भारत एक 'प्रधान' देश है इसलिए वह जब चाहे, जिस क्षेत्र में चाहे प्रधान बन जाता है । पहले वह एक कृषि प्रधान देश था । उस समय देश में भुखमरी थी । अनाज विदेशों से आता था । किसी तरह कृषि विश्वविद्यालय खुले, खाद के कारखाने खुले, बीजों में भी सुधार हुआ और कृषि उत्पादों में आत्मनिर्भरता आई । मगर उसे तो एक विकसित देश बनना था सो इतना विकसित हुआ कि अनाज निर्यात किया जाने लगा और इतना निर्यात किया गया कि फिर से उसी अनाज को, उन्हीं देशों से महँगे भावों पर फिर आयात करना पड़ा । अब हालत यह है अनाज गोदामों में सड़ रहा है और लोग भूखे मर रहे हैं । अब उसे यंत्रीकरण में उन्नति करनी थी सो यंत्रीकरण शुरु हुआ और हालत यह हो गई कि कारें बढ़ गईं और सड़कें कम पड़ गईं । कान कम पड़ गए और मोबाइल ज्यादा हो गए । मोबाइल कानों को ढूँढते फिर रहे हैं ।
उसके बाद यह देश एक लोकतंत्र-प्रधान देश बन गया । उसके सारे निर्णय लोकतंत्र के अनुसार लिए जाने लगे- चाहे वह रोटी का प्रश्न हो या फिर रोजी का । अब तो हालत यह है कि भगवान के बारे में भी और यहाँ तक कि न्याय संबंधी निर्णय भी लोकतंत्र अर्थात वोट बैंक के आधार पर लिए जाने लगे हैं । अब इस देश को विज्ञान प्रधान बनाने की जी तोड़ कोशिशें हो रही हैं हालाँकि केमेस्ट्री, भौतिकी आदि किसी के साथ भी विज्ञान नहीं लगा हुआ है जब कि विज्ञान लगा हुआ होने पर भी राजनीति विज्ञान, गृह विज्ञान, भाषा विज्ञान को कोई विज्ञान मानने के लिए तैयार नहीं । अजीब विडंबना है ।
जब से तोताराम ने न्यूटन के गुरुत्त्वाकर्षण के सिद्धांत को झूठ सिद्ध किया है तब से हमने उसे अपने छाया-मंत्रीमंडल में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त कर लिया है और विज्ञान के बारे में हम हर मामले में उसी से सलाह करते हैं । अभी कोई आठ-दस दिनों पहले कलाम साहब ने कहा कि हमारे देश में शोध और आविष्कार कम होते हैं । सो आज जैसे ही तोताराम आया हमने तोताराम के सामने समस्या रखी तो कहने लगा- कलाम साहब को देश में हो रहे आविष्कारों और खोजों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, यदि होती तो वे ऐसा नहीं कहते ।
हमने कहा- तोताराम, कलाम साहब तो बहुत अपडेट रहने वाले व्यक्ति हैं । यदि ऐसा कुछ होता तो उनसे क्या छुपा रहता ?
तोताराम ने कहा- कलाम साहब बहुत ऊँची बातें सोचते हैं । बड़ी-बड़ी जगहों पर जाते हैं इसलिए उन्हें सामान्य लोगों द्वारा किए जा रहे आविष्कारों की जानकारी नहीं है । वैसे जब कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था तब भी लोगों ने अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा का चमत्कार दिखाया था । तब कागजों में जितने कोयले का उत्पादन हुआ उससे ज्यादा निर्यात कर दिया गया । यह किसी बहुत बड़े वैज्ञानिक चमत्कार से कम है क्या ?
सरकार के बैंकों में, पोस्ट आफिस में जमा करवाने पर रुपया रो-रो कर कोई आठ साल में दुगुना होता है जब कि राजस्थान में एक 'स्वर्ण-सुख' नामक कंपनी ने एक साल में रुपया पन्द्रह गुना करने का वादा किया तो क्या यह मनमोहन जी के अर्थ-विज्ञान से कम है ?
हमने प्रतिवाद किया- मगर रुपया पन्द्रह गुना कहाँ हुआ ?
तोताराम ने उत्तर दिया- पन्द्रह गुना क्या, पन्द्रह लाख गुना हो गया । पता है, कंपनी बनाने वालों ने जितना विज्ञापन और कार्यालय खोलने में खर्च किया और जितना जनता के धन की सुरक्षा करने वालों को दिया उससे तो पन्द्रह लाख गुना से भी ज्यादा हो गया । अब उससे कौन बहस करे ?
