मित्रो आज एक पुरानी पोस्ट निकालकर फिर से आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ, सामायिक है इसलिए |क्या पता इसके बिना आपकी निगाह जाए या नहीं |
वैसे श्री-श्री जी एक और रिकार्ड बनाने के लिए यमुना के तट पर डटे हुए हैं |पहले से गन्दी यमुना को और गन्दा करने के लिए |इसके बारे में उनके कार्यक्रम के बाद आपकी सेवा में कुछ प्रस्तुत करूंगा |
-रमेश जोशी
२० अक्टूबर २०१० प्रातः आठ बजे ।
आज भी सदैव की भाँति तोताराम आया मगर बैठने से पहले ही उसने प्रश्न किया- मास्टर बता, व्यंजन कितने होते हैं ? हमें हँसी आ गई- अरे, बछिया के ताऊ, चालीस बरस हिंदी पढ़ाता रहा, अब रिटायर हुए आठ बरस से अधिक हो गए और आज पूछ रहा है कि व्यंजन कितने होते हैं ? क्या स्वर-व्यंजन जाने बिना ही इतने बरस बच्चों को हिंदी पढ़ाता रहा ? वैसे अब तुझे स्वर-व्यंजन जानने की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? क्या हिंदी की कोई ट्यूशन मिल गई है ? ट्यूशन तो अंग्रेजी और साइंस-मैथ्स में मिलते हैं । हिंदी का क्या है वह तो अपनी मातृभाषा है और मातृभाषा का सत्यानाश करने का सभी को अधिकार है । फिर भी तेरी आत्मा की शांति के लिए बता देते हैं कि व्यंजन तेंतीस होते हैं और यदि संयुक्ताक्षरों को भी शामिल करना चाहे तो तीन और जोड़ ले । वैसे यदि मन में श्रद्धा हो तो कबीर की तरह अढ़ाई अक्षरों में ही काम चल सकता है- आधा प, रे और म ।
तोताराम ने हाथ जोड़ कर कहा- भ्राता श्री, यदि आप अपनी वाणी को विराम दें तो मैं कुछ और निवेदन करूँ ? मेरा मंतव्य आपके इन हिंदी वाले व्यंजनों से नहीं था । मैं तो खाने वाले व्यंजनों के बारे में आपकी कुछ जनरल नॉलेज बढ़ाना चाहता था पर आप मौका ही नहीं दे रहे हैं ।
हमने कहा- खाना, खाने में क्या है ? खाना तो आदमी जीने के लिए खाता है सो जो भगवान समय पर दे दे वही उसकी कृपा है । वैसे कबीर जी ने तो सब्जी की भी ज़रूरत नहीं समझी । वे तो कहते हैं कि -
आधी और रूखी भली, सारी तो संताप ।
जो चाहेगा चूपड़ी बहुत करेगा पाप ॥
और यदि भगवान रोटी के साथ दाल भी दे दे तो ज्यादा मत इतराओ और मन को भक्ति में लगाओ । ‘दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ’ । और अपने यहाँ तो सबसे बड़ा सवाल केवल दो रोटी का माना जाता है । सो हमारे हिसाब से तो दो ही व्यंजन होते हैं दाल और रोटी । यदि तू 'पानी' को भी जोड़ना चाहे तो तीन समझ ले ।
तोताराम हमारे चरण छूकर चलने को हुआ- अब तुझसे बात करने का कोई फायदा नहीं । अच्छा जय राम जी की । हमने ज़बरदस्ती उसका हाथ पकड़ कर बैठाया, कहा- मुँह में आई बात कह ही देनी चाहिए । कहने लगा- मैं तो कहना ही चाहता हूँ पर तू मौका दे तब ना । बात यह थी कि अब तक का अधिक से अधिक व्यंजनों का रिकार्ड ४६०० व्यंजनों का है पर यह पता नहीं किसके नाम है ? अब अपने 'डबल श्री' मतलब कि श्री श्री रवि शंकर जी के अहमदाबाद स्थित नित्यप्रज्ञ नामक चेले का कार्यक्रम है कि २ नवंबर को अहमदाबाद में 'अन्नं ब्रह्म' नामक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें ५००० व्यंजनों का विश्व रिकार्ड बनाया जाएगा । और फिर इस कार्यक्रम का गिनीज बुक में नाम आ जाएगा ।
