दो दिन से तोताराम नहीं आ रहा था सो हम ही उसके घर चले गए | देखा तो तोताराम टखने पर क्रेप बेंडेज बाँध कर लेटा है | न आने का कारण तो पता चल गया मगर इस बेंडेज का कारण पूछा तो बोला- ३१ मार्च को ८.३० पर लाइट बंद कर दी थी | जैसे ही गेट का ताला बंद करने गया तो पैर मुड़ गया और आगे का हाल देख ही रहे हो |
हमने कहा- ठीक है, बचत करनी चाहिए मगर ऐसी भी क्या बचत ? एक-दो मिनट में कितनी बिजली जल जाती ?
कहने लगा- वैसे तो तू बहुत बड़ी-बड़ी बातें करता है लेकिन इतना भी पता नहीं उस दिन 'अर्थ डे' था और अर्थ डे पर पृथ्वी बचाओ वाले एन.जी.ओ. ने ८.३० से ९.३० तक सारे संसार में एक घंटे बिजली बंद रखने की घोषणा की थी | बात पैसे की नहीं है बल्कि इस नष्ट होने के कगार पर खड़ी पृथ्वी को बचाने की है | तू तो अपनी सुख-सुविधा में तनिक-सी भी कमी करना नहीं चाहता | तुझे क्या, पृथ्वी रहे या बचे |
हमने कहा- तोताराम, हम भी पृथ्वी क्या, समस्त ब्रह्माण्ड से उतना ही बल्कि अधिक प्यार करते हैं जितना कि तुम्हारे ये 'अर्थ डे' वाले | हाँ, यह बात और है कि हमारे पास कोई मिडिया नहीं है सो हमारे प्रयत्नों का किसी को पता नहीं चलता | और जिन लोगों को तू पृथ्वी को बचाने की जिम्मेदारी उठाए देख रहा है वे ही इस पृथ्वी के विनाश का कारण हैं | अमरीका विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दबाव डाल रहा है लेकिन खुद सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है | १५० ट्रिलियन कैलोरी जितना भोजन अमरीका में जूठन के रूप में व्यर्थ कर दिया जाता है | क्या उसमें ऊर्जा नहीं लगती ? अमरीका में घरों के आगे-पीछे लगे लॉन्स का क्षेत्रफल कोई डेढ़ लाख किलोमीटर है जिसमें घास उगाने और सँवारने में सोचो कितनी बिजली और पेट्रोल जलता होगा | और नाटक अर्थ आवर का |
तोताराम कहने लगा- देख, बूँद-बूँद से घड़ा भरता है और बूँद-बूँद रिसने से रीत जाता है | राम जब पुल बना रहे थे तो एक गिलहरी भी अपनी पूँछ समुद्र में डुबोती और फिर बाहर आकार उसे छींट देती और फिर पूछ गीली करती | यही क्रिया वह बहुत देर से दुहरा रही थी | भगवान राम ने बड़े प्यार से उसे पूछा कि वह क्या कर रही है ? तो कहने लगी कि मैं इस समुद्र को ऐसे ही सुखा दूँगी | राम मुस्कराए और उसे प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा | तो हम भी उस गिलहरी की तरह अपव्यय के इस समुद्र को सुखाने का प्रयत्न कर रहे हैं |
खुद सारे संसाधनों का दुरुपयोग करने वाले चतुर लोग, पृथ्वी को बचाने की हमारी यह बचकानी कोशिश करके धन्य होने की मूर्खता पर अंदर ही अंदर हँस रहे होंगे | वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं ? और फिर भी ईश्वर उन्हें माफ कर रहा है | खुद ही दुनिया के जंगलों को काट कर हमें वनमहोत्सव में उलझा रहे हैं | हम कहाँ कोई हरा क्या, सूखा पेड़ भी काट रहे हैं | नेता खुद अपने कमीशन के लिए अपने देशों के संसाधन बेचे जा रहे हैं और जनता को मितव्ययिता का उपदेश दे रहे हैं |
और जहाँ तक बिजली की बात है, हम तो बिजली क्या, किसी भी साधन का बहुत सँभल-सँभल कर उपयोग करते हैं | हमें तो जो कुछ भी उपभोग करते हैं उसका पूरा पैसा देना पड़ता है | नेताओं से पूछ कि उनके बँगलों और फार्म हाउसों में कितनी फालतू बिजली जलती है ? क्यों, क्योंकि या तो उन्हें बिजली मुफ्त मिलती है या फिर चोरी करते हैं | क्यों बिजली द्वारा ज़मीन से खींचा हुआ बेशकीमती पानी स्विमिंग पूलों में भर कर तैरते रहते हैं जब कि देश डूब रहा है और खेत, पशु-पक्षी प्यासे हैं | मुकेश अम्बानी से पूछ कि क्या वह बिजली बनाता है जो एक महिने में अपने नए बँगले में ७० लाख रुपए महिने की बिजली फूँक देता है ?