हमने विषय का एक और आयाम निकाला- कहा, यह तो धोखाधड़ी है । कोई ऐसा आविष्कार बता जिससे कोई खाने-पीने की चीज़ बढ़ी हो ।
निरुत्तर हो जाने वाला तोताराम नहीं है । कहने लगा- जिस समय देश स्वतंत्र हुआ था उस समय जितना दूध का उत्पादन होता था उससे जाने कितना गुना बढ़ गया है जब कि हमारा देश सबसे ज्यादा चमड़े का निर्यात करता है । गाएँ सड़कों पर धक्के खाती फिरती हैं, गौशालाओं में अनुदान मिलने पर भी भूखी मरती हैं । फिर भी जब कभी कोई त्यौहार आता है तो मावे और दूध की निर्बाध सप्लाई हो जाती है । जितना चाहो पनीर, बटर और घी ले लो । ऐसी घी-दूध की नदियाँ तो कृष्ण के समय में भी नहीं बहती थीं ।
हमारे पास कोई उत्तर नहीं था सो हमने कहा- बंधु, तुम्हारी इन सूचनाओं से हमारा अत्यंत ज्ञानवर्धन हुआ है और कलाम साहब का तो पता नहीं, पर विज्ञान में देश के कम उन्नति करने के कारण हमारे मन में व्याप्त हीन-भावना समाप्त हो गई है और हमें लग रहा है कि गर्व से हमारी छाती कुछ-कुछ चौड़ी भी हो रही है ।
तोताराम ने देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में आगे बताया कि एक ही स्थान पर दो तरह के गुरुत्त्वाकर्षण बनाए जा सकते हैं । आज भी देश में ऐसे चमत्कारी लोग मिल जाएँगे जो सामान खरीदते समय बाट वाले पलड़े में गुरुत्त्वाकर्षण की मात्रा इतनी बढ़ा देते हैं कि पाँच किलो की जगह सात किलो सामान आ जाता है और बेचते समय सामान वाले पलड़े का गुरुत्त्वाकर्षण इतना बढ़ा देते हैं कि पाँच किलो की जगह तीन किलो सामान की ग्राहक के पल्ले पड़ता है ।
इस देश में वैज्ञानिकों ने ऐसी क्रीम बना ली है जो केवल पाँच रुपए में मिल जाती है और उपयोग करने वाली को चौदह दिन में ही इतना गोरा बना देती है कि उसे तत्काल दूल्हा मिल जाता है या किसी विमानन कंपनी में एयर होस्टेस की नौकरी मिल जाती है । आज तक कोई भी गोरा देश ऐसी क्रीम नहीं बना सका जिससे यह चमत्कार हो सके अन्यथा वे सरलता से सभी अफ्रीकियों को गोरा बना देते और जो एकता ईसाई बनाने पर भी नहीं आ सकी वह आ जाती और फिर सभी काले अफ्रीकी उन्हें अपना ही भाई समझते और गोरों को अफ्रीका से नहीं जाना पड़ता और न ही उन पर रंग भेद का आरोप लगता ।
और फिर यह तो तुम्हें मालूम ही होगा कि बिहार में पशु-पालन विभाग के कर्मचारियों ने नेताओं के निर्देशन में ऐसा स्कूटर बनाया था जिस पर बैठकर भैंस हरियाणा से बिहार जा सकती थीं । उसी काल में ऐसी क्षुधावर्द्धक दवा बना ली थी जिसे खाकर एक मुर्गी आठ सौ रुपए का चारा खा सकती थी । अब यह बात और है कि दो-चार दिन पहले ही बिहार के पशुपालन विभाग के कोई चालीस से अधिक कर्मचारियों को इस आविष्कार के लिए पुरस्कृत किया गया मगर पता नहीं बेचारे लालू जी और जगन्नाथ मिश्र को इस गौरव से क्यों वंचित कर दिया ?
आँगनबाड़ियों में सभी बच्चों को दो-पाँच रुपए में पौष्टिक भोजन खिला कर भी संचालक लोग स्वयं लखपति बन गए हैं । यह क्या किसी चमत्कारिक आविष्कार से कम है ? इतना तो द्रौपदी की अन्नपूर्णा वाली हंडिया से भी संभव नहीं था । कलाम साहब ने तो इतने वर्षों तक दिमाग खपाकर कुछ मिसाइलें बनाईं मगर अपने यहाँ तो ऐसे-ऐसे महापुरुष पड़े हैं जो हजारों किलोमीटर दूर बैठकर शब्दों से ही ऐसे-ऐसे गोले दागते हैं कि सामने वाले का मरण हो जाता है । बाजार ने ऐसे-ऐसे आविष्कार कर लिए हैं कि कोल्हू में डालने की ज़रूरत ही नहीं, दूर से ही चलते फिरते आदमी का तेल निकाल लेते हैं ।
हमने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा और कहा- तो फिर तोताराम, हमारे इन वैज्ञानिकों को नोबल पुरस्कार क्यों नहीं मिलता ?
