Apr 15, 2012

माई नेम इज खान की तलाशी

प्रिय शाहरुख,
हमें कई महत्त्वपूर्ण पत्र लिखने थे लेकिन जब आज समाचार पढ़ा कि अमरीका में फिर तुम्हारी तलाशी ली गई तो पहले तुम्हें ही लिखना पड़ रहा है । तुमने तत्काल ट्वीट किया और दुनिया में नहीं तो, भारत में ज़रूर हडकंप मच गया । तुम्हारा अपमान भारत का अपमान हो गया । देवकांत बरुआ तो 'इंदिरा इज इण्डिया' का नारा देकर बदनाम हो गए पर लगता है कि तुम वास्तव में ही इण्डिया के पर्याय हो गए । वास्तविकता का तो पता नहीं लेकिन मीडिया ने तो ऐसा ही दरशाया । कुछ भी हो, नाम तो हुआ । वैसे जिस लड़की की तरफ़ कोई नहीं देखता वही अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए भरी बस में किसी से भी उलझ जाती है और चिल्लाने लगती है- 'मरे, तेरे घर में माँ बहन नहीं हैं क्या ? मारूँगी जूता खेंच कर तो होश ठिकाने आ जाएँगे' । तुम्हारा तो खैर, वैसे ही सारी दुनिया में नाम है अन्यथा किसी और नायक या महानायक को क्यों नहीं बुलाया येल विश्वविद्यालय में भाषण देने के लिए?

इस विश्वविद्यालय में प्रायः नोबल पुरस्कार प्राप्त लोगों को ही बुलाया जाता है भाषण देने के लिए । मगर तुम उनसे कौन से कम हो ? वे तुमसे जानना चाहते हैं कि एक आदमी शादी-विवाहों और जन्मदिन की पार्टियों में नाच-नाच कर इतना पैसा कैसे कमा सकता है ? और यह भी पता लगा है कि उन्होंने तुम्हारे द्वारा किए गए परोपकार के कामों को भी ध्यान में रखा है । हमें तो खैर, तुम्हारे दान-पुण्य के कामों का पता नहीं है । हमारे ध्यान में तो सरोज खान के पति को तुम्हारे थप्पड़ मारने की घटना ज्यादा पढ़ने में आई । हम तो कहते हैं कि यदि तुमने थोड़ा सा भी दान किया है तो उसका महत्त्व अधिक है क्योंकि तुम्हारे पैसे बड़ी मेहनत के हैं । नाच-नाच कर कमर तोड़कर कमाए हैं । कोई जुए सट्टे या लाटरी की कमाई नहीं है ।

हम भी तीन बार अमरीका गए हैं लेकिन हमें न तो कभी किसी ने रोका और न ही कोई खास तलाशी ली । एक बार हमने कहा भी कि शाहरुख की तरह हमारा भी एक्सरे लोगे क्या तो वे बोले तुम्हारी तो हड्डियाँ तक बिना एक्सरे के ही साफ दिखाई दे रही हैं । हाँ, पिछली बार जब हम डेट्रोइट से आ रहे थे तो सेक्योरिटी वालों ने हमारे सूटकेस को ज़रूर खोल लिया था । वैसे हमें इसका पता भी नहीं चलता लेकिन जब हमने यहाँ आकर अपना सूटकेस खोला तो उसमें एक पर्ची मिली जिस पर छपा हुआ था कि 'सिक्योरिटी सेव्स टाइम' ।

हम जब इसके कारणों का विश्लेषण करते हैं तो हमें लगता है कि उन्होंने हमारी अटेची इसलिए खोल ली होगी क्योंकि वही सारे सामानों में सबसे पुरानी और सस्ती रही होगी । कुछ लोग जब कीमती सामान ले जाते हैं तो वे उसे किसी पुराने थैले में रखते हैं जिससे किसी को शक नहीं हो । हमारी अटेची में उन्हें क्या मिला होगा कुछ किताबें और कुछ कुर्ते पायजामे । हमारे पास न तो ट्वीट करने की सुविधा और न हमें ट्वीट करना आता और यदि करते तो पढ़ता भी कौन ? हम फिर अमरीका जा रहे हैं और वही अटेची लेकर जाएँगे । हमें विश्वास है अब की बार उसे कोई भी खोल कर नहीं देखेगा क्योंकि वे हमें और हमारी अटेची को पहचान गए हैं ।

