Jan 27, 2012
राष्ट्रीय-गर्व
राष्ट्रीय-गर्व
नार्वे में बाल विकास में संलग्न संस्था की बंगाली दंपत्ति से उनके बच्चे लेकर किसी 'बाल विकास की विशेषज्ञ' की सँभाल में रख दिया गया, यह घटना पिछले साल मई की है | इस संचार-समृद्ध संसार में भी नार्वे से भारत की जनता तक यह समाचार पहुँचने में आठ महिने लगे | कुछ भी हो, समझौता हो ही गया | अपनी सरकार और विशेष रूप से विदेश मंत्री जी की सक्रियता से हम बहुत प्रभावित हुए | तोताराम के आते ही हमने कहा- देखा, तोताराम अपनी सरकार का रुतबा ? दो-चार दिन में ही समझौता हो गया |
तोताराम स्थाई विपक्ष है | हम जो भी कहते हैं उसे कभी भी स्वीकार नहीं करता | कहने लगा- अरे, नार्वे में स्थित भारतीय दूतावास की निष्क्रियता की बात क्यों नहीं करता ? यदि यह समाचार मीडिया में नहीं आता तो अब भी कुछ होने वाला नहीं था | यह उस दंपत्ति के साथ संवेदना नहीं है बल्कि भद्द पिटने के डर से की गई कार्यवाही है | और यह कोई समझौते का विषय था क्या ? कौन-सा झगड़ा था, यह तो सीधे-सीधे दादागीरी का मामला था | और अब भी क्या कोई नार्वे ने यह थोड़े ही स्वीकार किया है कि उससे गलती हुई है | वह तो अब भी अपनी बात पर कायम है कि बच्चे के साथ अन्याय हुआ | उसे अन्याय से बचाने के लिए बच्चे को उसके माता-पिता को थोड़े ही दिया गया है बल्कि उसके चाचा-चाची को दिया गया है | अब भी किसे पता है कि नार्वे की सरकार कोलकाता में भी उस बच्च्चे के पालन-पोषण की निगरानी नहीं रखेगी ? अब भी हो सकता है कि यदि उसके चाचा-चाची अब भी उस बच्चे को दही-चावल खिलाएँगे तो उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं करेगी ?
हमने कहा- भई, जब हम किसी देश में जाते हैं तो उस देश के नियमों को तो मानना ही चाहिए ना ? व्हेन यू आर इन रोम, डू एज रोमंस ड़ू |
तोताराम बिफर गया- हाँ-हाँ, हमें तो रोम में ही क्या, भारत में रह कर भी वैसे ही करना पड़ेगा जैसे रोमंस कहेंगे | यह ताकतवर की टाँग है जो हर हालत में ऊपर ही रहेगी | दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर क्या-क्या शर्तें नहीं लादी गई थीं | मगर चलो जर्मनी तो हारा हुआ था पर हम कौनसे हारे हुए हैं जो ज़रा सा भी प्रतिवाद नहीं किया कि बंगाली दंपत्ति की कोई गलती नहीं थी |
ब्रिटेन ने सबसे ज्यादा अत्याचार पंजाब में किए थे | जलियाँवाला बाग कांड वहीं हुआ था | मगर अब भी हीथ्रो हवाई अड्डे पर झाड़ू लगाने वाले अधिकतर लोग पंजाब के ही हैं | जब एलिजाबेथ भारत आने वाली थीं तब लोगों ने बहुत हल्ला मचाया था कि उन्हें जलियाँवाला कांड के लिए माफ़ी माँगनी चाहिए मगर वे स्वर्ण-मंदिर गईं भी मगर माफ़ी माँगना तो दूर की बात, उनके पतिदेव ने तो यहाँ तक कह दिया कि जलियाँवाला कांड में मारे गए लोगों की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर बताई गई है | अब कर लो बात |
अब भी कभी अमेरिका में, तो कभी किसी और योरोपीय देश में जब-तब ऐसे वक्तव्य आते रहे हैं जिनसे हमारा अपमान होता रहता है मगर कभी भी, कुछ भी निर्णायक कभी नहीं हो पाता | अमरीका बहुत बातें करता है मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की मगर जिस पादरी को कुरान जलानी थी उसने उस समय नहीं तो फिर कुछ दिन बाद कुरान जला ही दी ना ? और उसे दंड नहीं देने की बात आई तो कैसा मासूम बहाना बना दिया कि अमरीकी कानून में कुरान जलाने के बारे में कानून में दंड का कोई स्पष्ट विधान नहीं है पर होलोकास्ट के गलत बताने वाले को दंड का विधान अब भी है | इसका कारण यह है कि वहाँ यहूदी लाबी बहुत शक्तिशाली है | वे तुम्हारे देश की शक्ति को जानते हैं | वे जानते हैं कि यहाँ के नेता अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा और लाभ देखते हैं उन्हें राष्ट्रीय सम्मान या नुकसान की कोई परवाह नहीं है | तभी जब-तब, यहाँ-वहाँ थप्पड़ खाते रहते हैं |
नार्वे या और शक्तिशाली गोरे देश जो रोम में करते हैं वही यहाँ भी करेंगे | और तुम्हें यहाँ भी वही करना पड़ेगा जो रोम में करना पड़ता है | थोड़े दिनों में वे यह नियम भी बना देंगे कि अमुक देश में जाओगे तो अमुक कपड़े पहनने पड़ेंगे, अमुक खाना खाना पड़ेगा, अमुक तरह से बच्चों को पालना पड़ेगा | हो सकता है किसी दिन यह भी हो जाए कि वहाँ अपने हिसाब से पूजा-पाठ भी नहीं कर सको | हो सकता है किसी दिन यह भी कह दें कि ईसाई धर्म स्वीकार करना पड़ेगा | जिनके रीढ़ की हड्डी नहीं होती उनका यही हाल होता आया है और होता रहेगा |
हमने कहा- मगर सब कुछ इस दृष्टि से मत देखो | यहाँ तो कोई ज़बरदस्ती नहीं करता कि पिज्जा खाओ ही, कोकाकोला पिओ ही मगर लोग अपनी मर्जी से जब ऐसा करते हैं तो उन्हें क्या दोष दिया जा सकता है ? यहाँ भी अब स्तन-पान के लिए प्रचार करना पड़ता है | जब लोग अपनी मर्जी से ही स्तन-पान को छोड़ रहे हैं तो क्या किया जा सकता है ?
तोताराम ने उदास होकर कहा- बंधु, जब दूल्हे को ही लार टपकती है तो बारातियों को कौन पूछेगा ? वरना बंगाली दंपत्ति और कुछ नहीं तो इस अमानवीय नियम के विरुद्ध और इस समझौते की आलोचना करते हुए नार्वे वाला काम छोड़ भारत तो आ सकते थे | गाँधी जी ने तो साफ कह दिया था ब्रिटेन के सम्राट को उनसे मिलना हो तो मिलें मगर वे अपनी अधनंगे फकीर वाली पोशाक नहीं छोड़ेंगे | साहस के बिना कोई नहीं सुनता |
चलो, आज गणतंत्र-दिवस है, और कुछ नहीं तो कुर्ता पहन कर ही राष्ट्रीय-गर्व का अनुभव कर लेते हैं |
२६-१-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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main to aapka mitr hoon hi. aaka likh hamesh hi achchha hota hai.
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