Apr 15, 2012

फादर ऑफ द नेशन का टाइटल

उत्तर प्रदेश में एक बालिका ऐश्वर्या ने फरवरी २०१२ को सूचना के अधिकार के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा कि उसे उस सरकारी आदेश की एक फोटो प्रति उपलब्ध करवाई जाए जिसके तहत महात्मा गाँधी को ‘फादर ऑफ द नेशन’ का टाइटल प्रदान किया गया था ।

प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा वह पत्र गृह मंत्रालय को भेजा गया जहाँ से उसे राष्ट्रीय पुरालेखागार को भेज दिया गया । वहाँ से ज़वाब दिया गया कि इस संबंध में कोई विशिष्ट आलेख उपलब्ध नहीं है ।

यह एक सरकारी कर्मचारी की एक निरपेक्ष सूचना है और अखबार में छपे समाचार में अपनी किसी भी बात को सनसनीखेज बनाकर छापने की प्रवृत्ति । सहज भाव से सही जानकारी देने का स्वभाव आजकल लोगों का नहीं रहा । यह भी हो सकता है कि पुराभिलेखागर के अधिकारी और अखबार वाले पत्रकार को इसकी जानकारी हो ही नहीं ।



यह कोई उपाधि या सरकारी अलंकरण नहीं था जो कि किसी एक दिन घोषित किया गया हो और फिर किसी दिन समारोह में लिखित रूप में प्रदान किया गया हो । इसलिए किसी रिकार्ड में इसकी लिखित जानकारी कहाँ होती ? यह तो एक संबोधन है जिसका प्रयोग १९४४ में नेताजी सुभाष ने रंगून से अपने भाषण में गाँधी जी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए किया था ।

रही बात प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय की तो उन्हें और बहुत से काम हैं जो उन्हें अपनी कुर्सी, खाल और अपने हितों को बचाने के लिए करने पड़ रहे हैं । घोटालों और आतंकवादियों की फाइलों को रखने के लिए जगह नहीं बची होगी । महात्मा गाँधी जैसे अलाभकारी और आउट-डेटेड विषय से क्या लेना-देना ?

खैर, और बहुत से टाइटल और विशेषण हैं जो बहुत से लोगों के लिए चल रहे हैं । हम चाहें तो उन्हीं पर विचार कर सकते हैं । अब बताइए कि हेमा मालिनी को ड्रीम गर्ल का टाइटल कब और किसने दिया था ? और वे अब भी साठ से ऊपर की हो जाने पर भी उस टाइटल को लिए घूम रही हैं और युवाओं में कन्फ्यूजन पैदा कर रही हैं । क्या धर्मेन्द्र के अलावा कोई 'ही-मैन' नहीं हैं ? क्या उनके अलावा सभी 'शी-मैन' हैं ? इस देश में राज और नवाबी खत्म हुए कोई साठ वर्ष हो चुके हैं मगर सैफ अली खान अभी तक ‘छोटे नवाब’ बने घूमते हैं । शाहरुख खान किस देश के राजा हैं जो उन्हें ‘किंग खान’ कहा जाता है ?

साहित्य शास्त्र में कई प्रकार के नायक बताए गए हैं । राम, कृष्ण भी अलग-अलग प्रकार के नायक ही हैं । महानायक कोई नहीं है । फिर यह 'महानायक' शब्द कहाँ से आ गया ? और वह भी पूरी सहस्राब्दी का ठेका लेते हुए । सचिन ने किस स्कूल में पढ़ाया था और किस कालेज से बी.एड. की थी जो उन्हें ‘मास्टर’ कहा जाता है । और कब, कहाँ बम ब्लास्ट किया था जो उन्हें 'मास्टर ब्लास्टर' कहा जाता है । सभी लोग उम्र पाकर बच्चे से बूढ़े होते हैं । कुँवारे से विवाहित बनते हैं और फिर बाप. ताऊ और दादा भी बनते हैं और अंत में मर भी जाते हैं मगर देवी लाल जी को ही 'ताऊ' क्यों कहा जाता है ?

