संसद में १८६ दागी मतलब कि एक तिहाई जेल जाने के योग्य हैं । वैसे किसी सांसद को पकड़ना, उस पर मुक़दमा चलाना और उस पर आरोप तय करना कोई साधारण काम नहीं है । इतना भी तब होता है जब या तो कोई कानून का रखवाला सर पर कफ़न बाँध लेता है या फिर किसी न्यायमूर्ति की आत्मा जिंदा हो जाती है । हालाँकि उस आत्मा को भी तरह-तरह से सुलाने और न माने तो शरीर से भगाने की कार्यवाही करने की तक धमकी दी जाती है । तिस पर भी किसी पर आरोप तय हो जाए तो मतलब कि दाल में काला क्या, सारी दाल ही काली है ।
हम लोकतंत्र की इस साठ-साला उपलब्धि पर कुढ़ रहे थे कि तोताराम आ गया । हम बिना किसी सन्दर्भ के ही उस पर बरस पड़े - तोताराम, इन सब को तो तत्काल जेल में डाल देना चाहिए ।
तोताराम ने उत्तर दिया- बिलकुल, दो-चार आदमियों ने दिल्ली में मज़मा लगाकर 'माननीयों' का जीना हराम कर रखा है । एक तो वैसे ही गठबंधन के मारे हाथ-पाँव फूले हुए हैं । चाहे जिस मंत्री को एक फोन पर हटाना पड़ रहा है । कभी कोई चुपचाप रिटायरमेंट लेने की बजाय, कभी जन्मतिथि तो कभी किसी ज्ञात-अज्ञात रिश्वत की पेशकश करने वाले की बात उड़ा कर, नींद हराम किए हुए है । और ये खोजी लोग दाढ़ी तो दाढ़ी, क्लीन शेव वालों में तिनके ढूँढ़ रहे हैं । बिलकुल, इन्हें तो संसद में लाकर लालू, मुलायम और शरद 'यादव त्रय' के सुपुर्द कर दिया जाना चाहिए । फिर ये चाहें तो इन्हें जेल भिजवाएँ या पागलखाने में डालें या वहीं डंडे या जूते मारें या एटा-इटावा के देसी कट्टे से तत्काल ढेर कर दें ।
हमने कहा- बंधु, हम अन्ना टीम और अन्य अन्नावादियों की बात नहीं कर रहे हैं । हम तो उन 'माननीयों' की बात कर रहे हैं जिन पर बीसियों केस लगे हुए हैं, जिनके नाम से ही भले लोगों की तो बात ही क्या, चम्बल के अच्छे-अच्छे शेर भी घबरा जाते हैं ।
तोताराम ने थोड़ा विलोम साँस छोड़ते हुए कहा- तो तुझे भी गंगा की सफाई जैसा कोई काल्पनिक जुकाम हो गया दीखे । क्या गंगा के उद्धार के लिए अनशन करने वाले का नाम जानता हैं ? नहीं ना ? और या तो वह मर जाएगा या फिर ज़बरदस्ती उसका अनशन तुड़वा दिया जाएगा । और सब कुछ पुनः वैसे ही चलने लग जाएगा । इस मुक्त बाजार में दो जून की रोटी जुटाने में ही आदमी को इतना व्यस्त कर दिया गाया है कि उसे देश क्या, खुद के जीने-मरने तक की खबर नहीं है । क्या गंगा और क्या संसद - किस किस की खबर रखेगा बेचारा ।
और फिर भई, इस देश में कानून का शासन है । आरोप का क्या है कोई भी, कभी भी, किसी पर भी लगा या लगवा सकता है ? अब भई, राम की तरह एक धोबी के कहने मात्र से सत्ता-सीता को त्याग दिया तो चल लिया लोकतंत्र । और मान ले, कोर्ट ने आरोप तय भी कर दिए तो क्या, आरोप सिद्ध तो नहीं हुए । बिना आरोप सिद्ध हुए किसी माननीय को दागी कहना कहाँ तक उचित है ? जब देश की सर्वोच्च संस्था उन्हें अब भी 'माननीय' कह कर संबोधित कर रही है तो तुझे क्या अधिकार है उन्हें चोर, हत्यारे, बलात्कारी कहने का । अरे, यह तो उनकी भलमनसाहट है कि अभी तक दिल्ली में धरने पर बैठकर आरोप लगवाने वालों और तेरे जैसे समर्थकों की अभी तक 'टें' नहीं बुलावा दी । वरना जो किसी डीजल का अवैध धंधा रोकने वाले या अवैध खनन में बाधा डालने वाले अधिकारी को सरे आम मरवा सकते हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका, तो तेरे जैसे के लिए तो सौ रुपए की सुपारी भी बहुत । कोई भी छुटभैया रास्ते चलते स्कूटर भिड़ा कर तेरा काम तमाम कर जाएगा और पता भी नहीं चलेगा । 'माननीयों' को अपने लाइसेंसी हथियार या जनता द्वारा लोकतंत्र की रक्षा के लिए दिए गए धनुष-बाण, तलवार और गदाएँ निकालने की तो नौबत ही नहीं आएगी ।