तुम्हें रोकने का एक कारण और भी हो सकता है कि वे तुम्हारे भक्त रहे हों जो इस बहाने अच्छी तरह से तुम्हारे दर्शन करना चाहते हों । तुम्हें पता है कि राजस्थान में काले हिरण के शिकार के केस में शामिल हीरो और हीरोइनों को वहाँ की अदालत वाले अक्सर बुलाते रहते हैं । यह सभी जानते हैं कि किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन उन्हें तो बहाना चाहिए महान आत्माओं के दर्शन का ।

कुछ महिने पहले उमर अब्दुल्ला पर किसी ने जूता फेंका तो उनके पिताजी फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि बुश पर भी जूता फेंका गया था सो अब उनका बेटा भी बुश की श्रेणी में आ गया है । सो बार-बार तलाशी होने से शायद तुम भी अब्दुल कलाम, अडवाणी, जार्ज फर्नांडीज आदि की श्रेणी में आ गए हो । वैसे हमारा व्यक्तिगत रूप से यह मानना है कि केवल एक बात समान होने से सब कुछ समान नहीं हो जाता । महात्मा गाँधी को गोडसे ने गोली मारी और जलियाँवाला बाग के जनरल डायर को ऊधम सिंह ने, लेकिन क्या मात्र इसीसे उधम सिंह और गोडसे तथा महात्मा गाँधी और डायर समान हो गए ?


इस बारे में एक बात और बताना चाहते हैं कि कभी-कभी किसी व्यक्ति की शक्ल और हरकतों से भी लोगों को गलतफहमी हो जाती है । हम तब नए-नए मास्टर बने थे । हम पढ़ा रहे थे तो एक बच्चा लगातार हमारी तरफ देख कर मुस्कराए जा रहा था । हमें बड़ा अजीब लगा । हमने बिना कुछ पूछे उसके कान खींच दिए और शाम को उसके बाप से भी शिकायत की । उसके बाप ने बताया कि उसके दाँत कुछ बड़े हैं और बाहर निकले हुए हैं इसलिए हर समय मुस्कराता हुआ लगता है । वैसे तो तुम कोई बुरे आदमी नहीं हो फिर भी व्यक्ति को हर समय फुदक-फुदक नहीं करना चाहिए । हो सकता है तुम उस समय कुछ ज्यादा ही कंधे उचका रहे होगे । एक स्थान पर टिक कर खड़े नहीं रहे होगे, ज्यादा ही हिल-डुल रहे होगे और हो सकता है उस समय सामान्य से कुछ अधिक ही हकला भी रहे होगे । यह सब असामान्य है और इससे उन्हें कुछ शक हो गया होगा ।

तुमने एक फिल्म बनाई थी 'मई नेम इज खान' और उसमें बार-बार कह रहे थे कि ‘माई नेम इज खान एंड आई ऍम नॉट टेरेरिस्ट’ । और अंत में दिखाया गया है कि उन लोगों ने मान लिया कि तुम टेरेरिस्ट नहीं हो । हमारे साथ एक और ही तरह का वाकया हुआ । हमारी बात किसी ने नहीं मानी । दो साल पहले अमरीका ने अच्छे तालिबानों को पैकेज देने की घोषणा की । हम पैकेज के लालच में अपने मित्र तोताराम से साथ काबुल चले गए । वहाँ जाकर बताया- हम अच्छे तालिबान हैं । हमें पैकेज दीजिए । उन्होंने हमारी शकल देखकर कहा- 'तुमसे बम रखकर या हत्याकांड करके आतंक क्या फैलाया जाएगा, तुम तो खुद ही आतंकित दिखाई दे रहे हो । लगता है हिंदी के मास्टर हो । भागो यहाँ से । यहाँ कोई खैरात बँट रही है क्या ? तुम अच्छे बने क्या ? तुम तो सदा से ऐसे ही घोंचू थे । पहले खतरनाक बनो और फिर अच्छे बनना । तुम्हें पता होना चाहिए कि बदी में से नेकी निकलती है । नेक बनने के लिए पहले बद बनो । जब कोई खूब डाका डाल लेता है और उसके बाद समर्पण करता है तो पैकेज भी मिलता है और लोकसभा का टिकट भी' ।

खैर, कुछ भी हो, नाम भी हो गया और काम भी । अब आगे की देखो कि कब और कहाँ नाचना है ।

१३-४-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । 
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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