हमने कहा- इस कार्यक्रम का उद्देश्य गिनीज बुक में में शामिल होना है या गरीब बच्चों को भोजन कराना है ? यदि किसी भूखे को भोजन कराना ही उद्देश्य है तो फिर न तो गिनीज बुक में नाम की ज़रूरत है और न ही किसी अखबार में समाचार की । भोजन कराओ और भगवान को धन्यवाद दो दो कि उसने तुम्हें यह पुण्य कमाने का अवसर दिया और छुट्टी ।
तोताराम को खीज हुई, कहने लगा- तेरी दुनिया बहुत छोटी है । तुझे क्या पता नाम क्या होता है और नाम का मजा क्या होता है ? जब किसी का नाम गिनीज बुक में आ जाता है तो उसका खुद का ही नहीं देश का नाम रोशन हो जाता है । इसीलिए तो कोई मूँछ बढ़ा रहा है, कोई नाखून । कोई सबसे छोटी पेंटिंग बना रहा है तो कोई चावल के एक दाने पर गीता लिख रहा है ।
हमने कहा- न तो उस गीता को कोई आसानी से पढ़ सकता और न ही उस पेंटिंग को कोई अच्छी तरह से देख सकता । जब दो रुपए में अच्छी-भली गीता और पेंटिंग बाजार में मिल जाती हैं तो इस सारे तमाशे का फायदा क्या ? अरे, हजार किलो का एक लड्डू बना कर क्या होगा ? आखिर में उसे खाना तो तोड़ कर ही पड़ेगा ना ? ये सब भरे पेट वालों की कुंठाएँ है । जो कोई ढंग का काम नहीं कर सकता वह ऐसे ही उलटे काम करके चर्चित होना चाहता है । देखा नही, योरप और अमरीका में 'पेटा' ( People for Ethical Treatment of Animal ) के नाम पर लोग कपड़े उतार कर फोटो खिंचवा कर चर्चित हो रहे हैं और अखबार वाले उन्हें अपनी साईट पर डाल कर अपनी टी.आर.पी. बढ़ा रहे हैं । जिन्हें कपड़े उतारने हैं वे किसी भी नाम से उतार देते हैं । राखी सावंत की बात और है । वह जानती है कि केवल कपड़े उतारने से बात नहीं बनेगी सो उसे पशुओं पर क्रूरता करने वालों को डराने के लिए अपने शरीर पर धारियाँ बनवा कर बाघ बनना पड़ा ।
तोताराम ने फिर हाथ जोड़े तो हम उसका इशारा समझ गए और चुप हो गए । कहने लगा- मैं साधारण लोगों की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं तो श्री श्री रविशंकर जी की बात कर रहा हूँ । वे बड़े महान संत हैं । आज तक राम, कृष्ण, वाल्मीकि, कबीर, रैदास, मीरा, तुलसी, सूर, नानक किसी के नाम के आगे एक भी श्री नहीं लगा और इनके आगे दो-दी श्री हैं । भैया, कुछ तो बात होगी ना वरना किसके लगते हैं दो-दो 'श्री' ? मायावती जी तो कांसीराम के अलावा किसी को मान्यवर नहीं मानतीं और 'जी' भी केवल अडवाणी जी और अटल जी से पहले लगाती हैं । मुलायम सिंह को तो तू-तड़ाक से संबोधित करती हैं । और फिर तेरे कबीर, रैदास को कौन जानता है विदेश में ? श्री श्री जी तो हवाई जहाजों में घूमते हैं सारी दुनिया में । सैंकडों एकड़ में उनका आश्रम है बैंगलोर में, जहाँ तेरे जैसे तो क्या, बहादुर शाह ज़फर तक को भी दो गज ज़मीन नहीं मिलती । बैंगलोर में दो गज ज़मीन न मिलने के दर्द में ही तो उसने वह गज़ल लिखी थी- ‘दो गज ज़मीन भी न मिली कूए यार में ‘ ।
हमने कहा- भाई, हमें तो सबसे अच्छे व्यंजन सुदामा के चावल, विदुर पत्नी के केले के छिलके और करमा बाई का खिचड़ा लगा जिसे भगवान ने खुद बड़े चाव से खाया । श्री श्री जी के इन व्यंजनों का क्या ? कल को कोई और छः हजार व्यंजनों का रिकार्ड बना देगा तो ये कहीं गुमनामी में चले जाएँगे । भाव बड़ी चीज है, न कि नाटक और गिनीज बुक में नाम । जिसका स्वार्थ होता है वह नाम बेचता है । पहले तुमने किस नालंदा, तक्षशिला और स्कूल-कालेज का आइ.एस.