और मान ले इन सबको संसद से निकाल भी दिया गया तो फिर कौन से राजा हरिश्चंद्र ले आएगा तू चुन कर । उन्हीं में से तो चुनना है । साँपसिंह, नागनाथ या फिर बिच्छू भैया । कोई भला आदमी न तो जीवन भर में चुनाव लड़ने लायक पैसे जुटा सकता और न ही इस अधर्म-युद्ध में उतरने का साहस कर सकता है । और मान ले यदि दिनमान उल्टा हुआ और खड़ा भी हो गया तो जीतेगा नहीं, या कोई 'भाई' एक धमकी में ही उसे बैठा देगा ।
ये एक तिहाई तो घोषित 'माननीय' हैं और जो अभी आरोपित होने से बच गए हैं, जो भूतपूर्व 'माननीय' हैं और जो सत्ता-मद में शीघ्र ही अपनी लीला दिखाने वाले हैं उनका तो हिसाब ही नहीं लगाया है तूने । अरे, जैसा भी है दुनिया को दिखाने को लोकतंत्र तो है । जैसे भी हैं चुनाव तो होते हैं । भले ही चुनाव में चालीस प्रतिशत मतदान ही होता हो और उसमें भी आधा नकली और आधा दारू के नशे में और उसमें भी जीतने वाले को बीस प्रतिशत वोट ही मिलें हों पर वह उस इलाके का चुना हुआ प्रतिनिधि ही माना जाएगा ना ? पति कैसा भी हो, पति ही होता है । उसके नाम से स्त्री माँग तो भरती है । अवैध संतान को भी नाम तो मिल जाता है । लफंगों से कुछ तो बचाव होता है । भले ही पिता ने पैसा लेकर बूढ़े के पल्ले बाँध दिया हो । तभी शास्त्रों में कहा गया है-
वृद्ध रोगबस जड़ धनहीना । अंध बधिर क्रोधी अति दीना । ।
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना । नारि पाँव जमपुर दुःख नाना । ।
और फिर जनता के ये खसम तो माशा’अल्लाह हट्टे-कट्टे, घोषित आमदनी से हजार गुना अधिक धनवान हैं । ये तो जमपुर के दुःख भोगने का इंतज़ार करने तक का समय भी नहीं देंगे । इसी जन्म को नर्क बना देंगे । इसलिए इन सर्वशक्तिमान, तेजस्वी संतों का अपमान करने का साहस करके क्यों अपनी दुर्गति को निमंत्रण दे रहा है । शांति से रहेगा तो क्या पता, अस्सी बरस की उम्र भी पा जाएगा और तब पता हैं, पेंशन एक झटके में ही सवाई हो जाएगी ।
हमने कहा- तोताराम, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ये जो सांसदों पर लगे आरोपों से अपने को मुक्त मानते हैं वे सभी दूध के धुले जन-सेवक अलग हो जाएँ और ईमानदारों की एक नई पार्टी बना लें । लोकतंत्र की गंगा की पूर्ण सफाई हो जाए ।
तोताराम बोला- लोकतंत्र की गंगा की तो बात नहीं जानता पर इन ईमानदारों की ज़रूर सफाई हो जाएगी । अब तो एक तिहाई ही गिनती में हैं, शेष एक तिहाई ढके छुपे हैं । यदि स्पष्ट विभाजन हुआ तो संसद में इन्हीं दागियों का तीन चौथाई बहुमत नज़र आएगा और तब ये संविधान ही बदल देंगे । अब तो जीतने के नाम पर ही अपराधियों को टिकट दिया जाता है फिर तो यह होगा कि अपराधों की गिनती और गंभीरता के आधार पर टिकट मिलेगा ।
हमने तोताराम के इस सकारात्मक चिंतन में बाधा डालते हुए कहा- और वह अरबों-खरबों का काला धन जो इन लोगों ने घपले करके कमाया है ?
