Apr 14, 2012

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस

आज विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस है । पहले 'जिनका कोई नहीं होता उनका खुदा होता है' था और अब जिनका कोई नहीं होता उनका 'दिवस' होता है जैसे- मातृ दिवस, पितृ दिवस, महिला दिवस, मजदूर दिवस, हिंदी दिवस, खाद्य दिवस, मातृ भाषा दिवस, पृथ्वी दिवस आदि-आदि । और फिर उपभोक्ता तो 'उप' है भोक्ता तो शिव है । तभी कहा गया है- शिवो भोज्यः शिवो भोक्ता । शिव का अर्थ है 'कल्याण' और कल्याण का ठेका है नेताओं के पास । चाहे कल्याणकारी आश्वासन देना हो या कल्याणकारी योजनाएँ बनाना हो या फिर उनमें स्वकल्याणार्थ कमीशन खाना हो । मतलब कि कल्याण आज कल नेता का पर्याय है इस लिए यदि आज के शिव कोई हैं तो वे नेता ही हैं । अतः वे ही भोक्ता हैं और वे ही भोज्य । शेष तो उपभोक्ता हैं ।

और उपभोक्ता का दर्ज़ा वही है जो उपपत्नी का होता है । कहने को तो कहा जाता है कि वह पत्नी के प्यार पर अनधिकृत अधिकार कर लेती है लेकिन पति की तनख्वाह और पी.एफ. और उसके मरने के बाद उसकी पेंशन पर भी पत्नी का ही अधिकर होता है । उपपत्नी को तो प्रेमी के पत्रों पर ही अधिकार होता है यदि उसने अपने पिता या पति के डर से उन्हें जला नहीं दिया हो तो । और जहाँ तक पत्रों की रद्दी का सवाल है तो रद्दी अखबार वाला भी उन्हें नहीं लेता और यदि लेता भी है तो दो रुपए किलो ।

उपभोक्ता का नंबर सबसे अंत में आता है इसलिए यदि मूल्य चुकाना हो तो सबके कमीशन और लाभ का भुगतान उसे ही करना पड़ता है । मतलब कि जैसे नरेगा का लाभ हो या सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सामान के उपभोग का हो, उसका नंबर तब आता है जब मंत्री, अधिकारी, पंच, दुकानदार आदि छक लेते हैं । यह वैसे ही है जैसे कि सबसे बढ़िया आम पहले विदेश भेजा जाता है और बचे-खुचे में यहाँ के पैसे वाले निबटते हैं यदि कभी गले-सड़े या आँधी में झड़े कभी सस्ते में आ गए तो उपभोक्ता का नंबर आता है । या फिर ऐसे ही जैसे कि पहले राजा और नवाब गरीब विवाहिताओं तक को उठवा लेते थे और जब वे किसी काम की नहीं रहती थीं तो उनके वास्तविक पतियों का नंबर आता था । तो इस प्रकार अपना अधिकार दिवस मनाने वाले उपभोक्ताओं को अपनी असली स्थिति समझ लेनी चाहिए ।

उपभोक्ता को तरह-तरह से सावधान किया जाता है, उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए मंत्रालय तक बने हुए हैं । इससे अनुमान लगा लेना चाहिए कि व्यापार करने वाले कैसे लोग हैं । मतलब कि उपभोक्ता बड़े बदमाश लोगों से घिरा हुआ है । इसलिए हमारे अनुसार तो 'जागो ग्राहक' के स्थान पर होना चाहिए 'भागो ग्राहक' मगर बेचारा भाग कर जाएगा भी तो कहाँ ? शेर से बचेगा तो आगे बाघ बैठा है । बाघ से बचेगा तो तेंदुआ और फिर भेड़िए-गीदड़ । और नहीं तो कोई गली का कुत्ता ही फफेड़ लेगा । गरीब और कमजोर के तो सभी दुश्मन ।

