वैसे तो सभी बातों का हिसाब लगाने के नियम गणित में बने हुए हैं मगर कुछ लोग इन नियमों में विश्वास नहीं करते और अपने हिसाब से नियम बनाते हैं । कुछ महिलाएँ पता नहीं कैसे हिसाब लगाती हैं कि बीस-तीस से ऊपर जाती ही नहीं । कुछ लोग कहते हैं कि पुरुष की उम्र उतनी है जितने का वह अनुभव करता है और औरत की उम्र उतनी है जितने की वह दिखती है । अब इस दिखने में भी कई चक्कर हैं । पता नहीं, यह सिद्धांत मेकअप के बाद दिखने का है या मेकअप से पहले दिखने का है । मेकअप उतारने के बाद अधिकतर महिलाएँ अपनी दादी की उम्र की लगने लग जाती हैं ।
पुरुषों का भी यही हाल है । जब उन्हें गद्दी पर बने रहना है या चुनाव का टिकट चाहिए तो वे अपने को दिल से जवान बताते हैं और बाल रंग कर सीधे तन कर चलते हैं और कभी-कभी जवान दिखने के चक्कर में हाथ-पैर भी तुड़वा बैठते हैं । वैसे कई नेता वास्तव में ही कमाल करते हैं और अस्सी से भी अधिक की उम्र में उनकी सीडियाँ पकड़ी जाती हैं और फिर उन्हें पद त्यागना पड़ता है । जब जेल जाने की नौबत आती है तो सभी अपनी बीस-तीस बीमारियों की लिस्ट थमा देते हैं और बुढ़ापे के आधार पर जमानत या माफ़ी चाहते हैं ।
कुछ लोग नौकरी पाने के लिए एक दो वर्ष कम होने पर भी अपनी उम्र अधिक लिखवा देते हैं और बाद में रिटायरमेंट के समय पछताते हैं कि यदि ऐसा नहीं किया होता तो ठीक होता । कुछ ऐसे कर्मचारी भी देखे गए हैं जिनके लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की आवशयक नहीं होती थी तो वे अपनी जो भी उम्र बता दें सो ठीक । ऐसे लोग सत्तर-अस्सी की उम्र तक नौकरी करते देखे जाते थे । आज भी चुनाव लड़ रहे कई नेताओं की कई-कई उम्र बताई गई हैं । पर सही वही होगा जो वे कहेंगे । उन्हें कौन सा रिटायर होना है ?
आवारा जानवरों को न कोई खरीदता है और न बेचता है सो उनके लिए तो कोई फार्मूला नहीं है मगर पालतू जानवरों की उम्र का हिसाब उनके दाँत गिनकर लगाया जाता है मगर जब मुफ्त में मिले तो दाँत भी नहीं देखे जाते जैसे कि दान की बछिया के । हाथी के दो तरह के दाँत होते हैं । पता नहीं उसके कौनसे दाँत गिने जाते हैं ? अब जिनकी उम्र का हिसाब लगाया जाना है उनमें यह भी देखना पड़ता है कि वह जानवर कैसा है ? सीधे जानवर की बात और है पर किसी खूँख्वार से पाला पड़ जाए तो हम दाँत गिनने जाएँ और वह हाथ ही चबा जाए ।
कभी-कभी उम्र घटाकर बताने में फायदा है तो कभी बढ़ाकर बताने में । साधु अपनी उम्र बढ़ाकर बताता है जिससे उसके तप और ब्रह्मचर्य का प्रभाव पड़े । पेशेवर स्त्रियां अपनी उम्र घटा कर बताती हैं । अधिकतर सरकारी कर्मचारियों के लिए यह सुविधा नहीं है कि अपनी उम्र में परिवर्तन कर सकें । अब एक देश की रक्षा करने वाले महाशय की उम्र का सवाल उठ खड़ा हुआ है । दसवीं के प्रमाण-पत्र में कुछ और है और सरकारी फ़ाइल में कुछ और । जब तक एक से फायदा मिलता रहा तो उससे फायदा लिया और जब दूसरी से फायदा मिलने की उम्मीद हुई तो दूसरी पर अड़ गए ।
अरे, भई रिटायर तो होना ही है आज नहीं तो कल । बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी । यह कोई राजनीति तो है नहीं कि भूस भरा हुआ नेता भी गद्दी पर बैठा रहे तो काम चल जाता है क्योंकि वास्तव में उसे कोई काम करना ही नहीं होता । जनता अपनी फाड़ती-सीती है । जिन्हें नेता के नाम से रिश्वत लेनी होती है वह लेता ही रहता है चाहे 'क' के नाम से ले या 'ख' के नाम से ले । पता नहीं, एक साल में क्या हो जाएगा ?
