Nov 10, 2015

 कुम्भकर्ण का पुनर्जन्म

एक था कुम्भकर्ण- लंका के राजा रावण का भाई | उसने ब्रह्मा से वरदान माँगा कि मैं छः महिने जागूँ और एक दिन सोऊँ | ब्रह्मा उसकी फितरत जानते थे इसलिए उन्होंने उसकी मति फेर दी सो उसने माँग लिया- छः महिने सोऊँ और एक दिन जागूँ | ब्रह्मा ने तथास्तु कह दिया |

ब्रह्मा के वरदान से सृष्टि की रक्षा हो गई | यदि वह छः महिने जागता और एक दिन सोता तो इस सृष्टि की सारी खाद्य और अखाद्य सामग्री खा जाता | वह छः महिने सोता था सो कुछ पैदा करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता | इसके बावज़ूद सृष्टि पर संकट नहीं आया क्योंकि वह केवल एक दिन जागता था | भगवान राम ने उसका वध किया | पर जैसा कि सृष्टि का नियम है, जिसकी मोक्ष नहीं होती उसका पुनर्जन्म होता है | तब फिर प्रभु का अवतार होता है | अब की बार इस कुम्भकर्ण का पुनर्जन्म अमरीका में हुआ है | अबकी बार यह सावधान था इसलिए उसने वार माँग लिया कि मैं कभी न सोऊँ |

कभी न सोने वाला और केवल भोग ही करने वाला यह कुम्भकर्ण अपने को मनीषी भी कहता है | इसने एक नई संस्कृति, एक नया चिंतन दिया है जिसका नाम है- उपभोक्ता संस्कृति | इस संस्कृति के अनुसार मानव का जन्म अधिक से अधिक उपभोग करने के लिए हुआ है | जितना अधिक उपभोग किया जाएगा उतना ही अधिक उत्पादन करना पड़ेगा, उतना ही अधिक व्यापार होगा, उतना ही अधिक विकास होगा और उतने ही अधिक संबंध होंगे | हालाँकि भूख-प्यास सीमित होती है पर सीमित भूख-प्यास से उपभोग सीमित हो जाएगा | इसलिए मानव की भूख-प्यास बढ़ाने के लिए तरह-तरह के नुस्खे विकसित किए गए हैं | इन नुस्खों में सबसे महत्वपूर्ण है विज्ञापन | इसके द्वारा मानव की भूख-प्यास को बढ़ाया जाता है और इसमें सहायता करते हैं विभिन्न प्रकार के गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ | ये अपने हाव-भाव, देह और आचरण से यह विश्वास दिलाते हैं कि भोग ही जीवन का सार है और विवेकहीन लोग उनका अनुसरण करते हैं |

कुम्भकर्ण दुनिया की एक चौथाई ऊर्जा का उपभोग करता है और उतना ही अधिक प्रदूषण फैलाता है | यह चाहता है कि इसके संसाधन भविष्य के लिए सुरक्षित रहें और फ़िलहाल यह विश्व के अन्य संसाधनों पर अधिकार करके उनका उपभोग करना चाहता है | इसके लिए यह चाहता है कि सारा विश्व उदार हो जाए अर्थात अपने दरवाजे खुले छोड़कर सोए और इसे अपने यहाँ के संसाधनों का दोहन करने दें | जो संयम की बात करते हैं वे इसे अपने दुश्मन लगते हैं | मितव्ययिता की बात करने वालों को यह येन-केन-प्रकारेण हटाना चाहता है | उन्हें पिछड़ा हुआ तथा विकास और लोकतंत्र का विरोधी करार देता है | अब यही न्यायाधीश है तो अपराधियों को सजा होनी ही है |

दीपावली श्रम का उजाला है तो अति भोग कामचोरी का अँधेरा है | भगवान राम की विजय इसी उजाले की विजय का पर्व है, इसी का लोक-उल्लास है | केवल महलों में जन्म लेने वाले राम नहीं बनते- राम बनते हैं महलों के सुख-भोग को त्याग कर वनवास में जाने वाले |
बहुत कठिन है धरम राम का
बन-बन पड़े भटकना, भगतो |
भोग का कुम्भ्कर्ण संयम, त्याग और वैराग्य के अवतार द्वारा ही मारा जाता है अन्यथा यह सारी यज्ञ-संस्कृति का विनाश कर देगा |

यज्ञ श्रम से अर्जित कर, निष्काम भाव से लोक के लिए विसर्जित करने का नाम है | इन्हीं यज्ञों का ये कुम्भकर्ण विध्वंस करते हैं | यज्ञ ही जीवमात्र में संवेदना का सन्देश बनते हैं | केवल पशुवत स्वयं के लिए भोग, और भोग की अनंत तृष्णा वाले अकेले हो जाते हैं | इसका कुम्भकर्ण के लोक में आई प्राकृतिक विपदा के समय लोगों के आचरण से पता चला | जिसके पास साधन थे वे भाग लिए, अपने किसी भी साथी या पड़ोसी की चिंता नहीं की |

भोग की संस्कृति में भोग ही पुरुषार्थ है | भोग ही आदि और भोग ही अंत है | जब कि यज्ञ की संस्कृति में भोग का निषेध नहीं है किन्तु उसकी एक व्यवस्था है | धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का एक क्रम है | धर्म (उचित) को जानो, धर्माचरण करते हुए धनार्जन करो जिससे तुम्हें भोग का अधिकार मिलेगा और तभी तुम्हारा मोक्ष होगा | धर्महीन भोग से मोक्ष नहीं मिलता | और कुम्भकर्ण को बार-बार जन्म लेना पड़ता है | तभी ईशावास्य उपनिषद में कहा गया है- 'त्यक्तेन भुञ्जीथा' अर्थात त्यागपूर्वक भोग करो | प्यास के बिना जल, भूख के बिना भोजन, वियोग के बिना संयोग का कोई आनंद नहीं है | इस निरानंद भोग की परिणति बीमारियों और कुंठा में होती है और कुंठाओं का यही लोक कुम्भकर्ण का लोक है | विष्णु का लोक है- वैकुंठ | वैकुंठ के स्वामी विष्णु लक्ष्मी के अधिपति हैं | कल्पवृक्ष पर उनका अधिकार है क्योंकि उन्हें सृष्टि का पालन करना है | जिन्हें केवल स्वयं के लिए भोग चाहिए वे असुर हैं | वे अमृत चुराना चाहते हैं जिससे वे अमर हो सकें | इसी अमृत की रक्षा के लिए विष्णु को बार-बार अवतार लेने पड़ते हैं | अमृत यज्ञ करने वालों के हाथों में ही सुरक्षित है |

यह अमृत है हमारा संयम, हमारी तपस्या | तपस्या से ही ब्रह्मा सृष्टि का सृजन करते है , तपस्या से ही विष्णु उसका पालन करते हैं | आइये, दीपावली को श्रम की आराधना, आनंद का उत्सव और विसर्जन का यज्ञ बनाएँ | इसी से कुम्भकर्ण का मोक्ष होगा |

-रमेश जोशी
सीकर
(मो)९४६०१-५५७०० under publication. Jhootha Sach

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