किसी भी पैकेट पर लिखी बातों के सच होने की क्या गारंटी है ? आपको क्या पता कि च्यवनप्राश में आँवला कितना है और शकरकंद कितना ? कोकाकोला और पेप्सी में कौन से हानिकारक तत्त्व मिले हैं ? लेज़, अंकल चिप्स, मेगी, टॉप रेमन, मक्डॉनल्ड, के.एफ.सी., हल्दीराम आदि के उत्पादों में स्वीकृत से कितना अधिक नमक और ट्रांसफैट मिला हुआ है ? अधिकतम खुदरा मूल्य लिखा जाता है उसे उसकी फिक्स्ड प्राइस मानकर ग्राहक खरीद लेता है जब कि कई बार दुकानदार लिखित कीमत से आधे में भी दे देता है इसका मतलब कि आपको पता नहीं कबसे कितना चूना लगता आ रहा है । जिसे आप दूध मानकर पी रहे हैं क्या पता, वह यूरिया या कोई वाशिंग पाउडर का मिश्रण हो । घी में भी किसी गली के सूअर या कुत्ते की चर्बी हो जिसे किसी रसायन से घी की खुशबूवाला बना दिया गया हो । क्या पता आपका धनिया किसी गधे की लीद या जो चाय आप ताज़गी के लिए पी रहे हों वह किसी चमड़े के कारखाने की कतरनों का चूरा हो । इसीलिए पुराने लोग सभी चीजें खुद मूल रूप में खरीद कर लाते और अपने हाथ से खाना बनाते थे, भले ही तथाकथित प्रगतिशील और दलित प्रेमी उन पर छुआछूत का आरोप लगाएँ ।

हम आज इसी उपभोक्ता दिवस के उपलक्ष्य में एक उपभोक्ता संरक्षण का उलझा हुआ मामला आपके सामने रखना चाहते हैं और यदि आप चाहेंगे तो इसे अदालत या किसी मंत्री या फिर प्रणव दा के समक्ष उठाएँगे । मामला कोई नया नहीं है और न ही किसी से छुपा हुआ । आप सब भली प्रकार जानते हैं कि बहुत दिनों से एक गाना और कहीं बजे या नहीं लेकिन शादियों में ज़रूर बजता है । अपने भी सुना होगा लेकिन ध्यान नहीं दिया होगा क्योंकि इसका विज्ञापन ही इतना मादक और बहकाऊ है कि किसी को सोचने का मौका ही नहीं देता । गाना है- बन्नो तेरा झुमका लाख का रे, बन्नो तेरी नथनी है हजारी ..आदि-आदि ।

हम इसी गाने के सन्दर्भ में उपभोक्ताओं के अधिकारों के होने वाले हनन की ओर आपका और सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे । इस गाने में बन्नो और उसकी सजावट का बन्ने सहित मूल्य-निर्धारण चल रहा है । कहीं भी बन्नो की निर्मात्री कंपनी का नाम, स्थान, उत्पादन और अवसान तिथि का कोई उल्लेख नहीं किया गया है । यदि एक्सपायरी डेट निकल चुकी हो तो दवा लाभ के स्थान पर हानि भी कर सकती है ।

यह एक वस्तु का मूल्य निर्धारण है या सब एक साथ बिकाऊ हैं ? अलग-अलग खरीदने की बजाय एक साथ खरीदने पर क्या कोई छूट है ? क्या इन विज्ञापित वस्तुओं के साथ बन्नो भी है ? बन्नो या उसकी सामग्री या दोनों को इस प्रकार निजी क्षेत्र को बेचने का क्या कारण है ? क्या इसमें बालको ( भारत एल्यूमिनियम ) और सिंदरी खाद कारखाने की तरह कोई कमीशन का घपला तो नहीं है ? कहीं यह किसी डंकल का चक्कर तो नहीं है ?