तोताराम ने कहा- ज़रा ठंडे दिमाग से सोच । यदि इन्होंने धन कमाया है तो क्या उन नोटों को खाएँगे ? कभी भी खर्च करेंगे तो इसी जनता में आएगा ना ? यदि खर्च नहीं करेंगे तो एक प्रकार से देश की बचत ही तो हो रही है । और फिर इनमें अधिकतर का धन इसी देश में है । ये नए-नए सेवक हैं और शुद्ध देशी । अभी इनके इतने संपर्क सूत्र विदेशों में नहीं है कि किसी विदेशी बैंक में जमा कराएँ । और यदि चुनाव में खर्च करेंगे तो भी फिर इसी जनता में आएगा ना ? जुलूस, रैली, झंडे बैनर उद्योग का विकास होगा । यदि देसी दारू में लगेगा तो कुटीर उद्योगों का विकास होगा ।
हमने चिढ़ कर कहा- तो फिर पोर्न गेट कांड के बारे में भी अपने एक्सपर्ट कमेन्ट दे ही दे । तो बोला- उसमें तो कोई बात ही नहीं है । आजकल विज्ञापनों और टी.वी. में जो दिखाया जा रहा है वह किसी भी पोर्न फिल्म से कम नहीं है और फिर ‘डर्टी पिक्चर’ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा सकता है तो फिर देखने में ही क्या हो गया ? और तुझे क्या पता कि वह कोई पोर्न फिल्म ही देख रहे थे, किसी राज्यपाल या स्वामी की सी.डी. भी तो हो सकती है । किसी पूनम पांडे का वीडियो भी तो हो सकता है । वैसे आजकल राजनीति में ऐसे 'माननीयों' के पास कोई खास काम भी तो नहीं है । जहाँ तक विकास का सवाल है तो दिन में तो दूना ही होता है, चौगुना तो रात में होता है ।
हमने कहा- तोताराम, मान लेते हैं कि हम और ये अन्नावादी जो कह रहे हैं वह गलत है । सब बेकार में सांसदों पर आरोप लगा रहे हैं जब कि इनमें कोई दोषी नहीं हैं तो फिर ये अन्ना का लोकपाल विधेयक मान क्यों नहीं लेते ? बिल से सदाचारियों को डरने की क्या ज़रूरत है ?
तोताराम झुँझलाया- लोकपाल, लोकपाल । क्या है लोकपाल ? इससे पहले जाने कितने ही 'पाल' भरे पड़े हैं यहाँ । आठ दिक्पाल अर्थात दिग्गज पृथ्वी को थामे हुए हैं पर क्या भूकंप या भूचाल आने से रुक गए ? 'महिपालों' अर्थात पृथ्वी का पालन करने वालों के रहते पृथ्वी का कैसा पालन हो रहा है, देख ही रहे हो ? द्वारपालों के होते हुए क्या घुसपैठिए देश में, दलाल सेना में और पी.एम. ऑफिस में ‘मोल’ नहीं घुस गए ? डाकपाल, लेखपाल, लेखापाल जाने कितने 'पाल' हैं । राज्यपालों के रहते हुए लोकतंत्र की कितनी रक्षा हो गई ?