ओ. सर्टिफिकेट देखा था ? आजकल जिस का भी थोड़ा बहुत नाम चल जाता है वह च्यवनप्राश बेचने लग जाता है । हम तो भैया, एक बार गए थे जीवन की कला सीखने एक कार्यक्रम में । दस दिन के पाँच सौ रुपए भी ले लिए और बताया क्या कि सब में एक ही ब्रह्म होता है । अरे भाई, जब सब में एक ही ब्रह्म है तो फिर हमसे पाँच सौ रुपए क्यों लिए ? यदि लिए तो कोई बात नहीं मगर कार्यक्रम के बाद आधे-आधे कर लेते । फिर बताया- ऐसे साँस लो । कोई इनसे पूछने वाला हो कि साँस ही आ रही होती तो किस लिए तुम्हारे पास आते ? साँस बंद हो रही थी तभी तो तुम्हारे पास आए थे । फिर भी कोई बात नहीं । मगर ये पाँच हजार व्यंजन कौन-कौन से हैं ? उन सबके नाम तो बता ।
तोताराम कहने लगा- मुझे तो क्या, इनके नाम तो खुद नित्यप्रज्ञ जी को भी नहीं मालूम होंगे । इतने शब्दों के बल पर तो आदमी मज़े से डबल एम.ए.कर सकता है ।
हमने कहा- तो फिर ऐसा कर, नित्यप्रज्ञ जी को एक पत्र लिख दे कि वे इन व्यंजनों की एक सचित्र पुस्तक छपवा दें । बहुत चलेगी । वैसे तो व्यंजनों को देख-सुन कर कोई पेट थोड़े ही भरता है फिर भी और कुछ नहीं तो लोग उत्सुकतावश ही सही, खरीद ज़रूर लेंगे । वैसे यदि तुझे व्यंजनों के बारे में अधिक जानना है तो तेरी भाभी से एक लिस्ट बनवा देंगे । जब चंडीगढ़ में अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्रित्व में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था तो सोनिया जी के सादगी के आदेश के कारण केवल ७५ व्यंजन बनवाए गए थे तो हमने वैसे ही तेरी भाभी से चर्चा कर दी थी तो उसने केवल दाल, रोटी और पानी से ही बने जिन पचास-साठ व्यंजनों की सूची गिना दी उसे याद करके अब भी हमने चक्कर आ जाते हैं ।
तोताराम को उत्सुकता हुई । कहने लगा- दो-चार के नाम तो बता । हमने कहा- यह सब ब्रेक के बाद ।
ब्रेक कितना लंबा चलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है ।
२१-१०-२०१०
वैसे श्री-श्री जी एक और रिकार्ड बनाने के लिए यमुना के तट पर डटे हुए हैं |पहले से गन्दी यमुना को और गन्दा करने के लिए |इसके बारे में उनके कार्यक्रम के बाद आपकी सेवा में कुछ प्रस्तुत करूंगा |
-रमेश जोशी
२० अक्टूबर २०१० प्रातः आठ बजे ।
आज भी सदैव की भाँति तोताराम आया मगर बैठने से पहले ही उसने प्रश्न किया- मास्टर बता, व्यंजन कितने होते हैं ? हमें हँसी आ गई- अरे, बछिया के ताऊ, चालीस बरस हिंदी पढ़ाता रहा, अब रिटायर हुए आठ बरस से अधिक हो गए और आज पूछ रहा है कि व्यंजन कितने होते हैं ? क्या स्वर-व्यंजन जाने बिना ही इतने बरस बच्चों को हिंदी पढ़ाता रहा ? वैसे अब तुझे स्वर-व्यंजन जानने की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? क्या हिंदी की कोई ट्यूशन मिल गई है ? ट्यूशन तो अंग्रेजी और साइंस-मैथ्स में मिलते हैं । हिंदी का क्या है वह तो अपनी मातृभाषा है और मातृभाषा का सत्यानाश करने का सभी को अधिकार है । फिर भी तेरी आत्मा की शांति के लिए बता देते हैं कि व्यंजन तेंतीस होते हैं और यदि संयुक्ताक्षरों को भी शामिल करना चाहे तो तीन और जोड़ ले । वैसे यदि मन में श्रद्धा हो तो कबीर की तरह अढ़ाई अक्षरों में ही काम चल सकता है- आधा प, रे और म ।
तोताराम ने हाथ जोड़ कर कहा- भ्राता श्री, यदि आप अपनी वाणी को विराम दें तो मैं कुछ और निवेदन करूँ ? मेरा मंतव्य आपके इन हिंदी वाले व्यंजनों से नहीं था । मैं तो खाने वाले व्यंजनों के बारे में आपकी कुछ जनरल नॉलेज बढ़ाना चाहता था पर आप मौका ही नहीं दे रहे हैं ।