चार चीजें कंगन, झाँझर, नथनी और टीका हजारी हैं पर इसमें भी स्पष्ट नहीं है कि यह सिर्फ हजारी है या फिर पाँच, दस, बीस या तीस हजारी है । और क्या पता यह तीस हजारी कहीं तीस हजारी कोर्ट तो नहीं है । वैसे आजकल सभी बिकाऊ है लेकिन तीसहजारी का इतना सस्ता बिकना शर्म की बात है ।

उक्त वस्तुओं के तौल, केरेट, धातु कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है । ऐसे में उपभोक्ताओं के ठगे जाने की पूरी संभावना है ।


पाँच चीजें- बन्नो का मुखड़ा ( यह भी साफ नहीं है कि मेकअप से पहले का है या मेकअप के बाद का ) झुमका, मुंदरी, जोड़ा और बन्ना लाख के बताए गए हैं । इसमें भी गहनों के केरेट, तौल, धातु का ज़िक्र नदारद हैं । जोड़े के डिजाइनर के नाम का कहीं उल्लेख नहीं है । क्या पता संडे बाजार से खरीद कर ऋतुबेरी के नाम से महँगी कीमत वसूली जा रही हो । बन्ने को लाख का बताया गया है मगर उसकी कोई केटेगरी जैसे एस.सी., एस.टी., जनरल. ओ.बी.सी., दलित, महादलित, एन.आर.आई., अल्प संख्यक आदि नहीं बताई गई है । और इतना सस्ता मूल्य भी शंका पैदा करता है क्योंकि इतने में तो चपरासी भी तैयार नहीं होता । बन्नो के बारे में भी ये जानकारियाँ नहीं दी गई हैं ।

यदि पूर्ण पारदर्शिता हो तो यह भी बताया जाना चाहिए कि यह लांचिंग पहली है या दूसरी-तीसरी ?

इन सब शंकास्पद बातों के अलावा इसमें कामन वेल्थ और टू जी स्पेक्ट्रम जैसी कुछ गणितीय गलतियाँ भी हैं । कंगन, नथनी, झुमका, टीका, झाँझर हजारी हैं और मुखड़ा, झुमका, मुंदरी, जोड़ा, बन्ना लाख के हैं । और जब बन्नी सहित सब को मिलाया गया तो टोटल आया लाख । पाँच हजार और पाँच लाख को जोड़ा जाए तो टोटल पाँच लाख और पाँच हजार होना चाहिए । यहाँ तो सीधा-सीधा चार लाख और पाँच हजार का गबन है ।

खैर, इतनी सारी अनियमितताओं के बावज़ूद पाँच लाख और पाँच हजार की जोड़ी किसी तरह एक लाख की तो बची रही । नहीं तो, इस प्रकार के बन्नी और बन्नों को सब जानते हैं- एक धेले के नहीं होते । बन्नी, बन्ना बनने के बाद वैसे भी कीमत बहुत जल्दी गिरती है तभी फिल्मी हीरोइनें शादी को टालती रहती हैं । जब भी कोई पत्रकार पूछता है तो कहती हैं कि अभी तो इसके बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला । हम तो कहते हैं कि यह नहीं पूछा कि 'यह शादी बाई द वे होती क्या है' ? जब तक देह का आकर्षण है तब तक शादी करनी भी नहीं चाहिए । यही तो कमाने का समय है । बाद में कोई विज्ञापन दाता मिलेगा भी तो मच्छर मारने की दवा का या चावल का और वह भी तब जब हेमा मालिनी अस्सी बरस की हो न जाएगी । इस मामले में करीना, दीपिका और कैटरीना कैफ बहुत समझदार हैं ।

और फिर कौन सा काम है जो शादी किए बिना नहीं हो सकता है । आजकल तो कहीं भी फिजिक्स और केमेस्ट्री मिलने-मिलाने की छूट हैं जैसे कि पहले शाहिद के साथ फोटो शूट और अब दुहाजू सैफ के साथ । और फिर आजकल सेफ रहने के साधनों की कौन कमी है ?

इन अवांतर प्रसंगों के बावज़ूद उपभोक्ता हित का हमारा प्रश्न वहीं का वहीं है और उपभोक्ता जागृति की माँग करता है ।

१५-मार्च २०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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