चुनावों में तो सभी वोट की भीख माँगते हैं । विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने किस मंदिर के आगे बैठकर भीख माँगी थी जो उन्हें 'फकीर' कहा जाता है । हमारे हिसाब से 'नेताजी' के नाम से तो नेताजी सुभाष ही प्रसिद्ध हैं फिर ये मुलायम सिंह जी कब और कैसे ‘नेताजी’ बन गए ? करीना कपूर को मीडिया 'साइज़ जीरो' के नाम से प्रसिद्ध किए हुए हैं मगर हम आपको भूख से पीड़ित उससे भी आधी साइज की करोड़ों महिलाएँ देश में दिखा सकते हैं जिन्हें कोई ‘जीरो साइज़’ नहीं कहता ।

मायावती जी ने कांसीराम जी को मान्यवर कहना शुरु किया तो मीडिया में भी यह शब्द चल निकला लेकिन यदि कोई पूछे कि उन्हें यह टाइटल कब और कैसे मिला तो क्या उसका कोई रिकार्ड कहीं मिलेगा ? और फिर यह भी क्या कि उनके अलावा कोई और भी मान्यवर नहीं बन सकता है क्या ? उन्हें देश के कितने लोग मान्यवर मानते हैं ? गाँधी जी को राष्ट्रपिता कहते हैं मगर आज भी बहुत से लोग उन्हें मानने को तैयार नहीं हैं । कुछ तो उनकी हत्या को भी उचित बताते हैं । पुराने समय में भी कंस और औरंगजेब जैसे सुपुत्रों ने अपने पिताओं को जेल में डाल दिया था तो यह ज़माना तो उससे भी कहीं आगे बढ़ा हुआ है । इस ज़माने में कुछ भी हो सकता है । बच्चे बाप के पी.एफ. के पैसे हथियाने के लिए मार देते हैं । दारु के लिए पैसे नहीं देने पर माँ का सिर फोड़ देते हैं । भाई-भाई का झगडा तो कोई बड़ी बात ही नहीं है । मतलब हो तो गधे को बाप और बाप को गधा बना देते हैं ।

घोषित हुए और मीडिया में प्रसिद्ध हुए टाइटलों के अलावा भी कई टाइटल जनता में चलते हैं जो कि घोषित टाइटलों से अधिक प्रचलित होते हैं । लोग मुँह पर भले ही कुछ नहीं कहें मगर ये टाइटल चलते बहुत हैं । हमारे गाँव में के सेठ थे जो सामाजिक कार्यों के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं करते थे तो लोग उन्हें 'भंगी' कहते थे । एक ब्राह्मण थे जिनमें ब्राह्मण का एक भी गुण नहीं था । खाते-पीते और गाते-बजाते थे । उनके लिए लोग लूंड अर्थात लम्पट जैसा कोई शब्द प्रयोग करते थे । एक बार सेठजी ने उनसे पूछा- पंडित जी, लोग आपको लूंड क्यों कहते हैं ? पंडित जी ने उत्तर दिया- सेठ, लोगों का क्या ? लोग तो आपको भी भंगी कहते हैं ।

एक और किस्सा है- एक सज्जन थे जो पढ़े लिखे ज्यादा नहीं थे । बचपन में वे अपनी गली के कुत्तों को इकठ्ठा करके दूसरी गली के कुत्तों से लड़ाई करवाने का शौक रखते थे । तब उन्हें लोग कुत्ता शास्त्री कहा करते थे । समय के साथ उनकी उम्र बढ़ती गई । अब वे किसी के चाचा और किसी के ताऊ हो गए । धीरे-धीरे लोग उनका फुल फॉर्म कुत्ता शास्त्री तो भूल गए और वे केवल 'शास्त्री जी' रह गए । अब कौन पूछे कि शास्त्री की डिग्री कब और कहाँ से ली ?

एक और सज्जन थे । पढ़े लिखे वे भी नहीं थे । चतुर और प्रत्युत्पन्नमति थे । दिल के बुरे नहीं थे लेकिन जब-तब लोगों से मज़ा लेते रहते थे । लोग उनकी इस विनोदवृत्ति का बुरा भी नहीं मानते थे । एक बार गाँव के इतिहास के अध्यापक से उन्होंने पूछा- गुरुजी, लार्ड क्लाइव, डलहौजी आदि का तो पता हैं मगर यह लोर्ड फिब्बन कौन है और कब हुआ था ? इसके बारे में कुछ पता करके बताइएगा । अब जब इस नाम का कोई लार्ड हुआ ही नहीं तो गुरु जी को कहाँ से उसका खोज मिलता ? मगर जब भी वे मिलते तो ये सज्जन उनसे लोर्ड फिब्बन के बारे में पूछ ही लेते । अंत में गुरु जी ने रास्ता ही बदल लिया । और लोगों ने उन सज्जन को ही लोर्ड फिब्बन कहना शुरु कर दिया । अब कोई इतिहास या अभिलेखागार में ढूँढे तो कैसे पता चलेगा । यह तो कोई हम जैसे पुराने आदमी से पूछे तो पता चले ।

