जूते और फीते
१९ जनवरी २०१२ को छिन्दवाड़ा, मध्य प्रदेश में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के सहकारिता और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री गौरीशंकर चतुर्भुज बिसेन द्वारा एक बालक से अपने जूतों के फीते बँधवाने का समाचार पढ़कर बाल-अधिकारों के समर्थक अन्य लोगों की तरह हमें भी बुरा लगा । अब हमारे लिए यह तो संभव नहीं है कि हम मंत्री से सवाल-ज़वाब तलब करें । हमारे पास तो दो ही रास्ते हैं कि या तो उन्हें पत्र लिख दें या फिर तोताराम से एक्सपर्ट ओपिनियन लें ।
आते ही चाय हाजिर करने से पहले हमने तोताराम से इसी विडंबना का ज़िक्र किया तो कहने लगा- विद्या से सबसे पहले विनय प्राप्त होती है और उसके बाद ही जीवन की सफलता के सारे द्वार खुलते हैं । यदि इस बालक ने वास्तव में ही मंत्री जी के जूतों के फीते बाँधे हैं तो इस बालक का भविष्य बहुत उज्ज्वल है । आज तक जितने लोगों ने जूतों के फीते बाँध कर उन्नति की हैं उतने जूते फेंकने वालों ने नहीं की है । जूते फेंकने वाले दो दिन चर्चित हो जाते हैं मगर जूतों के फीते बाँधने वाले या जूते उठाने वाले जीवन भर मौज करते हैं और सत्ता का सुख भोगते हैं । इमरजेंसी में भी कहा जाता है कि कई वयोवृद्ध नेताओं तक ने संजय गाँधी के जूते उठाए थे और जीवन भर सत्ता में उच्च पदों का सुख भोग था ।
जूते उठाना भक्ति और श्रद्धा का प्रमाण है । आजकल कहाँ मिलते हैं सच्चे जूते उठाने वाले । आजकल तो यदि कोई पैर छूने भी झुकता है तो लगता है कहीं टाँगें ही न खींच ले या जूते पहनाते-पहनाते जूते उठाकर ही गायब न हो जाए या फिर वे जूते कहीं सिर पर न दे मारे । सच्चे भक्त को यह नहीं देखना चाहिए कि स्वामी क्या आज्ञा दे रहा है, उसे तो बस तत्काल उसका पालन करना चाहिए । ऐसे ही सच्चे भक्त के वश में तो भगवान भी हो जाते हैं । कहते हैं भगवान ने कई सच्चे भक्तों की भक्ति से प्रभावित होकर तरह-तरह से स्वयं भक्तों की सेवा की है । कहते हैं कि एक भक्त का तो भगवान ने स्वयं खेत जोता था । मोहम्मद गौरी ने तो अपने सबसे स्वामिभक्त गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का बादशाह बना दिया था । फिर यह नेता तो गौरी शंकर चतुर्भुज बिसेन है । गौरीशंकर अर्थात शिव, चतुर्भुज अर्थात ब्रह्मा और बिसेन अर्थात विष्णु मतलब कि साक्षात् ईश्वर । लोग तो ईश्वर की माया को ही जूते पहनाते हैं, उसके चरणों का स्पर्श करते हैं उसके आगे जूते उतार कर ज़मीन पर बैठते हैं फिर यह तो साक्षात् ईश्वर है ।
ईश्वर ही सब का सच्चा मूल्यांकन कर सकता है तभी इसने एक बार कहा था कि आदिवासियों को समझ नहीं होती या ब्राह्मण जन्म से ही मूर्ख होते हैं । सच है, यदि ब्राह्मणों में ही अकल होती तो राजाओं का मार्गदर्शन करने की बजाय वशिष्ठ या चाणक्य जैसे ब्राह्मण स्वयं राजा नहीं बन जाते ? और फिर इसी के पीछे क्यों पड़ रहा है । जब लालू जी मुख्य मंत्री थे तो उन्होंने भरी सभा में अपने चीफ सेक्रेटरी से अपने लिए खैनी बनवाई थी । सोचो यदि वह पद के अभिमान में आकर ऐसा नहीं करता तो पता नहीं कहा-कहाँ धक्के खाता फिरता । जब कि अब शांतिपूर्वक रिटायर होकर पटना में सुखी जीवन बिता रहा है । अरे, यह तो एक मंत्री था, एक साधारण से एम.एल.ए. या नगरपालिका अध्यक्ष या सरपंच तक को देख ले उसको भी एक नहीं अनेक जूते पहनाने वाले मिल जाएँगे । और तू इस बालक को शोषित क्यों मानता है? हो सकता है यह कोई स्काउट हो जो अपने जूते स्वयं न पहन सकने वाले मज़बूर व्यक्ति की मदद कर रहा हो ।
हम अब तक बोर और दुखी हो चुके थे सो कहा- हम ऐसे मज़बूरों को बहुत जानते हैं । यदि इसी की पार्टी का अध्यक्ष या मुख्यमंत्री आ जाए तो यह खुद उसे जूते पहनाने के लिए भागेगा । लेकिन राहुल गाँधी तो इससे कोई कमतर नेता नहीं हैं मगर पाँच साल पहले हमने उनका एक फोटो देखा था जिसमें वे अपने जूतों के फीते खुद बाँध रहे थे ।
तोताराम कोई चूकने वाल थोड़े ही है, कहने लगा- अरे, जब प्रधान मंत्री बन जाएँ तब देखना ।
अब जो बात भविष्य के गर्भ में है उसको लेकर तो तर्क किया भी नहीं जा सकता । अब तो उत्तर देने राहुल के प्रधानमंत्री बनने का इंतज़ार करना पड़ेगा । वैसे हम व्यक्तिगत रूप से किसी से जूतों के फीते न बँधवाने को सुरक्षा की दृष्टि से एक सतर्कतापूर्ण उपाय मानते हैं ।
तोताराम ने बात समाप्त करते हुए आगे कहा- अरे, जूते पहनाना कई और तरीकों से भी तो हो सकता है ।
अबकी बार हम तोताराम की व्यंजना से असहमत नहीं हो सके ।
२४-१-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
जूते में ही बूता है....
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