तोताराम ने कहा- अरे, हम ज्ञान के पुजारी हैं । न तो हम किसी पुरस्कार के पीछे भागते हैं और न ही पेटेंट लेकर किसी आविष्कार से पैसे कमाना चाहते हैं । हम तो सर्वजन-हिताय काम करते हैं ।
अब आप ही बताइए कि ऐसे ज्ञानी और तार्किक व्यक्ति से कोई कैसे जीत सकता है ? वैसे हम भी जीत कर तोताराम का मुँह बंद नहीं करना चाहते ।
१९-१-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
उसके बाद यह देश एक लोकतंत्र-प्रधान देश बन गया । उसके सारे निर्णय लोकतंत्र के अनुसार लिए जाने लगे- चाहे वह रोटी का प्रश्न हो या फिर रोजी का । अब तो हालत यह है कि भगवान के बारे में भी और यहाँ तक कि न्याय संबंधी निर्णय भी लोकतंत्र अर्थात वोट बैंक के आधार पर लिए जाने लगे हैं । अब इस देश को विज्ञान प्रधान बनाने की जी तोड़ कोशिशें हो रही हैं हालाँकि केमेस्ट्री, भौतिकी आदि किसी के साथ भी विज्ञान नहीं लगा हुआ है जब कि विज्ञान लगा हुआ होने पर भी राजनीति विज्ञान, गृह विज्ञान, भाषा विज्ञान को कोई विज्ञान मानने के लिए तैयार नहीं । अजीब विडंबना है ।
जब से तोताराम ने न्यूटन के गुरुत्त्वाकर्षण के सिद्धांत को झूठ सिद्ध किया है तब से हमने उसे अपने छाया-मंत्रीमंडल में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त कर लिया है और विज्ञान के बारे में हम हर मामले में उसी से सलाह करते हैं । अभी कोई आठ-दस दिनों पहले कलाम साहब ने कहा कि हमारे देश में शोध और आविष्कार कम होते हैं । सो आज जैसे ही तोताराम आया हमने तोताराम के सामने समस्या रखी तो कहने लगा- कलाम साहब को देश में हो रहे आविष्कारों और खोजों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, यदि होती तो वे ऐसा नहीं कहते ।
हमने कहा- तोताराम, कलाम साहब तो बहुत अपडेट रहने वाले व्यक्ति हैं । यदि ऐसा कुछ होता तो उनसे क्या छुपा रहता ?
तोताराम ने कहा- कलाम साहब बहुत ऊँची बातें सोचते हैं । बड़ी-बड़ी जगहों पर जाते हैं इसलिए उन्हें सामान्य लोगों द्वारा किए जा रहे आविष्कारों की जानकारी नहीं है । वैसे जब कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था तब भी लोगों ने अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा का चमत्कार दिखाया था । तब कागजों में जितने कोयले का उत्पादन हुआ उससे ज्यादा निर्यात कर दिया गया । यह किसी बहुत बड़े वैज्ञानिक चमत्कार से कम है क्या ?
सरकार के बैंकों में, पोस्ट आफिस में जमा करवाने पर रुपया रो-रो कर कोई आठ साल में दुगुना होता है जब कि राजस्थान में एक 'स्वर्ण-सुख' नामक कंपनी ने एक साल में रुपया पन्द्रह गुना करने का वादा किया तो क्या यह मनमोहन जी के अर्थ-विज्ञान से कम है ?
हमने प्रतिवाद किया- मगर रुपया पन्द्रह गुना कहाँ हुआ ?
तोताराम ने उत्तर दिया- पन्द्रह गुना क्या, पन्द्रह लाख गुना हो गया । पता है, कंपनी बनाने वालों ने जितना विज्ञापन और कार्यालय खोलने में खर्च किया और जितना जनता के धन की सुरक्षा करने वालों को दिया उससे तो पन्द्रह लाख गुना से भी ज्यादा हो गया । अब उससे कौन बहस करे ?