हमने कहा- खाना, खाने में क्या है ? खाना तो आदमी जीने के लिए खाता है सो जो भगवान समय पर दे दे वही उसकी कृपा है । वैसे कबीर जी ने तो सब्जी की भी ज़रूरत नहीं समझी । वे तो कहते हैं कि -
आधी और रूखी भली, सारी तो संताप ।
जो चाहेगा चूपड़ी बहुत करेगा पाप ॥
और यदि भगवान रोटी के साथ दाल भी दे दे तो ज्यादा मत इतराओ और मन को भक्ति में लगाओ । ‘दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ’ । और अपने यहाँ तो सबसे बड़ा सवाल केवल दो रोटी का माना जाता है । सो हमारे हिसाब से तो दो ही व्यंजन होते हैं दाल और रोटी । यदि तू 'पानी' को भी जोड़ना चाहे तो तीन समझ ले ।
तोताराम हमारे चरण छूकर चलने को हुआ- अब तुझसे बात करने का कोई फायदा नहीं । अच्छा जय राम जी की । हमने ज़बरदस्ती उसका हाथ पकड़ कर बैठाया, कहा- मुँह में आई बात कह ही देनी चाहिए । कहने लगा- मैं तो कहना ही चाहता हूँ पर तू मौका दे तब ना । बात यह थी कि अब तक का अधिक से अधिक व्यंजनों का रिकार्ड ४६०० व्यंजनों का है पर यह पता नहीं किसके नाम है ? अब अपने 'डबल श्री' मतलब कि श्री श्री रवि शंकर जी के अहमदाबाद स्थित नित्यप्रज्ञ नामक चेले का कार्यक्रम है कि २ नवंबर को अहमदाबाद में 'अन्नं ब्रह्म' नामक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें ५००० व्यंजनों का विश्व रिकार्ड बनाया जाएगा । और फिर इस कार्यक्रम का गिनीज बुक में नाम आ जाएगा ।
हमने कहा- इस कार्यक्रम का उद्देश्य गिनीज बुक में में शामिल होना है या गरीब बच्चों को भोजन कराना है ? यदि किसी भूखे को भोजन कराना ही उद्देश्य है तो फिर न तो गिनीज बुक में नाम की ज़रूरत है और न ही किसी अखबार में समाचार की । भोजन कराओ और भगवान को धन्यवाद दो दो कि उसने तुम्हें यह पुण्य कमाने का अवसर दिया और छुट्टी ।
तोताराम को खीज हुई, कहने लगा- तेरी दुनिया बहुत छोटी है । तुझे क्या पता नाम क्या होता है और नाम का मजा क्या होता है ? जब किसी का नाम गिनीज बुक में आ जाता है तो उसका खुद का ही नहीं देश का नाम रोशन हो जाता है । इसीलिए तो कोई मूँछ बढ़ा रहा है, कोई नाखून । कोई सबसे छोटी पेंटिंग बना रहा है तो कोई चावल के एक दाने पर गीता लिख रहा है ।
हमने कहा- न तो उस गीता को कोई आसानी से पढ़ सकता और न ही उस पेंटिंग को कोई अच्छी तरह से देख सकता । जब दो रुपए में अच्छी-भली गीता और पेंटिंग बाजार में मिल जाती हैं तो इस सारे तमाशे का फायदा क्या ? अरे, हजार किलो का एक लड्डू बना कर क्या होगा ? आखिर में उसे खाना तो तोड़ कर ही पड़ेगा ना ? ये सब भरे पेट वालों की कुंठाएँ है । जो कोई ढंग का काम नहीं कर सकता वह ऐसे ही उलटे काम करके चर्चित होना चाहता है । देखा नही, योरप और अमरीका में 'पेटा' ( People for Ethical Treatment of Animal ) के नाम पर लोग कपड़े उतार कर फोटो खिंचवा कर चर्चित हो रहे हैं और अखबार वाले उन्हें अपनी साईट पर डाल कर अपनी टी.आर.पी. बढ़ा रहे हैं । जिन्हें कपड़े उतारने हैं वे किसी भी नाम से उतार देते हैं । राखी सावंत की बात और है । वह जानती है कि केवल कपड़े उतारने से बात नहीं बनेगी सो उसे पशुओं पर क्रूरता करने वालों को डराने के लिए अपने शरीर पर धारियाँ बनवा कर बाघ बनना पड़ा ।