अरे, और कोई काम नहीं है क्या ? अभी तो बेअंत के हत्यारे को, कसाब को, अफज़ल को धार्मिक सद्भाव (?) और जन भावना के नाम पर क्षमा करना है जैसे कि पहले शाहबानो के केस में कानून का सत्यानाश किया था और संतुलन बनाने के लिए राम मंदिर का ताला खुलवाकर एक नई खाज लगा दी थी । और फिर अब तो महिलाओं के कल्याण के लिए 'लिव इन रिलेशनशिप' जैसे पवित्र कार्य को कानूनी बनाना है । बेचारे समलैंगिक जाने कितने वर्षों से अपने इस सहज, स्वाभाविक और अध्यात्मिक प्रेम को मान्यता मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं । भले ही धारा ३७० न हटे मगर इनके लिए धारा ३७७ को तो हटाना है ना । देश को विकसित बनाने के लिए अमरीका की तरह इन समलैंगिकों को विवाह का अधिकार देने का बिल भी पास कारवा है । हिंदुओं में तलाक को उसी तरह से सरल बनाना है जैसे कि इस्लाम में फोन पर तीन बार तलाक कहने से तलाक हो जाता है । और तू लोकपाल, लोकपाल की ही रट लगाए जा रहा है ।
और सुन ले अभी ये जो सुधारक समर्थकों की भीड़ देखकर जोश में आ रहे हैं बाद में ओम पुरी की तरह बयान बदलते फिरेंगे । खैर, गुस्सा थूक और एक किस्सा सुन-
एक गरीब आदमी थोड़ी सी देसी पिए हुए या फिर शायद भूख के कारण लड़खड़ाता हुआ सड़क पर जा रहा था । तभी एक नेताजी के सुपुत्र की गाड़ी तेज गति से उधर से निकली । उस व्यक्ति को कोई खास चोट तो नहीं लगी लेकिन उसके झपाटे से वह गिर ज़रूर गया और भयभीत होकर चिल्लाने लगा । लोग पूछते मगर वह चिल्लाए ही जा रहा था । तभी एक पुलिस वाला नेता जी के बेटे को सलामी देकर वहाँ पहुँचा तो वह भी उस दुर्घटना से बचे आदमी का तमाशा देखने लगा । आदमी था कि चिल्लाए जा रहा था । अंत में पुलिस वाले ने उसे एक ठोकर मारी और डाँटा- साले, क्या पें-पें लगा रखी है । बताता क्यों नहीं, कहाँ लगी है ?
आदमी ने ध्यान से रक्षक जी की तरफ देखा और कहा- पता नहीं, साहब । आप जहाँ कह दें, वहीं लगी है ।
३०-३-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
हम लोकतंत्र की इस साठ-साला उपलब्धि पर कुढ़ रहे थे कि तोताराम आ गया । हम बिना किसी सन्दर्भ के ही उस पर बरस पड़े - तोताराम, इन सब को तो तत्काल जेल में डाल देना चाहिए ।
तोताराम ने उत्तर दिया- बिलकुल, दो-चार आदमियों ने दिल्ली में मज़मा लगाकर 'माननीयों' का जीना हराम कर रखा है । एक तो वैसे ही गठबंधन के मारे हाथ-पाँव फूले हुए हैं । चाहे जिस मंत्री को एक फोन पर हटाना पड़ रहा है । कभी कोई चुपचाप रिटायरमेंट लेने की बजाय, कभी जन्मतिथि तो कभी किसी ज्ञात-अज्ञात रिश्वत की पेशकश करने वाले की बात उड़ा कर, नींद हराम किए हुए है । और ये खोजी लोग दाढ़ी तो दाढ़ी, क्लीन शेव वालों में तिनके ढूँढ़ रहे हैं । बिलकुल, इन्हें तो संसद में लाकर लालू, मुलायम और शरद 'यादव त्रय' के सुपुर्द कर दिया जाना चाहिए । फिर ये चाहें तो इन्हें जेल भिजवाएँ या पागलखाने में डालें या वहीं डंडे या जूते मारें या एटा-इटावा के देसी कट्टे से तत्काल ढेर कर दें ।
हमने कहा- बंधु, हम अन्ना टीम और अन्य अन्नावादियों की बात नहीं कर रहे हैं । हम तो उन 'माननीयों' की बात कर रहे हैं जिन पर बीसियों केस लगे हुए हैं, जिनके नाम से ही भले लोगों की तो बात ही क्या, चम्बल के अच्छे-अच्छे शेर भी घबरा जाते हैं ।