हमने विषय का एक और आयाम निकाला- कहा, यह तो धोखाधड़ी है । कोई ऐसा आविष्कार बता जिससे कोई खाने-पीने की चीज़ बढ़ी हो ।
निरुत्तर हो जाने वाला तोताराम नहीं है । कहने लगा- जिस समय देश स्वतंत्र हुआ था उस समय जितना दूध का उत्पादन होता था उससे जाने कितना गुना बढ़ गया है जब कि हमारा देश सबसे ज्यादा चमड़े का निर्यात करता है । गाएँ सड़कों पर धक्के खाती फिरती हैं, गौशालाओं में अनुदान मिलने पर भी भूखी मरती हैं । फिर भी जब कभी कोई त्यौहार आता है तो मावे और दूध की निर्बाध सप्लाई हो जाती है । जितना चाहो पनीर, बटर और घी ले लो । ऐसी घी-दूध की नदियाँ तो कृष्ण के समय में भी नहीं बहती थीं ।
हमारे पास कोई उत्तर नहीं था सो हमने कहा- बंधु, तुम्हारी इन सूचनाओं से हमारा अत्यंत ज्ञानवर्धन हुआ है और कलाम साहब का तो पता नहीं, पर विज्ञान में देश के कम उन्नति करने के कारण हमारे मन में व्याप्त हीन-भावना समाप्त हो गई है और हमें लग रहा है कि गर्व से हमारी छाती कुछ-कुछ चौड़ी भी हो रही है ।
तोताराम ने देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में आगे बताया कि एक ही स्थान पर दो तरह के गुरुत्त्वाकर्षण बनाए जा सकते हैं । आज भी देश में ऐसे चमत्कारी लोग मिल जाएँगे जो सामान खरीदते समय बाट वाले पलड़े में गुरुत्त्वाकर्षण की मात्रा इतनी बढ़ा देते हैं कि पाँच किलो की जगह सात किलो सामान आ जाता है और बेचते समय सामान वाले पलड़े का गुरुत्त्वाकर्षण इतना बढ़ा देते हैं कि पाँच किलो की जगह तीन किलो सामान की ग्राहक के पल्ले पड़ता है ।
इस देश में वैज्ञानिकों ने ऐसी क्रीम बना ली है जो केवल पाँच रुपए में मिल जाती है और उपयोग करने वाली को चौदह दिन में ही इतना गोरा बना देती है कि उसे तत्काल दूल्हा मिल जाता है या किसी विमानन कंपनी में एयर होस्टेस की नौकरी मिल जाती है । आज तक कोई भी गोरा देश ऐसी क्रीम नहीं बना सका जिससे यह चमत्कार हो सके अन्यथा वे सरलता से सभी अफ्रीकियों को गोरा बना देते और जो एकता ईसाई बनाने पर भी नहीं आ सकी वह आ जाती और फिर सभी काले अफ्रीकी उन्हें अपना ही भाई समझते और गोरों को अफ्रीका से नहीं जाना पड़ता और न ही उन पर रंग भेद का आरोप लगता ।
और फिर यह तो तुम्हें मालूम ही होगा कि बिहार में पशु-पालन विभाग के कर्मचारियों ने नेताओं के निर्देशन में ऐसा स्कूटर बनाया था जिस पर बैठकर भैंस हरियाणा से बिहार जा सकती थीं । उसी काल में ऐसी क्षुधावर्द्धक दवा बना ली थी जिसे खाकर एक मुर्गी आठ सौ रुपए का चारा खा सकती थी । अब यह बात और है कि दो-चार दिन पहले ही बिहार के पशुपालन विभाग के कोई चालीस से अधिक कर्मचारियों को इस आविष्कार के लिए पुरस्कृत किया गया मगर पता नहीं बेचारे लालू जी और जगन्नाथ मिश्र को इस गौरव से क्यों वंचित कर दिया ?
आँगनबाड़ियों में सभी बच्चों को दो-पाँच रुपए में पौष्टिक भोजन खिला कर भी संचालक लोग स्वयं लखपति बन गए हैं । यह क्या किसी चमत्कारिक आविष्कार से कम है ? इतना तो द्रौपदी की अन्नपूर्णा वाली हंडिया से भी संभव नहीं था । कलाम साहब ने तो इतने वर्षों तक दिमाग खपाकर कुछ मिसाइलें बनाईं मगर अपने यहाँ तो ऐसे-ऐसे महापुरुष पड़े हैं जो हजारों किलोमीटर दूर बैठकर शब्दों से ही ऐसे-ऐसे गोले दागते हैं कि सामने वाले का मरण हो जाता है । बाजार ने ऐसे-ऐसे आविष्कार कर लिए हैं कि कोल्हू में डालने की ज़रूरत ही नहीं, दूर से ही चलते फिरते आदमी का तेल निकाल लेते हैं ।
हमने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा और कहा- तो फिर तोताराम, हमारे इन वैज्ञानिकों को नोबल पुरस्कार क्यों नहीं मिलता ?
तोताराम ने कहा- अरे, हम ज्ञान के पुजारी हैं । न तो हम किसी पुरस्कार के पीछे भागते हैं और न ही पेटेंट लेकर किसी आविष्कार से पैसे कमाना चाहते हैं । हम तो सर्वजन-हिताय काम करते हैं ।
अब आप ही बताइए कि ऐसे ज्ञानी और तार्किक व्यक्ति से कोई कैसे जीत सकता है ? वैसे हम भी जीत कर तोताराम का मुँह बंद नहीं करना चाहते ।
१९-१-२०१२
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