तोताराम ने फिर हाथ जोड़े तो हम उसका इशारा समझ गए और चुप हो गए । कहने लगा- मैं साधारण लोगों की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं तो श्री श्री रविशंकर जी की बात कर रहा हूँ । वे बड़े महान संत हैं । आज तक राम, कृष्ण, वाल्मीकि, कबीर, रैदास, मीरा, तुलसी, सूर, नानक किसी के नाम के आगे एक भी श्री नहीं लगा और इनके आगे दो-दी श्री हैं । भैया, कुछ तो बात होगी ना वरना किसके लगते हैं दो-दो 'श्री' ? मायावती जी तो कांसीराम के अलावा किसी को मान्यवर नहीं मानतीं और 'जी' भी केवल अडवाणी जी और अटल जी से पहले लगाती हैं । मुलायम सिंह को तो तू-तड़ाक से संबोधित करती हैं । और फिर तेरे कबीर, रैदास को कौन जानता है विदेश में ? श्री श्री जी तो हवाई जहाजों में घूमते हैं सारी दुनिया में । सैंकडों एकड़ में उनका आश्रम है बैंगलोर में, जहाँ तेरे जैसे तो क्या, बहादुर शाह ज़फर तक को भी दो गज ज़मीन नहीं मिलती । बैंगलोर में दो गज ज़मीन न मिलने के दर्द में ही तो उसने वह गज़ल लिखी थी- ‘दो गज ज़मीन भी न मिली कूए यार में ‘ ।
हमने कहा- भाई, हमें तो सबसे अच्छे व्यंजन सुदामा के चावल, विदुर पत्नी के केले के छिलके और करमा बाई का खिचड़ा लगा जिसे भगवान ने खुद बड़े चाव से खाया । श्री श्री जी के इन व्यंजनों का क्या ? कल को कोई और छः हजार व्यंजनों का रिकार्ड बना देगा तो ये कहीं गुमनामी में चले जाएँगे । भाव बड़ी चीज है, न कि नाटक और गिनीज बुक में नाम । जिसका स्वार्थ होता है वह नाम बेचता है । पहले तुमने किस नालंदा, तक्षशिला और स्कूल-कालेज का आइ.एस.ओ. सर्टिफिकेट देखा था ? आजकल जिस का भी थोड़ा बहुत नाम चल जाता है वह च्यवनप्राश बेचने लग जाता है । हम तो भैया, एक बार गए थे जीवन की कला सीखने एक कार्यक्रम में । दस दिन के पाँच सौ रुपए भी ले लिए और बताया क्या कि सब में एक ही ब्रह्म होता है । अरे भाई, जब सब में एक ही ब्रह्म है तो फिर हमसे पाँच सौ रुपए क्यों लिए ? यदि लिए तो कोई बात नहीं मगर कार्यक्रम के बाद आधे-आधे कर लेते । फिर बताया- ऐसे साँस लो । कोई इनसे पूछने वाला हो कि साँस ही आ रही होती तो किस लिए तुम्हारे पास आते ? साँस बंद हो रही थी तभी तो तुम्हारे पास आए थे । फिर भी कोई बात नहीं । मगर ये पाँच हजार व्यंजन कौन-कौन से हैं ? उन सबके नाम तो बता ।
तोताराम कहने लगा- मुझे तो क्या, इनके नाम तो खुद नित्यप्रज्ञ जी को भी नहीं मालूम होंगे । इतने शब्दों के बल पर तो आदमी मज़े से डबल एम.ए.कर सकता है ।
हमने कहा- तो फिर ऐसा कर, नित्यप्रज्ञ जी को एक पत्र लिख दे कि वे इन व्यंजनों की एक सचित्र पुस्तक छपवा दें । बहुत चलेगी । वैसे तो व्यंजनों को देख-सुन कर कोई पेट थोड़े ही भरता है फिर भी और कुछ नहीं तो लोग उत्सुकतावश ही सही, खरीद ज़रूर लेंगे । वैसे यदि तुझे व्यंजनों के बारे में अधिक जानना है तो तेरी भाभी से एक लिस्ट बनवा देंगे । जब चंडीगढ़ में अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्रित्व में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था तो सोनिया जी के सादगी के आदेश के कारण केवल ७५ व्यंजन बनवाए गए थे तो हमने वैसे ही तेरी भाभी से चर्चा कर दी थी तो उसने केवल दाल, रोटी और पानी से ही बने जिन पचास-साठ व्यंजनों की सूची गिना दी उसे याद करके अब भी हमने चक्कर आ जाते हैं ।
तोताराम को उत्सुकता हुई । कहने लगा- दो-चार के नाम तो बता । हमने कहा- यह सब ब्रेक के बाद ।
ब्रेक कितना लंबा चलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है ।
२१-१०-२०१०
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