Mar 27, 2016

खेर की खैरियत

 खेर की खैरियत

अनुपम जी
आपके नाम में ही अनुपम है तो आपका अनुपम होना निःसंदेह है |और फिर 'खेर' हैं तो 'खैरियत' भी होगी ही |हमने तो वैसे ही औपचारिकतावश पूछ लिया | वैसे भी आप एक श्रेष्ठ अभिनेता हैं और फिर सांसद्पति भी |डबल पावर |हमारे यहाँ तो पंचपति का भी क्या जलवा होता है | रोज़ जनता-दर्शन और खुला दरबार लगाते हैं |

आप ट्विटर पर भी हैं और फोलोअर्स भी बहुत से होंगे |मीडिया भी आपके ट्विटर तक के समाचार बना देता है |होने को तो हम भी ट्विटर पर हैं लेकिन आज तक एक भी फोलोअर नहीं मिला |अखबारों से पता चला कि आजकल आप परेशान हैं |पाकिस्तान ने आपको वीजा नहीं दिया |उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि आप पाकिस्तानी हाईकमिश्नर के माध्यम से आवेदन करें |आपने पता नहीं किस तरह आवेदन किया |यदि ज्यादा ही मन है तो एक बार सही तरीके से आवेदन करके देख लें |वैसे महान व्यक्तियों को इन बंधनों में बाँधा नहीं जाना चाहिए |लेकिन क्या किया जाए, महाराष्ट्र वालों ने भी तो गुलाम अली को नहीं आने दिया था |मोदी जी को भी पहले अमरीका ने वीजा नहीं दिया था और अब जब चाहे दावत के लिए बुलावा आ जाता है |पुरस्कार लौटने वालों के पीछे पड़ने की बजाय कुछ बड़ा करके दिखाइए |नवाज़ शरीफ खुद आपको लिवाने आएँगे |

वीजा न मिलने का कारण आपने मोदी का प्रशंसक होना बताया लेकिन यह नहीं बताया कि २००४ में पद्मश्री किसका  प्रशंसक होने या न होने से मिली ? हमने तो नेहरू जी से लेकर अटल जी तक बहुतों के कार्यकाल में नौकरी की लेकिन कभी किसी ने इस आधार पर कुछ नहीं किया कि हम किसके प्रशंसक या  निंदक हैं | वैसे यदि कोई निस्वार्थ निंदक भी हो तो कबीर जी ने उसे अपने आँगन में ही कुटी बनवाकर रखने का परामर्श दिया है |लेकिन स्वार्थ की निंदा और प्रशंसा में, कभी ख़ुशी कभी गम की तरह लाभ हानि तो चलते ही रहते हैं |यदि मोदी जी के प्रशंसक हैं तो निष्काम  भाव से लगे रहिए | कबहुँक दीन दयाल के  भनक पड़ेगी कान |हो सकता है अबकी बार पद्म भूषण भी मिल जाय |कुछ ऐसे भी होते हैं जो मौका देखकर परिवर्तन करते रहते हैं लेकिन हर बार पाँसा उलटा पड़ जाता है जैसे तारकेश्वरी सिन्हा |और किसी के लिए हर बार पौ बारह पच्चीस जैसे पासवान जी |

आपने एक और कष्ट बताया कि 'हिन्दू हूँ' यह कहने से डरता हूँ कि कहीं तिलक, भगवा से बीजेपी वाला न समझ लिया जाऊँ |हम तो खुद को हिन्दू कहने से नहीं डरते |और अपने मन और आस्था के अनुसार तिलक और भगवा धारण करने वाले करते ही हैं | उन्हें कभी कोई फ़िक्र नहीं होती |सर संघ संचालक सुदर्शन जी को हमने कई बार सुना और देखा है |वे विकुंठ भाव से काली टोपी, हाफ पेंट और कमीज़ पहनते थे | मोहन भगवत जी भी क्या ठसके से यही गणवेश धारण करते हैं लेकिन किसी को भी असहज नहीं देखा फिर आप क्यों डरते हैं ? जो मन हो पहनिए |यदि मन में कुछ दुराव या कामना रखकर वेश धारण करेंगे तो फिर कुंठा की संभावना समाप्त नहीं होगी |जब कोई सुंदरी किसी प्रेमी पर डोरे डालने के लिए सजती है और वह घास नहीं डालता तो वह कपड़े फाड़ने लगती है लेकिन जो अपने मन से सजती है उसके लिए ऐसी  कोई समस्य नहीं  आती |हम तो वेश नहीं, मन और कर्म में विश्वास करते हैं |उनकी एकता बनाए रखें |तुलसीदास जी भी कहते हैं-
दुचित कबहुँ संतोस न लहहीं |

और क्या लिखें ? कोई पुरस्कार-वुरस्कार का मामला फिट होता हो तो हमारा ध्यान रखें |हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम पुरस्कार कभी नहीं लौटाएंगे |यदि किसी ने छीनने की कोशिश तो हम प्राण दे देंगे लेकिन पुरस्कार को नहीं छोड़ेंगे |


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