तोताराम ने थोड़ा विलोम साँस छोड़ते हुए कहा- तो तुझे भी गंगा की सफाई जैसा कोई काल्पनिक जुकाम हो गया दीखे । क्या गंगा के उद्धार के लिए अनशन करने वाले का नाम जानता हैं ? नहीं ना ? और या तो वह मर जाएगा या फिर ज़बरदस्ती उसका अनशन तुड़वा दिया जाएगा । और सब कुछ पुनः वैसे ही चलने लग जाएगा । इस मुक्त बाजार में दो जून की रोटी जुटाने में ही आदमी को इतना व्यस्त कर दिया गाया है कि उसे देश क्या, खुद के जीने-मरने तक की खबर नहीं है । क्या गंगा और क्या संसद - किस किस की खबर रखेगा बेचारा ।
और फिर भई, इस देश में कानून का शासन है । आरोप का क्या है कोई भी, कभी भी, किसी पर भी लगा या लगवा सकता है ? अब भई, राम की तरह एक धोबी के कहने मात्र से सत्ता-सीता को त्याग दिया तो चल लिया लोकतंत्र । और मान ले, कोर्ट ने आरोप तय भी कर दिए तो क्या, आरोप सिद्ध तो नहीं हुए । बिना आरोप सिद्ध हुए किसी माननीय को दागी कहना कहाँ तक उचित है ? जब देश की सर्वोच्च संस्था उन्हें अब भी 'माननीय' कह कर संबोधित कर रही है तो तुझे क्या अधिकार है उन्हें चोर, हत्यारे, बलात्कारी कहने का । अरे, यह तो उनकी भलमनसाहट है कि अभी तक दिल्ली में धरने पर बैठकर आरोप लगवाने वालों और तेरे जैसे समर्थकों की अभी तक 'टें' नहीं बुलावा दी । वरना जो किसी डीजल का अवैध धंधा रोकने वाले या अवैध खनन में बाधा डालने वाले अधिकारी को सरे आम मरवा सकते हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका, तो तेरे जैसे के लिए तो सौ रुपए की सुपारी भी बहुत । कोई भी छुटभैया रास्ते चलते स्कूटर भिड़ा कर तेरा काम तमाम कर जाएगा और पता भी नहीं चलेगा । 'माननीयों' को अपने लाइसेंसी हथियार या जनता द्वारा लोकतंत्र की रक्षा के लिए दिए गए धनुष-बाण, तलवार और गदाएँ निकालने की तो नौबत ही नहीं आएगी ।
और मान ले इन सबको संसद से निकाल भी दिया गया तो फिर कौन से राजा हरिश्चंद्र ले आएगा तू चुन कर । उन्हीं में से तो चुनना है । साँपसिंह, नागनाथ या फिर बिच्छू भैया । कोई भला आदमी न तो जीवन भर में चुनाव लड़ने लायक पैसे जुटा सकता और न ही इस अधर्म-युद्ध में उतरने का साहस कर सकता है । और मान ले यदि दिनमान उल्टा हुआ और खड़ा भी हो गया तो जीतेगा नहीं, या कोई 'भाई' एक धमकी में ही उसे बैठा देगा ।
ये एक तिहाई तो घोषित 'माननीय' हैं और जो अभी आरोपित होने से बच गए हैं, जो भूतपूर्व 'माननीय' हैं और जो सत्ता-मद में शीघ्र ही अपनी लीला दिखाने वाले हैं उनका तो हिसाब ही नहीं लगाया है तूने । अरे, जैसा भी है दुनिया को दिखाने को लोकतंत्र तो है । जैसे भी हैं चुनाव तो होते हैं । भले ही चुनाव में चालीस प्रतिशत मतदान ही होता हो और उसमें भी आधा नकली और आधा दारू के नशे में और उसमें भी जीतने वाले को बीस प्रतिशत वोट ही मिलें हों पर वह उस इलाके का चुना हुआ प्रतिनिधि ही माना जाएगा ना ? पति कैसा भी हो, पति ही होता है । उसके नाम से स्त्री माँग तो भरती है । अवैध संतान को भी नाम तो मिल जाता है । लफंगों से कुछ तो बचाव होता है । भले ही पिता ने पैसा लेकर बूढ़े के पल्ले बाँध दिया हो । तभी शास्त्रों में कहा गया है-
वृद्ध रोगबस जड़ धनहीना । अंध बधिर क्रोधी अति दीना । ।
