तैयार हो जा, जयपुर चलना है साहित्यिक उत्सव में । छः बजे वाली पेसेंजर पकड़ लेंगे तो बीस रुपए में ही काम हो जाएगा नहीं तो बाद में बस के साठ रुपए देने पड़ेंगे ।

हमने कहा- अभी तो कोहरा छाया हुआ है, थोड़ा इंतज़ार कर लें तो ठीक रहेगा ।
कहने लगा- कोहरा छँट तो गया, सलमान रुश्दी नहीं आ रहा है । और जहाँ तक यू.पी. में चुनाव के कोहरे के छँटने की बात है तो वह अपना नहीं, नेताओं का सिर दर्द है ।

हमने उत्तर दिया- तो क्या तुझे सलमान रुश्दी की जगह बुलाया है ? बिना बुलाए जाने पर तुझे अंदर कौन घुसने देगा ? और फिर अबकी बार सुरक्षा व्यवस्था भी बहुत कड़ी है ।

बोला- बुलाया तो मुझे साधारण लेखक की हैसियत से भी नहीं गया है और जहाँ तक घुसने की बात है तो तू उसकी चिंता मत कर । जब बँगलादेश से करोड़ों लोग भारत में घुस सकते हैं, सलाही दंपत्ति ओबामा के भोज में घुस सकते हैं, प्रधान मंत्री के कार्यालय में 'मोल' घुस सकता है तो अपन भी घुस ही जाएँगे ।

हमने कहा- और फिर रुश्दी को तो इसलिए बुलाया गया है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक है जब कि तू तो किसी लम्पट उम्मीदवार तक को वोट के लिए 'ना' नहीं कह सकता ।

तोताराम उखड़ गया- अरे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी डेढ़ हज़ार वर्ष पहले हो चुके, करोड़ों लोगों के श्रद्धास्पद व्यक्ति पर कीचड़ उछालना ही है क्या ? यह तो उपनिवेशवादी देशों की चाल है कि वे ईसाई धर्म के अलावा अपने धर्म या देश को गाली निकालने वाले किसी भी सिरफिरे को उछाल देते हैं । उनके बाप का क्या जाता है ? यदि समरसता भंग होगी तो किसी और की । अच्छा है किसी अन्य धर्म की छीछालेदारी होगी तो उनके धर्म के लिए स्थान की संभावना बनेगी । ऐसे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करने वाले हैं तो ईसाई धर्म पर कीचड़ उछालने वाले किसी लेखक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर पुरस्कृत क्यों नहीं करते ?

किसी पर कीचड़ उछालना, अश्लीलता फैलाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या साहित्य नहीं है । यदि ऐसा ही है तो पूनम पांडे को दैहिक-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम सम्मानित क्यों नहीं किया जाता ? अरे, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही देखनी है तो कबीर में देख जिसने मुग़ल शासन में इस्लाम और काशी जैसी पंडितों की नगरी में दोनों धर्मों के पाखंड को ललकारा था, रैदास को देख जिसने गंगा के नाम से आडम्बर फ़ैलाने वालों को कह दिया था- 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' या फिर मीरा को देख जिसने कह दिया था- 'राणा जी म्हारो काईं करसी' । अंग्रेजों के राज में उत्तर प्रदेश से निकलने वाले अखबार 'नव भारत' के एक के बाद चार-चार संपादक देश भक्ति के अपराध में सेल्यूलर जेल में भेज दिए गए थे ।

हम जानते हैं कि हम बहस में तोताराम से नहीं जीत सकते सो बात बदलने के लिए कहा- मगर तोताराम, जयपुर में ठहरेंगे कहाँ ? यदि रेल के प्लेट फ़ार्म पर रात गुजारी तो हो सकता है कि अगले दिन उत्सव में पहुँचने की जगह कहीं ऊपर ही नहीं पहुच जाएँ ।

तोताराम के पास इसका भी उत्तर था, बोला- रुश्दी के लिए जो कमरा बुक करवाया था उसके पैसे तो लग ही गए होंगे । वह नहीं आया तो हम ही उस कमरे में ठहर जाएँगे । आयोजकों का कोई एक्स्ट्रा खर्चा भी नहीं लगेगा ।

हमने कहा- मगर तोताराम यह भी तो हो सकता है कि हम रात को उस कमरे में सोएँ और कोई कट्टरपंथी किसी तरह होटल में घुस कर हमें या तुझे ही रुश्दी समझ कर काम तमाम कर जाए ।

तभी तोताराम ने कहा- बंटी की दादी ने रास्ते के लिए गोंद के कुछ लड्डू बाँधे थे । मैं लाना भूल गया । अभी लेकर आता हूँ । तू तब तक जल्दी से तैयार हो ।

हम तैयार हुए बैठे हैं । उत्सव के समापन का दिन आ रहा है और तोताराम का कहीं पता नहीं ।

२१-१-२०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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