तो साहब, मीडिया और सरकारों के दिए टाइटलों को छोड़िये । ये सब तो चलते रहेंगे । जिसके जैसे कर्म होते हैं वे भी जनता से छुपे नहीं रहते । भले ही अपने चमचों से या मीडिया से वे कुछ भी कहलवा लें या विज्ञापनों में अपने को कुछ भी छपवा कर खुश हो लें मगर जो सच है, वही सच है । और अपना सच तो हर आदमी जानता है और भगवान भी सब कुछ जानता है और वह उसी के हिसाब से फैसला भी देगा ही ।

मनमोहन सिंह जी ने पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधान मंत्री गिलानी को शांति पुरुष कहा मगर कश्मीर के लोग इनकी शांति प्रियता को बखूबी भोग रहे हैं । गिलानी ने बदले में मनमोहन जी को 'विकास पुरुष' कहा लेकिन इनके द्वारा किए गए विकास का क्या मतलब है यह भारत के करोड़ों गरीब भली-भाँति अनुभव कर रहे हैं । भले ही मीडिया इन टाइटलों को कितना ही उछालें लेकिन बात वहीं की वहीं रहने वाली है । नरसिंह राव जी बेचारे एक तो बूढ़े, ऊपर से चालीस बीमारियाँ और दाँत भी नहीं । बड़े आदमी थे सो सोच कर बोलते थे मगर लोगों ने इन बातों पर विचार किए बगैर ही उन्हें 'मौनी बाबा' कहना शुरु कर दिया । और यह टाइटल उनसे चिपक गया ।

एक बार वसुंधरा राजे को एक स्थानीय नेत्री ने दुर्गा के रूप में दिखाते हुए चित्र छपवाए । एक और मंत्री ने अपने घर बकायदा मंदिर बनवा लिया । एक महंत जी ने उन्हें दुर्गा का अवतार बताते हुए एक सौ दोहे लिख मारे लेकिन वे अब तक दुर्गा नहीं बन पाईं, वसुंधरा की वसुंधरा ही बनी हुई हैं । और अब गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी वालों ने कृष्ण के रूप में चित्रित करना शुरु किया है । पता नहीं किस महाभारत की संभावना बन रही है ?

एक बार उमा भरती जी ने लाल कृष्ण अडवाणी, अटल जी और वैंकय्या नायडू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहा लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी । अब ये सब ठंडे बस्ते में लगे हुए हैं । हो सकता है इसी कारण न तो जनता का पालन-पोषण हो रहा है, न बिगड़ चुकी सृष्टि का विनाश और न ही नई सृष्टि का सृजन । एक बार एक नेता ने इंदिरा जी को इण्डिया का पर्याय बताया था लेकिन आज भी दोनों अलग हैं । इण्डिया इण्डिया ही है और इंदिरा जी इंदिरा जी । इण्डिया अंग्रेजों का दिया हुआ नाम है जब कि इस देश का असली और पुराना नाम है भारत लेकिन भारत को दुनिया में देश का दर्ज़ा नहीं मिला सो नहीं ही मिला ।

सो हो सके तो टाइटलों के चक्कर में पड़ने की बजाय कर्मों पर ध्यान दीजिए । जनता को मूर्ख मत समझिए । वह देर-सबेर सही मूल्यांकन करेगी ।

और जहाँ तक 'देश का पिता' की बात है तो बिना इस टाइटल के किसी लिखित रिकार्ड के भी उस बूढ़े ने इस देश के लिए बहुत कुछ किया । वैसे आजकल तो जिन्हें जेलों में होना चाहिए या जिन्हें जिंदा जला दिया जाना चाहिए वे देश के बाप बने हुए हैं ।

७-४-२०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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