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना । नारि पाँव जमपुर दुःख नाना । ।
और फिर जनता के ये खसम तो माशा’अल्लाह हट्टे-कट्टे, घोषित आमदनी से हजार गुना अधिक धनवान हैं । ये तो जमपुर के दुःख भोगने का इंतज़ार करने तक का समय भी नहीं देंगे । इसी जन्म को नर्क बना देंगे । इसलिए इन सर्वशक्तिमान, तेजस्वी संतों का अपमान करने का साहस करके क्यों अपनी दुर्गति को निमंत्रण दे रहा है । शांति से रहेगा तो क्या पता, अस्सी बरस की उम्र भी पा जाएगा और तब पता हैं, पेंशन एक झटके में ही सवाई हो जाएगी ।
हमने कहा- तोताराम, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ये जो सांसदों पर लगे आरोपों से अपने को मुक्त मानते हैं वे सभी दूध के धुले जन-सेवक अलग हो जाएँ और ईमानदारों की एक नई पार्टी बना लें । लोकतंत्र की गंगा की पूर्ण सफाई हो जाए ।
तोताराम बोला- लोकतंत्र की गंगा की तो बात नहीं जानता पर इन ईमानदारों की ज़रूर सफाई हो जाएगी । अब तो एक तिहाई ही गिनती में हैं, शेष एक तिहाई ढके छुपे हैं । यदि स्पष्ट विभाजन हुआ तो संसद में इन्हीं दागियों का तीन चौथाई बहुमत नज़र आएगा और तब ये संविधान ही बदल देंगे । अब तो जीतने के नाम पर ही अपराधियों को टिकट दिया जाता है फिर तो यह होगा कि अपराधों की गिनती और गंभीरता के आधार पर टिकट मिलेगा ।
हमने तोताराम के इस सकारात्मक चिंतन में बाधा डालते हुए कहा- और वह अरबों-खरबों का काला धन जो इन लोगों ने घपले करके कमाया है ?
तोताराम ने कहा- ज़रा ठंडे दिमाग से सोच । यदि इन्होंने धन कमाया है तो क्या उन नोटों को खाएँगे ? कभी भी खर्च करेंगे तो इसी जनता में आएगा ना ? यदि खर्च नहीं करेंगे तो एक प्रकार से देश की बचत ही तो हो रही है । और फिर इनमें अधिकतर का धन इसी देश में है । ये नए-नए सेवक हैं और शुद्ध देशी । अभी इनके इतने संपर्क सूत्र विदेशों में नहीं है कि किसी विदेशी बैंक में जमा कराएँ । और यदि चुनाव में खर्च करेंगे तो भी फिर इसी जनता में आएगा ना ? जुलूस, रैली, झंडे बैनर उद्योग का विकास होगा । यदि देसी दारू में लगेगा तो कुटीर उद्योगों का विकास होगा ।
हमने चिढ़ कर कहा- तो फिर पोर्न गेट कांड के बारे में भी अपने एक्सपर्ट कमेन्ट दे ही दे । तो बोला- उसमें तो कोई बात ही नहीं है । आजकल विज्ञापनों और टी.वी. में जो दिखाया जा रहा है वह किसी भी पोर्न फिल्म से कम नहीं है और फिर ‘डर्टी पिक्चर’ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा सकता है तो फिर देखने में ही क्या हो गया ? और तुझे क्या पता कि वह कोई पोर्न फिल्म ही देख रहे थे, किसी राज्यपाल या स्वामी की सी.डी. भी तो हो सकती है । किसी पूनम पांडे का वीडियो भी तो हो सकता है । वैसे आजकल राजनीति में ऐसे 'माननीयों' के पास कोई खास काम भी तो नहीं है । जहाँ तक विकास का सवाल है तो दिन में तो दूना ही होता है, चौगुना तो रात में होता है ।
हमने कहा- तोताराम, मान लेते हैं कि हम और ये अन्नावादी जो कह रहे हैं वह गलत है । सब बेकार में सांसदों पर आरोप लगा रहे हैं जब कि इनमें कोई दोषी नहीं हैं तो फिर ये अन्ना का लोकपाल विधेयक मान क्यों नहीं लेते ? बिल से सदाचारियों को डरने की क्या ज़रूरत है ?