खैर, हम तो आज़ादी से पहले ही स्कूल में भर्ती हो गए थे और उस समय जो मास्टर जी लिख देते थे वही सही । जैसे कि मतदाता पहचान पत्र आदि में जो भी छापने वाले छाप दें, उनकी मर्जी । हमारी पत्नी की उम्र हमसे पाँच साल अधिक छाप दी । अब क्या कहें । राम-राम करके तो पहचान पत्र बना अब उसे ठीक करवाने में उससे भी ज्यादा झंझट । हमने एक बार दिल्ली में अपने सेवाकाल में पैन कार्ड बनवाया । सब कुछ सही लिखकर देने के बावज़ूद हमारे नाम की वर्तनी गलत लिख दी । हम इनकम टेक्स कार्यालय में गए तो बताया गया कि इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । फोटो तो आपकी ही है ना ? अब हम क्या कहते ? वही पुराना गलत वर्तनी का कार्ड लिए बैठे हैं । वैसे अब तो वह व्यर्थ ही हो चुका है क्योंकि इतनी पेंशन ही नहीं बनती कि टेक्स लगे । पर गलती तो गलती ही है ।
मास्टर जी ने हमारी जन्म तिथि ५ जुलाई लिख दी । शायद उसी दिन एडमीशन हुआ होगा । गिन कर पाँच साल का हिसाब लगा लिया । वैसे हमारा जन्म दिन १८ अगस्त है । यही हाल जन्म के समय का है । हमारी माँ का कहना है जन्म से पहले साढ़े ग्यारह बजे रात को आने वाली गाड़ी आ चुकी थी और हमारी दादी कहती थीं कि गाड़ी जन्म होने के बाद आई थी । इसीलिए हमारे ज्योतिषी चाचा हमारे बारे में कोई निश्चित भविष्य वाणी नहीं कर सके । उनके अनुसार हमें इंजीनीयर होना चाहिए था जब कि हम मास्टर बनकर शब्दों की ठोका-पीटी करते रहे । अगर पता होता कि १५ अगस्त को देश स्वतंत्र होने वाला है तो १५ अगस्त करवा लेते । उससे भी खैर, होना जाना तो क्या था ? पर एक झूठ-मूठ का रोमांच तो ज़रूर हो जाता कि क्या पता, यदि हम इस धरा-धाम पर न आते तो अंग्रेज देश को आज़ाद करते या नहीं ।
वैसे भाई साहब हम तो यह जानते हैं कि यमराज और घरवाली दोनों आपकी सही उम्र जानते हैं । नकली दाँत लगवा कर, बाल काले रँग कर आप इन्हें धोखा नहीं दे सकते । पत्नी को पता है कि आप साठ के हो चुके हैं और यमराज भी सही समय पर आ ही जाएगा । उसे कोई धोखा नहीं दे सकता । फिर कैसी उठापटक ?
किसको धोखा दे रहे काले रँगकर बाल ।
दोनों ही सच जानते घर वाली औ' काल ॥
१९-१-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
मेकअप उतारने के बाद अधिकतर महिलाएँ अपनी दादी की उम्र की लगने लग जाती हैं ।
ReplyDeleteवाह आदरणीय जोशी कितनी सही और सच्ची बात कही है आपने...
नीरज