तोताराम बोला- वह कोई बिजली चोरी थोड़े ही करता है वह तो पूरे पैसे देता है |
हमने कहा- तो कागज के टुकड़ों से बिजली बनती है क्या ? बिजली बनाने में इस धरती के बहुमूल्य संसाधनों का उपयोग होता है और वे संसाधन किसी एक बपौती नहीं हैं उन पर इस दुनिया के सभी लोगों का अधिकार है | मान ले कोई व्यक्ति कहे कि उसके पास बहुत पैसा है | वह सारी दुनिया का गेहूँ खरीद कर समुद्र में फेंक देगा तो क्या यह उचित है ? किसान गेंहूँ खाने के लिए उगाता है न कि समुद्र में फेंकने के लिए | रोटी खाने के लिए है न कि खेलने के लिए | अरे, यदि यह दुनिया बची हुई है तो हम ग़रीबों के कारण जिनके पास इस दुनिया को निचोड़ने के साधन नहीं है | यदि इस दुनिया में सारे ही धनी होते तो पता नहीं, ये कब का इस दुनिया को चूस कर खत्म कर देते | धर्म और सत्कार्य किसी एक दिन का नाटक नहीं होते वे तो हमारी जीवन शैली होने चाहिएँ तभी उसका लाभ दिखेगा | अच्छी बातें या तो शतप्रतिशत होती हैं या फिर बिलकुल नहीं |
ये ऐसे ही नाटक हैं जैसे कि जब किसी यूरोपीय या अमरीकी सुन्दरी की कपड़े उतारने की इच्छा होती है तो कह देती है कि वह पशु क्रूरता के विरुद्ध नग्न होकर प्रदर्शन कर रही है | अरे, मांस खाना छोड़ दो अपने आप बूचड़ खाने बंद हो जाएँगे | चिल्लाएँगे- विदेशी ब्रांड के ठंडे पेयों में केंसर कारक पदार्थ मिले हुए हैं | तो किसने कहा है कि पियो | छोड़ दो | गाँधी वाला उपाय ही चलेगा |
चतुर लोग हमें 'अर्थ आवर' में उलझा कर अनर्थपूर्वक अपनी अर्थ सिद्धि करने में लगे हैं | आँख खोल कर रहो | साधारण आदमी के लिए तो चाहे एक घंटे का अर्थ आवर हो या वर्तमान हो या भविष्य हो, अंधकार पूर्ण ही है | सावधानी से टटोल-टटोल कर चलो नहीं तो पैर ही क्या सिर और कमर भी तुड़वा बैठोगे |
खैर, चल उठ | बैंक चल कर पता कर लें कि नया डी.ए. पेंशन में जुड़ गया कि नहीं ?
२-४-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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कहने लगा- वैसे तो तू बहुत बड़ी-बड़ी बातें करता है लेकिन इतना भी पता नहीं उस दिन 'अर्थ डे' था और अर्थ डे पर पृथ्वी बचाओ वाले एन.जी.ओ. ने ८.३० से ९.३० तक सारे संसार में एक घंटे बिजली बंद रखने की घोषणा की थी | बात पैसे की नहीं है बल्कि इस नष्ट होने के कगार पर खड़ी पृथ्वी को बचाने की है | तू तो अपनी सुख-सुविधा में तनिक-सी भी कमी करना नहीं चाहता | तुझे क्या, पृथ्वी रहे या बचे |
हमने कहा- तोताराम, हम भी पृथ्वी क्या, समस्त ब्रह्माण्ड से उतना ही बल्कि अधिक प्यार करते हैं जितना कि तुम्हारे ये 'अर्थ डे' वाले | हाँ, यह बात और है कि हमारे पास कोई मिडिया नहीं है सो हमारे प्रयत्नों का किसी को पता नहीं चलता | और जिन लोगों को तू पृथ्वी को बचाने की जिम्मेदारी उठाए देख रहा है वे ही इस पृथ्वी के विनाश का कारण हैं | अमरीका विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दबाव डाल रहा है लेकिन खुद सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है | १५० ट्रिलियन कैलोरी जितना भोजन अमरीका में जूठन के रूप में व्यर्थ कर दिया जाता है | क्या उसमें ऊर्जा नहीं लगती ? अमरीका में घरों के आगे-पीछे लगे लॉन्स का क्षेत्रफल कोई डेढ़ लाख किलोमीटर है जिसमें घास उगाने और सँवारने में सोचो कितनी बिजली और पेट्रोल जलता होगा | और नाटक अर्थ आवर का |