तोताराम झुँझलाया- लोकपाल, लोकपाल । क्या है लोकपाल ? इससे पहले जाने कितने ही 'पाल' भरे पड़े हैं यहाँ । आठ दिक्पाल अर्थात दिग्गज पृथ्वी को थामे हुए हैं पर क्या भूकंप या भूचाल आने से रुक गए ? 'महिपालों' अर्थात पृथ्वी का पालन करने वालों के रहते पृथ्वी का कैसा पालन हो रहा है, देख ही रहे हो ? द्वारपालों के होते हुए क्या घुसपैठिए देश में, दलाल सेना में और पी.एम. ऑफिस में ‘मोल’ नहीं घुस गए ? डाकपाल, लेखपाल, लेखापाल जाने कितने 'पाल' हैं । राज्यपालों के रहते हुए लोकतंत्र की कितनी रक्षा हो गई ?
अरे, और कोई काम नहीं है क्या ? अभी तो बेअंत के हत्यारे को, कसाब को, अफज़ल को धार्मिक सद्भाव (?) और जन भावना के नाम पर क्षमा करना है जैसे कि पहले शाहबानो के केस में कानून का सत्यानाश किया था और संतुलन बनाने के लिए राम मंदिर का ताला खुलवाकर एक नई खाज लगा दी थी । और फिर अब तो महिलाओं के कल्याण के लिए 'लिव इन रिलेशनशिप' जैसे पवित्र कार्य को कानूनी बनाना है । बेचारे समलैंगिक जाने कितने वर्षों से अपने इस सहज, स्वाभाविक और अध्यात्मिक प्रेम को मान्यता मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं । भले ही धारा ३७० न हटे मगर इनके लिए धारा ३७७ को तो हटाना है ना । देश को विकसित बनाने के लिए अमरीका की तरह इन समलैंगिकों को विवाह का अधिकार देने का बिल भी पास कारवा है । हिंदुओं में तलाक को उसी तरह से सरल बनाना है जैसे कि इस्लाम में फोन पर तीन बार तलाक कहने से तलाक हो जाता है । और तू लोकपाल, लोकपाल की ही रट लगाए जा रहा है ।
और सुन ले अभी ये जो सुधारक समर्थकों की भीड़ देखकर जोश में आ रहे हैं बाद में ओम पुरी की तरह बयान बदलते फिरेंगे । खैर, गुस्सा थूक और एक किस्सा सुन-
एक गरीब आदमी थोड़ी सी देसी पिए हुए या फिर शायद भूख के कारण लड़खड़ाता हुआ सड़क पर जा रहा था । तभी एक नेताजी के सुपुत्र की गाड़ी तेज गति से उधर से निकली । उस व्यक्ति को कोई खास चोट तो नहीं लगी लेकिन उसके झपाटे से वह गिर ज़रूर गया और भयभीत होकर चिल्लाने लगा । लोग पूछते मगर वह चिल्लाए ही जा रहा था । तभी एक पुलिस वाला नेता जी के बेटे को सलामी देकर वहाँ पहुँचा तो वह भी उस दुर्घटना से बचे आदमी का तमाशा देखने लगा । आदमी था कि चिल्लाए जा रहा था । अंत में पुलिस वाले ने उसे एक ठोकर मारी और डाँटा- साले, क्या पें-पें लगा रखी है । बताता क्यों नहीं, कहाँ लगी है ?
आदमी ने ध्यान से रक्षक जी की तरफ देखा और कहा- पता नहीं, साहब । आप जहाँ कह दें, वहीं लगी है ।
३०-३-२०१२
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