तोताराम कहने लगा- देख, बूँद-बूँद से घड़ा भरता है और बूँद-बूँद रिसने से रीत जाता है | राम जब पुल बना रहे थे तो एक गिलहरी भी अपनी पूँछ समुद्र में डुबोती और फिर बाहर आकार उसे छींट देती और फिर पूछ गीली करती | यही क्रिया वह बहुत देर से दुहरा रही थी | भगवान राम ने बड़े प्यार से उसे पूछा कि वह क्या कर रही है ? तो कहने लगी कि मैं इस समुद्र को ऐसे ही सुखा दूँगी | राम मुस्कराए और उसे प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा | तो हम भी उस गिलहरी की तरह अपव्यय के इस समुद्र को सुखाने का प्रयत्न कर रहे हैं |
खुद सारे संसाधनों का दुरुपयोग करने वाले चतुर लोग, पृथ्वी को बचाने की हमारी यह बचकानी कोशिश करके धन्य होने की मूर्खता पर अंदर ही अंदर हँस रहे होंगे | वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं ? और फिर भी ईश्वर उन्हें माफ कर रहा है | खुद ही दुनिया के जंगलों को काट कर हमें वनमहोत्सव में उलझा रहे हैं | हम कहाँ कोई हरा क्या, सूखा पेड़ भी काट रहे हैं | नेता खुद अपने कमीशन के लिए अपने देशों के संसाधन बेचे जा रहे हैं और जनता को मितव्ययिता का उपदेश दे रहे हैं |
और जहाँ तक बिजली की बात है, हम तो बिजली क्या, किसी भी साधन का बहुत सँभल-सँभल कर उपयोग करते हैं | हमें तो जो कुछ भी उपभोग करते हैं उसका पूरा पैसा देना पड़ता है | नेताओं से पूछ कि उनके बँगलों और फार्म हाउसों में कितनी फालतू बिजली जलती है ? क्यों, क्योंकि या तो उन्हें बिजली मुफ्त मिलती है या फिर चोरी करते हैं | क्यों बिजली द्वारा ज़मीन से खींचा हुआ बेशकीमती पानी स्विमिंग पूलों में भर कर तैरते रहते हैं जब कि देश डूब रहा है और खेत, पशु-पक्षी प्यासे हैं | मुकेश अम्बानी से पूछ कि क्या वह बिजली बनाता है जो एक महिने में अपने नए बँगले में ७० लाख रुपए महिने की बिजली फूँक देता है ?
तोताराम बोला- वह कोई बिजली चोरी थोड़े ही करता है वह तो पूरे पैसे देता है |
हमने कहा- तो कागज के टुकड़ों से बिजली बनती है क्या ? बिजली बनाने में इस धरती के बहुमूल्य संसाधनों का उपयोग होता है और वे संसाधन किसी एक बपौती नहीं हैं उन पर इस दुनिया के सभी लोगों का अधिकार है | मान ले कोई व्यक्ति कहे कि उसके पास बहुत पैसा है | वह सारी दुनिया का गेहूँ खरीद कर समुद्र में फेंक देगा तो क्या यह उचित है ? किसान गेंहूँ खाने के लिए उगाता है न कि समुद्र में फेंकने के लिए | रोटी खाने के लिए है न कि खेलने के लिए | अरे, यदि यह दुनिया बची हुई है तो हम ग़रीबों के कारण जिनके पास इस दुनिया को निचोड़ने के साधन नहीं है | यदि इस दुनिया में सारे ही धनी होते तो पता नहीं, ये कब का इस दुनिया को चूस कर खत्म कर देते | धर्म और सत्कार्य किसी एक दिन का नाटक नहीं होते वे तो हमारी जीवन शैली होने चाहिएँ तभी उसका लाभ दिखेगा | अच्छी बातें या तो शतप्रतिशत होती हैं या फिर बिलकुल नहीं |
ये ऐसे ही नाटक हैं जैसे कि जब किसी यूरोपीय या अमरीकी सुन्दरी की कपड़े उतारने की इच्छा होती है तो कह देती है कि वह पशु क्रूरता के विरुद्ध नग्न होकर प्रदर्शन कर रही है | अरे, मांस खाना छोड़ दो अपने आप बूचड़ खाने बंद हो जाएँगे | चिल्लाएँगे- विदेशी ब्रांड के ठंडे पेयों में केंसर कारक पदार्थ मिले हुए हैं | तो किसने कहा है कि पियो | छोड़ दो | गाँधी वाला उपाय ही चलेगा |
चतुर लोग हमें 'अर्थ आवर' में उलझा कर अनर्थपूर्वक अपनी अर्थ सिद्धि करने में लगे हैं | आँख खोल कर रहो | साधारण आदमी के लिए तो चाहे एक घंटे का अर्थ आवर हो या वर्तमान हो या भविष्य हो, अंधकार पूर्ण ही है | सावधानी से टटोल-टटोल कर चलो नहीं तो पैर ही क्या सिर और कमर भी तुड़वा बैठोगे |
खैर, चल उठ | बैंक चल कर पता कर लें कि नया डी.ए. पेंशन में जुड़ गया कि नहीं ?
२-४-२०१२
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